गणतंत्र दिवस के दिन किसानों की ट्रैक्टर रैली के दौरान दिल्ली की राजधानी में हुई हिंसा के लिए शिवसेना ने केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराया है। शिवसेना ने कहा है कि कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन कों बदनाम करने के लिए बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने किसानों को हिंसा करने के लिए उकसाया।
शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना के संपादकीय में लिखा है, ‘लाल किले में घुसकर जिस भीड़ ने हड़कंप मचाया, उस भीड़ का नेतृत्व कोई दीप सिद्धू नामक युवक कर रहा था। ऐसा सामने आया है कि यह सिद्धू प्रधानमंत्री मोदी, गृहमंत्री अमित शाह के खेमे का है। भाजपा के पंजाब के सांसद सनी देओल का इस सिद्धू से करीबी संबंध हैं। राजेश टिकैत आदि किसान नेताओं का कहना है कि ये महाशय पिछले दो महीनों से किसानों की भीड़ में घुसकर बगावत और अलगाववाद की बात कर रहे थे।’
लेख में आगे लिखा है, ‘पिछले 60 दिनों से किसानों का आंदोलन शांतिपूर्ण तरीके से चल रहा है। देश के किसानों के हित के विरोधवाले तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर किसान दिल्ली की सीमा पर जमे हुए हैं। इसके बावजूद किसान आंदोलन में किसी भी प्रकार की फूट नहीं पड़ी और किसानों का धैर्य भी नहीं टूटा। इस कारण से केंद्र सरकार को हाथ मलते हुए बैठना पड़ा। ऐसा भी कहा गया कि किसानों का आंदोलन खालिस्तानी है। लेकिन फिर भी किसान शांत रहे। सरकार की इच्छा ही यह थी कि किसानों को भड़काकर हिंसाचार करवाकर इस आंदोलन को बदनाम किया जाए।’
संपादकीय में आगे लिखा है, ’26 जनवरी के मुहूर्त पर उन्होंने अपनी सुप्त इच्छा पूर्ण की होगी तो इससे देश की बदनामी हुई है, किसानों ने कानून अपने हाथ में ले लिया, ऐसा कहना आसान है। लेकिन कृषि कानून को रद्द करो, ऐसा आक्रोश 60 दिनों से चल रहा है। उस कानून को लेकर इतना लचर रवैया क्यों? किसान खुद की रोटी-सब्जी बनाकर दिल्ली की सीमा पर खा रहा है। पंजाब के किसानों का यही स्वाभिमानी तेवर सरकार को बेचैन कर रहा है। पंजाब के किसान खालिस्तानी आतंकवादी और देशद्रोही हैं, ऐसे आरोप लगाकर उन्हें पंजाब को फिर एक बार अशांत करना है। लेकिन पंजाब फिर से अशांत हुआ तो फिर यह देश के लिए अच्छा नहीं होगा। राजेश टिकैत द्वारा किसानों से हाथ में लाठी लेने का आह्वान करते ही वह देशद्रोही ठहरा दिए गए। लेकिन ‘गोली मारो’ और ‘खत्म करो’ जैसे भड़काऊ भाषण देनेवाले संत आज मोदी मंत्रिमंडल में हैं। पश्चिम बंगाल में भाजपा नेताओं की भाषा रक्त-पात और हिंसाचार वाली है। लेकिन टिकैत द्वारा हाथ में डंडा लेकर मोर्चे में शामिल होने की बात कहते ही सरकार बिफर पड़ी।’