पश्चिम बंगाल की चुनावी जंग में ममता के सामने चेहरा कौन? ये चुनौती भाजपा और कांग्रेस-लेफ्ट के लिए बड़ी होती जा रही है। तृणमूल कांग्रेस से पिछले एक साल में एक दर्जन से ज्यादा नेता पार्टी छोड़कर जा चुके हैं। लेकिन पार्टी को अभी भी ममता का सीएम फेस अन्य प्रतिद्वंद्वी दलों पर भारी लग रहा है।
राजनीतिक जानकार भी मानते हैं कि ममता बनर्जी को लेकर जमीनी स्तर पर बहुत ज्यादा गुस्सा नहीं है। हार्ड कोर हिंदुत्व के भाजपा के प्रचार से आकर्षित होने वालों की संख्या लगातार बढ़ी है। एन्टी इनकंबेंसी भी मुद्दा है। लेकिन क्या यह सत्ता बदलने के लिए पर्याप्त है, इसे लेकर राजनीतिक नब्ज टटोलने वाले लोग असमंजस में हैं।
ममता बनर्जी अपनी चुनावी सभाओं में बंगाली स्वाभिमान का मुद्दा छेड़कर भाजपा पर बाहरी व्यक्ति थोपने का आरोप लगाती हैं। हालांकि भाजपा कई बार स्पष्ट कर चुकी है कि सीएम का चेहरा कोई बंगाली ही होगा। लेकिन उस चेहरे की तलाश लंबी होने से तृणमूल को इस पिच पर खेलने में मजा आ रहा है।
कुछ दिन पहले ममता ने अपनी चुनावी सभा मे कहा कि मैं रॉयल बंगाल टाइगर की तरह ही रहूंगी। मैं किसी से डरने वाली नहीं हूं। यहां कोई गुजराती राज नहीं करेगा। उनका इशारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की ओर था, जिन्हें प्रचार का बड़ा चेहरा माना जा रहा है। तृणमूल के चेहरे पर सवाल की बौछार के बीच भाजपा को बार बार सफाई देनी पड़ी है कि बंगाल का ही कोई नेता सीएम का चेहरा होगा।
कांग्रेस और वामदल गठबंधन अपनी हवा बनाने के प्रयास में
उधर तृणमूल और भाजपा की जंग के बीच कांग्रेस और वामदल गठबंधन के साथ अपनी हवा बनाने का प्रयास कर रहे हैं। लेकिन इस गठजोड़ का बिहार और पश्चिम बंगाल में बड़ा फर्क होने जा रहा है कि कांग्रेस-लेफ्ट गठबंधन के पास ममता बनर्जी के मुकाबले मुख्यमंत्री का कोई चेहरा नहीं होगा। जानकारों का कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता और आकर्षण बंगाल के बड़े वर्ग में है लेकिन विधानसभा चुनाव में मुद्दे और चेहरे दोनों लोकसभा से अलग होते हैं। इसलिए ममता के मुकाबले बंगाल में चेहरा कौन ये भी बड़ा मुद्दा है।