दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि फतवे की खासतौर पर अचल संपत्ति के स्वामित्व के संदर्भ में कोई वैधानिकता या वैधता नहीं हो सकती और ऐसी घोषणाएं तीसरे पक्ष के लिए बाध्यकारी नहीं होंगी।
जस्टिस प्रतिभा एम सिंह का यह फैसला निचली अदालत के उस आदेश के खिलाफ दायर अपील पर आया जिसमें यहां दरियागंज में एक संपत्ति के मालिकाना हक के संदर्भ में आवेदन को खारिज कर दिया गया था।
निचली अदालत में संपत्ति पर कब्जे के लिए याचिका दायर करने वाले ने हाईकोर्ट में दावा किया कि वे संपत्ति के मालिक हैं जिसे उन्होंने उस व्यक्ति के उत्तराधिकारी से खरीदा है जिसे 1971 में जारी एक फतवे के माध्यम से कथित तौर पर संपत्ति का अधिकार दिया गया था।
इस याचिका का विरोध करते हुए संपत्ति के किरायेदार ने दावा किया था कि संपत्ति की मूल मालकिन ने यह घोषणा की थी कि उनकी मौत के बाद किरायेदार/कब्जाधारक उसके मालिक बन जाएंगे। किरायेदार ने यह भी कहा कि वह 32 सालों से बिना किराया दिये वहां रह रहे हैं। वादी का पक्ष रख रहे वकील अर्पित भार्गव ने कहा कि मालकिन की मौत के बाद फतवे के माध्यम से संपत्ति का अधिकार उनके रिश्तेदार को सौंपा गया था।
जस्टिस सिंह ने हालांकि कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में कहा था कि फतवा एक वैधानिक बाध्यकारी दस्तावेज की जरूरतों को पूरी नहीं करता और कानून में उनकी वैधता के कोई प्रमाण नहीं हैं।
हाईकोर्ट ने मौजूदा मामले में वाद के नौ साल से भी ज्यादा पुराना होने के मद्देनजर निचली अदालत को निर्देश दिया कि वह छह महीने के अंदर सुनवाई पूरी कर 31 जुलाई 2021 तक फैसला सुनाए। इस निर्देश के साथ अदालत ने याचिका को निस्तारित कर दिया।