बीते दिनों आलू समेत अन्य सब्जियों के बेहाताशा बढ़े भाव से जहां आम आदमी परेशान था, लेकिन सब्जियों के भावों में आई कमी के बाद अब खाद्य तेलों के बिगड़े भावों ने आम आमदी की रसाई का बजट बिगाड़ा हुआ है। जिसमें चावल के भावों में आई तेजी ने आम आदमी की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं।
30 फीसद तक बढ़े खाद्य तेलों की मांग
राजधानी दिल्ली में खाद्य तेलों के भावों में पिछले छह महीनों से बढ़ोतरी का दौर जारी है, लेकिन बीते एक से दो महीने में खाद्य तेलों के भावों में फुटकर 30 फीसदी तक का इजाफा हुआ है। जिसके चलते एक लीटर सरसों से लेकर रिफाइंड तेल के लिए आम आदमी को 20 से 35 रुपये चुकाने पड़े हैं। खाद्य तेलों के फुटकर कारोबार पंकज गर्ग के अनुसार दो महीने पहले जो सरसों व रिफाइंड तेल के भाव 100 से 115 रुपये थे, वह इन दिनों 130 से 140 रुपये प्रतिलीटर तक पहुंच गए हैं। वहीं 4 से 6 महीने पहले रिफाइंड का भाव 90 से 100 रुपये प्रतिलीटर था।
चावल के भावों में 20 फीसदी तक बढ़ोतरी
खाद्य तेलों के भावों के साथ ही इन दिनों चावलों के भावों में आई तेजी के चलते भी आमआदमी का बजट बिगड़ा हुआ है। जिसके तहत बीते तीन महीने की तुलना में बीते 20 दिनों में बासमती से लेकर सामान्य चावल के भाव में तेजी आई है। दिल्ली किरान मर्चेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष विजय गुप्ता बंटी के मुताबिक बीते कुछ दिनों से चावल के भावों 20 फीसदी तक बढ़ोतरी हुई हैं, लेकिन यह दामों में सामान्य बढ़ोतरी हैं। बीते दिनों आवक अधिक होने से जो भाव कुछ कम हुए थे, वह ही भाव वापस उठे हैं।
अंतरराष्ट्रीय बाजार के खेल से बढ़े खाद्य तेलों के दाम, सरसों पर निर्भरता बढ़ने से महंगा हो रहा सरसों का तेल
खाद्य तेलों के भावों में लगातार हो रही बढ़ोतरी को लेकर भारतीय उद्योग व्यापार मंडल के महासचिव व खाद्य तेल के थोक कारोबारी हेमंत गुप्ता कहते हैं कि बेशक पिछले 6 महीनों से खाद्य तेलों के भावों में बढ़ोतरी जारी है, लेकिन इसके पीछे अंतरराष्ट्रीय बाजार जिम्मेदार हैं। हेमंत गुप्ता ने बताया कि भारत 200 लाख टन सालान खाद्य तेल की खपत करता हैं। जिसमें से 175 लाख टन खाद्य तेलों की निर्भरता विदेशों से होने वाले आयात से हैं। हालांकि भारत में सरसों का उत्पादन अधिक होता हैं, लेकिन भारत अपनी जरूरतों के लिए खाद्य तेल अमेरिका और मलेशिया और अर्जेटीना से आयात करता है।
बीते कुछ महीनों में चीन अपनी खपत से अधिक पाम आयल मलेशिया से खरीद रहा है, जिससे बाजार में अस्थिरता है और भाव बढ़े हैं। वहीं अर्जीटीना में हड़ताल के चलते वहां से होने वाली आवक बीते महीनों में प्रभावित हुई थी। जबकि जो जानकारी मिल रही है, उसके अनुसार अमेरिका इस बार 50 फीसदी फसल खराब हुई हैं। इस वजह से भी भाव बढ़े हैं। ऐसे में जब अंतरराष्ट्रीय बाजार में अस्थिरता है और भावों में लगातार बड़ी हैं, तो सरसों के तेल पर निर्भरता बड़ी हैं। वहीं कोरोना काल में सरसों के तेल ने मांग पकड़ी है। इस वजह से सरसों का तेल भी महंगा हो रहा है।
चावल के भाव में सामान्य तेजी, लेकिन पिछले साल से अभी भी कम चावल के भाव
दिल्ली ग्रेन मर्चेंट एसोसिएशन नया बाजार के महासचिव सुरेंद्र कुमार गर्ग के मुताबिक चावल के भावों में सामान्य तेजी है। बीते दिनों चावल का निर्यात प्रभावित होने से जो भाव नीचे आ गए थे, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खरीददारी होने से उनमें तेजी है। हालांकि पिछले साल की तुलना में चावल के भाव अभी भी कम हैं। जिनमें और तेजी आने की उम्मीद है।