सुप्रीम कोर्ट ने पिछड़े वर्गों के लिए जाति-आधारित जनगणना करने के लिए जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद केंद्र सरकार, राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग और अन्य को नोटिस जारी किया। देश में जनगणना की प्रक्रिया के बीच जातिगत आधार पर जनगणना कराने की मांग तेज होती जा रही है। इस मांग की शुरुआत बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने की थी और इसके लिए बिहार विधानसभा में गुरुवार को जाति आधारित जनगणना कराने के पक्ष में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर दिया है।
हालांकि, इससे पहले भी 2011 में जनगणना के दौरान देश में जाति आधारित जनगणना की मांग उठी थी। लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार और प्रमुख मुलायम सिंह यादव जैसे नेता शुरू से ही इसकी मांग करते रहे हैं।
1931 के बाद नहीं हुई जाति आधारित जनगणना
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि वर्ष 2021 की जनगणना जाति आधार पर होनी चाहिए। किस जाति के लोगों की संख्या कितनी है, यह मालूम होना चाहिए। देश में आबादी के अनुरूप आरक्षण का प्रावधान हो, इससे अच्छी कोई बात नहीं होगी। मुख्यमंत्री सोमवार को एक अणे मार्ग में लोकसंवाद कार्यक्रम के बाद पत्रकारों से बात कर रहे थे। मुख्यमंत्री ने कहा कि वर्ष 1931 के बाद जाति आधारित जनगणना देश में नहीं हुई है। अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और धर्म के आधार पर जनगणना हुई है। इसी तर्ज पर सभी जातियों की जनगणना 2021 में होनी चाहिए। जनगणना के समय ही लोगों से उनकी जाति पूछकर उसका जिक्र कर देना चाहिए। इससे सभी जाति के लोगों की वास्तविक संख्या का पता चल जाएगा।
नीतीश ने और क्या कहा था
जातिगत आरक्षण का समर्थन करते हुए सीएम नीतीश ने कहा कि जब तक जाति आधारित जनगणना नहीं होती तब तक पिछड़े या अनुसूचित जाति जनजाति के लोगों के वर्तमान आरक्षण की सीमा को बढ़ाया नहीं जा सकता है। एक बार जातिगत जनगणना हो जाए तो पूरे देश में एक नियम, एक क़ानून बनाया जाना चाहिए कि आरक्षण आबादी के अनुसार मिलेगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि अनारक्षित वर्ग के लोगों को आर्थिक आधार पर 10 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है। इसका किसी को विरोध नहीं करना चाहिए। यह किसी के आरक्षण में कोई हस्तक्षेप नहीं है। अलग से आरक्षण का लाभ दिया जा रहा है।