भारत बायोटेक के कोविड-19 टीके के तीसरे चरण के ट्रायल लिए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) को पर्याप्त संख्या में स्वेछा से टीकाकरण कराने वाले लोग (वॉलंटियर) नहीं मिल रहे हैं। अधिकारियों का कहना है कि लोग यह सोच कर नहीं आ रहे हैं कि जब सबके लिए टीका जल्दी ही उपलब्ध हो जाएगा तो ट्रायल में भाग लेने की क्या जरूरत है।
भारत बायोटेक के कोवैक्सिन नामक टीके के अंतिम चरण के ट्रायल के लिए निर्दिष्ट संस्थानों में से एक एम्स है। ट्रायल के लिए संस्थान को लगभग 1,500 लोग चाहिए। कोवैक्सिन का निर्माण, भारत बायोटेक और भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) द्वारा संयुक्त रूप से किया जा रहा
है।
एम्स में सामुदायिक चिकित्सा विभाग में प्रोफेसर और इस अध्ययन के प्रधान निरीक्षक डॉ. संजय राय ने कहा, ‘हमें 1500 से 2000 के लगभग लोग चाहिए थे, लेकिन अभी तक केवल 200 लोग आए हैं। लोग इस प्रक्रिया में यह सोचकर भाग नहीं ले रहे हैं कि जब टीका सबको मिलने वाला है तो ट्रायल में भाग लेने की क्या जरूरत है।’ उन्होंने कहा कि जब स्वेच्छा से आने वाले लोगों को प्रकिया के बारे में बताया जाता है तब वे इसमें भाग लेने से मना कर देते हैं।’
ट्रायल में भाग लेने का सुझाव दिया
डॉ. राय ने कहा,‘क्लिनिकल ट्रायल की प्रक्रिया के बारे में जानने के बाद लोग भाग लेने से यह कहकर मना कर देते हैं कि जब टीका जल्दी ही मिलने वाला है तो इसमें भाग क्यों लिया जाए।’ उन्होंने कहा कि जब पहले चरण का ट्रायल शुरू होने वाला था तब उन्हें सौ प्रतिभागियों की जरूरत थी लेकिन 4,500 आवेदन मिले थे। दूसरे चरण के ट्रायल के समय भी अस्पताल को चार हजार आवेदन मिले थे। डॉ. राय ने कहा कि लोगों को ट्रायल में भाग लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि वह टीके के ट्रायल में भाग लेने की आवश्यकता के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए विज्ञापन, ईमेल और फोन कॉल का सहारा लेने की योजना बना रहे हैं।