उपेन्द्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) का इसी महीने जदयू में विलय हो सकता है। पिछले कुछ समय से सियासी गलियारों में इस विलय को लेकर चर्चा चल रही है। यदि ऐसा होता है तो एक बार फिर से कुशवाहा अपनी मुख्य पार्टी में वापसी करेंगे। कुशवाहा सोमवार को जदयू के वरिष्ठ नेता वशिष्ठ नारायण सिंह के साथ कोरोना का टीका लगवाने के लिए अस्पताल पहुंचे। इस दौरान अपनी पार्टी का जदयू में विलय करने पर पूछे गए सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि हम जदयू से अलग ही कब थे। उन्होंने कहा कि जल्द ही पार्टी का जदयू में विलय होगा।
वैसे उपेंद्र कुशवाहा का मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से रूठने और फिर उनसे जुड़ने का यह पहला मौका नहीं है। उपेंद्र ने अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही की थी। नीतीश कुमार ने उन्हें आगे भी बढ़ाया। हालांकि, कई बार मतभेदों के कारण उपेंद्र ने पार्टी छोड़ी और फिर वापस भी आए। इससे पहले वे दो बार अलग हुए। कुशवाहा कहते भी हैं कि वे नीतीश कुमार से कभी अलग नहीं हुए थे।
जदयू छोड़ने पर एक को छोड़कर नहीं मिला कोई बड़ा प्लेटफॉर्म
काबिले गौर है कि उपेंद्र कुशवाहा जब-जब जदयू से अलग हुए उन्हें एक बार छोड़कर कोई बड़ा प्लेटफॉर्म नहीं मिला। वर्ष 2014 में एनडीए के तहत लोकसभा चुनाव लड़े और तीन सीटें जीतीं। उपेंद्र कुशवाहा मंत्री भी बने। लेकिन, 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी को दो सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। बाद में वे महागठबंधन का भी हिस्सा बने, पर 2020 के चुनाव के पहले ही वहां से अपने को अलग कर लिया। फिर कई दलों का गठबंधन बनाकर विधानसभा चुनाव में उतरे, पर उन्हें सफलता नहीं मिली।
2004 में नीतीश कुमार ने बनाया था नेता विपक्ष
याद रहे कि वर्ष 2004 में उपेंद्र कुशवाहा को विधानसभा में विपक्ष का नेता नीतीश कुमार ने बनाया था। वर्ष 2005 में हुए फरवरी और अक्टूबर दोनों विधानसभा चुनाव में श्री कुशवाहा हार गए। बाद में जदयू के प्रदेश का प्रधान महासचिव बनाये गए। इसके बाद कुशवाहा 2006 में शरद पवार की पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए और इसके प्रदेश अध्यक्ष बने। वर्ष 2008 अक्टूबर में वे राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से अलग हुए और फिर राष्ट्रीय समता पार्टी बनायी, जिसका विलय जदयू में हुआ।