उत्तराखंड के चमोली जिले स्थित रैणी-तपोवन आपदा के बाद से केन्द्र सरकार की महारत्न कंपनी एनटीपीसी को उसकी मशीनों को ग्राउन्ड में चालने के लिए ऑपरेटर एवं टैक्नीकल स्टाफ नहीं मिल पा रहे है। आलम यह है कि कंपनी पूर्व के वेतन से भी कुछ अधिक देने को तैयार है, लेकिन कोई अब तपोवन क्षेत्र में माहप्रलय के बीच काम करने को फिलहाल तैयार नहीं है, बाहरी लोगों में तपोवन को लेकर अधिक डर देखा जा रहा है। जिस कारण से एनटीपीसी के अधिकारी सकते में है , की करें तो क्या करें। सात फरवरी को तपोवन और रैणी क्षेत्र में आए जलप्रलय के बाद नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (एनटीपीसी) की ठेकेदार और एजेसियों के 139 लोग लापता हैं । लापता लोगों की तलाश में देरी से लोगों में भी आक्रोश बना हुआ है।
लापता लोगों की नहीं सही जानकारी
7 फरवरी को एनटीपीसी के तपोवन साईट में काम करने वाले लोगों में से क्या मात्र 139 लोग ही लापता हुए हैं इसकी ठीक ठीक जानकारी एनटीपीसी को भी नही है। बल्कि यह 139 लोगों के आंकडे वह है जो कि एनटीपीसी के ठेकेदार एजैन्सियों ने जोशीमठ थाने में अपने मजदूर एवं वर्करों के लापता होने की एफआईआर में दर्ज किए हैं। एनटीपीसी के जीजीएम राजेन्द्र प्रसाद अहिरयार कहते हैं कि क्योंकि कंपनी साईट में आते समय सभी वर्कस को सीआईएसएफ गेट में एन्ट्री करवाने के बाद ही आना जाना पडता है इस लिए यह आंकडे ही सही हैं ऐसा कंपनी को विश्वास है।
350 विशेषज्ञों को किया गया है तैनात
एनटीपीसी के जीजीएम ने कहा कि किसी को भी अन्दाजा नही था कि ऐसी आपदा आ सकती है व एनटीपीसी के विशेषज्ञों के लिए भी यह पहला मौका है जब ऐसी परिस्थितियां आयी हैं। कहा कि घटना का एनटीपीसी को कोई एक्सपिरियंस नहीं है। बावजूद कंपनी ने अपनी विविध परियोजना से 350 विशेषज्ञ स्टाफ को जोशीमठ तपोवन में तैनात कर रखा है जो परिस्थिति से कैसे निपट जा सकता है व मलवे के अंदर दबे लोगो को कैसे निकाला जा सकता है पर लगे हुए हैं।