पू्र्वी लद्दाख से डिस-एंगेजमेंट को लेकर किए गए चीन के वादे पर भारत पूरी तरह से भरोसा नहीं कर पा रहा है। भारत को संदेह है कि शायद ही चीन जुलाई महीने में होने वाले कम्युनिस्ट पार्टी के समारोह से पहले पूर्वी लद्दाख में डिस-एंगेजमेंट और डी-एस्केलेशन के अपने वादे को पूरा करे। इस मामले से वाकिफ सूत्रों ने यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि जिनपिंग लद्दाख, भूटान, ताइवान, साउथ चाइना सी और जापान पर माओ की 1959 की लाइन को लागू करने की अपनी स्पष्ट रणनीति से चिपके रह सकते हैं। इस साल सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी के 100 साल पूरे हो रहे हैं।
लद्दाख में 1,597 किलोमीटर लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के वास्तविक स्थिति को बदलने के चीन के प्रयास से पैदा हुए गतिरोध के बारे में भारत सरकार के आकलन पर करीब से नजर रखने वाले लोगों ने कहा कि बीजिंग से उम्मीद थी कि वह अपने सैनिकों को लद्दाख से वापस बुला लेगा। कोरोना वायरस मामलों और उसकी वजह से आर्थिक झटका झेलने वाले शी जिनपिंग लगातार देश की जनता की आलोचना का शिकार हो रहे थे, लेकिन लद्दाख में उनकी विस्तारवादी सोच की वजह से लोगों का ध्यान भटकाने में उन्हें मदद मिली। कोरोना महामारी ने दुनियाभर में नौ करोड़ से ज्यादा लोगों को संक्रमित किया है और लगभग 20 लाख से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। इसकी वजह से कई देश जिनपिंग पर हमला बोलते रहे हैं।
पूर्वी लद्दाख में चीन के आक्रामक होने की तमाम वजहों में से एक वजह यह भी है कि इससे वह अपने देश की जनता को लुभा सके और दक्षिणी एशियाई के छोटे देशों जैसे- नेपाल, भूटान और म्यांमार आदि पर दबाव बना सके। एक राष्ट्रीय सुरक्षा योजनाकार ने चीन की इस हरकत पर कहा, ”लेकिन हम अपनी जमीन पर तब तक डटे रहने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं, जब तक यह सबकुछ सही तरीके से खत्म नहीं हो जाता।”