बिहार के लखीसराय में गरीबी की वजह से एक मासूम बच्ची के गंभीर रूप से जख्मी होने के बावजूद उन्हें पांच दिन बाद इलाज नसीब हो सका। पिता के पास वाहन भाड़ा के लिए इतने पैसे भी नहीं थे कि वे अपनी बच्ची को सरकारी अस्पताल तक ले जा सके। किसी तरह 80 रुपये जुटाए तो इलाज के लिए बच्ची को सदर अस्पताल में भर्ती कराया।
सदर अस्पताल में शुक्रवार को यह वाकया सामने आया। जब चानन प्रखंड की मलिया पंचायत के धरमपुर निवासी सोहन पासवान अपनी दो वर्षीय पुत्री गुंजन कुमारी को इलाज के लिए सदर अस्पताल लेकर पहुंचे। गुंजन पांच दिन पहले चावल से निकलने वाले मांड़ के संपर्क में आने से झुलस गई थी। बच्ची की कमर से ऊपर का हिस्सा बुरी तरह से झुलस गया है। इलाज के अभाव में बच्ची तड़पती रही, लेकिन बेबस पिता उसे तुरंत इलाज के लिए कहीं ले न जा सके। उनकी माता से जब लेट आने का कारण पूछा गया, तो पिता ने जवाब दिया कि भाड़ा ही नहीं था, तो कहां से लेकर आते हुजूर…।
सिविल सर्जन डॉ आत्मानंद ने बताया कि इस संबंध में कोई जानकारी नहीं है। सदर अस्पताल में यदि बच्ची के इलाज के बाद भी अतिरिक्त इलाज की आवश्यकता होगी तो उपलब्ध करायी जाएगी।
वहीं इस संबंध में मलिया पंचायत के मुखिया डब्लू पासवान ने बताया कि हमने समय-समय पर उनकी मदद की है। इस बार बच्ची के जख्मी होने की खबर हमें नहीं है। यदि हमसे कुछ मदद मांगी जाती तो हर बार की तरह इस बार भी वह मदद कर देते।
चिकित्सक ने दिया दोबारा आने का भाड़ा
सदर अस्पताल में चिकित्सक डॉ अनंत शंकर शरण सिंह ने बच्ची का इलाज किया। हालांकि वहां मौजूद डेंटिस्ट डॉ आरके उपाध्याय भी बच्ची की हालत को देख तुरंत इलाज के लिए तैयार हो गए। वहीं दोबारा बच्ची के इलाज में किसी तरह की परेशानी न हो इसके लिए डॉ आरके उपाध्याय ने मानवता का परिचय देते हुए बच्ची के पिता को दोबारा इलाज के लिए यहां पहुंचने को भाड़ा दिया। उन्होंने कहा कि बच्ची को दोबारा इलाज की आवश्यकता होगी।
गरीबी ऐसी कि पेट पालना मुश्किल
अस्पताल पहुंचे सोहन पासवान ने बताया कि वे लोग बहुत ही गरीब हैं। किसी तरह मजदूरी कर या फिर जंगलों से लकड़ी चुनकर घर का चूल्हा जलाते हैं। पेट पालना भी मुश्किल हो जाता है। दो वक्त की रोटी जुटा पाना उनलोगों के लिए मुश्किल हो जाता है, तो भला इलाज कैसे कराएंगे।