कृषि कानूनों पर करीब सवा महीने से अधिक समय से सड़कों पर घमासान जारी है। किसान आंदोलन और कृषि कानूनों की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई हो रही है। सुनवाई के दौरान ही चीफ जस्टिस ने कहा कि जिस तरह से प्रक्रिया चल रही है, हम उससे निराश हैं। इस दौरान सुप्रीन कोर्ट ने स्पष्ट पूछा है कि आप इन कानूनों पर रोक लगाएं, वरना हमें लगाना होगा। कृषि कानूनों की वैधता को एक किसान संगठन और वकील एमएल शर्मा ने चुनौती दी है। शर्मा ने याचिका में कहा है कि केंद्र सरकार को कृषि से संबंधित विषयों पर कानून बनाने का अधिकार नहीं है। कृषि और भूमि राज्यों का विषय है और संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची 2 (राज्य सूची) में इसे एंट्री 14 से 18 में दर्शाया गया है। यह स्पष्ट रूप से राज्य का विषय है। इसलिए इस कानून को निरस्त किया जाए। फिलहाल बेंच ने सुनवाई पूरी कर ली है और मामले में आज या कल आदेश आ सकता है।
Farmer protest Supreme Court hearing updates:-
–सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम कानून स्थगित कर देंगे तो आंदोलन के लिए कुछ नहीं रह जाएगा। कोर्ट ने कमेटी के लिए पूर्व CJI लोढ़ा का नाम सुझाया, लेकिन केंद्र ने कहा वह नाम सुझाएंगे। इसके बाद बेंच उठ गई। माना जा रहा है कि आदेश आज या कल आ सकता है।
-कृषि कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम कुछ नहीं कहना चाहते हैं, विरोध प्रदर्शन जारी रह सकता है, मगर इन सबकी जिम्मेदारी कौन लेगा? सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने कहा कि हम कानून स्टे करने के लिए नहीं कह रहे हैं, मगर समस्या का समाधान तो करना ही होगा।
-साल्वे ने कहा कि कोर्ट को यह दिमाग में रखना चाहिए कि इस तरह से अन्य कानूनों को भी स्टे करने की मांग उठेगी। इसके बाद कृषि कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट ने कमेटी बनाने का संकेत दिया, जो लोगों की शिकायतों को सुनेगी।
– आंदोलन को खत्म करने की मांग करने वाले याचिकाकर्ता की ओर से पेश हरीश साल्वे ने कहा कि अगर कोर्ट स्टे कर रहा है तो इनसे आश्वाशन लीजिए की ये कमेटी के साथ प्रावधान वार बहस करने को तैयार हैं। इस पर किसानों के वकील ने कहा कि इसके लिए उन्हें किसानों से बात करनी होगी क्योंकि 400 संगठन हैं। इसके लिए हमे एक दिन का समय दिया जाए।
-कोर्ट ने कहा कि किसान कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं, उन्हें समिति को अपनी आपत्तियां बताने दें, हम समिति की सिफारिशों को स्वीकार कर सकते हैं। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि हमें यह कहते हुए काफी खेद है कि केन्द्र इस समस्या और किसान प्रदर्शन का समाधान नहीं कर पाई।
-सुप्रीम कोर्ट ने कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे किसान संगठनों से कहा कि आपको भरोसा हो या नहीं, हम भारत की शीर्ष अदालत हैं, हम अपना काम करेंगे। हमें नहीं पता कि लोग सामाजिक दूरी के नियम का पालन कर रहे हैं कि नहीं लेकिन हमें उनके (किसानों) भोजन पानी की चिंता है।
– सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से सवाल किया है कि कृषि कानूनों पर आप रोक लगाएंगे या हम लगाएं। कोर्ट ने कहा कि हम अर्थव्यवस्था के विशेषज्ञ नहीं हैं, आप बताएं कि सरकार कृषि कानून पर रोक लगाएगी या हम लगाएं। इसके बाद केंद्र सरकार ने नए कृषि कानूनों पर रोक लगाने का विरोध किया। अटॉर्नी जनरल केके. वेणुगोपाल ने कोर्ट से कहा कि किसी कानून पर तब तक रोक नहीं लगाई जा सकती, जब तक वह मौलिक अधिकारों या संवैधानिक योजनाओं का उल्लंघन ना करें।
-उच्चतम न्यायालय ने कृषि कानूनों को लेकर समिति की आवश्यकता को दोहराया और कहा कि अगर समिति ने सुझाव दिया तो, वह इस कानून के लागू होने पर रोक लगा देगा।
– सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह चाहता था कि बातचीत के जरिए मामले का हल निकले, लेकिन कृषि कानूनों पर फिलहाल रोक लगाने को लेकर केन्द्र की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं दी गई है।
-सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम फिलहाल इन कृषि कानूनों को निरस्त करने की बात नहीं कर रहे हैं, यह एक बहुत ही नाजुक स्थिति है। हालांकि, कोर्ट ने फटकार लगाते हुए केन्द्र से कहा कि हमें नहीं पता कि आप समाधान का हिस्सा हैं या समस्या का ।
-सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कुछ गलत हुआ तो हममें से हर एक जिम्मेदार होगा। कृषि कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते सीजेआई ने कहा कि हम किसी का खून अपने हाथ पर नहीं लेना चाहते हैं।
–उच्चतम न्यायालय ने नए कृषि कानूनों पर केन्द्र से कहा, ” क्या चल रहा है? राज्य आपके कानूनों के खिलाफ बगावत कर रहे हैं। हमारे समक्ष एक भी ऐसी याचिका दायर नहीं की गई, जिसमें कहा गया हो कि ये तीन कृषि कानून किसानों के लिए फायदेमंद हैं।
-चीफ जस्टिस ने कहा कि कुछ लोगों ने आत्महत्या की है, बूढ़े और महिलाएं आंदोलन का हिस्सा हैं। ये क्या हो रहा है?। उन्होंने यह भी कहा कि कृषि कानून अच्छे हैं, इसे लेकर एक भी याचिका नहीं दायर की गई है।
-तीन कृषि कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक बैच की सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा कि हम नहीं जानते कि क्या बातचीत चल रही है? क्या कुछ समय के लिए कृषि कानूनों को लागू किया जा सकता है?
-सुप्रीम कोर्ट में जैसे ही सुनवाई शुरू हुई, सरकार की ओर से कहा गया कि दोनों पक्षों में बातचीत जारी है। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि नए कृषि कानूनों को लेकर जिस तरह से सरकार और किसानों के बीच बातचीत चल रही है, उससे हम बेहद निराश हैं।
-सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई शुरू की। इन याचिकाओं में द्रमुक सांसद तिरुचि शिवा, राजद सांसद मनोज के झा द्वारा दायर याचिकाएं शामिल हैं।
मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन जजों की के समक्ष सोमवार को ये सुनवाई इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि सरकार ने कहा है कि यदि सर्वोच्च अदालत किसानों के हक में फैसला देता है तो उन्हें आंदोलन करने की जरूरत नहीं रहेगी। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा था केंद्र सरकार ने कानून समवर्ती सूची की एंट्री 33 के आधार पर बनाए हैं, उन्हें लगता है इस एंट्री से कृषि विपणन पर कानून बनाने का अधिकार है।
गौरतलब है कि पिछली सुनवाई पर कोर्ट ने कहा था कि वह किसान आंदोलन को समाप्त करने और कृषि कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करेगा। हालांकि, सरकार ने इसका विरोध किया था और कहा था कि यदि कानूनों की वैधता पर सुनवाई शुरू की गई, तो किसानों से बातचीत रोकनी पड़ेगी। सरकार ने कहा था कि किसानों से बातचीत का अगला दौर शनिवार को होगा। लेकिन ये बातचीत कल विफल हो गई। किसान कानूनों को वापस लेने पर अड़े हैं।
कोरोना फैलने की आशंका का जिक्र
किसान आंदोलनकारियों को दिल्ली की सीमाओं से हटाने के लिए वकील ऋषभ शर्मा समेत चार ने याचिकाएं दायर की हैं। उन्होंने कहा कि उनके सीमाओं पर जमावड़े से कोविड-19 भी फैल सकता है। वहीं कृषि कानूनों को चुनौती देने वाली याचिका भारतीय किसान यूनियन, भानु गुट, सांसद तिरूचि शिवा समेत चार ने दाखिल की है।