समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा है कि देश का किसान आंदोलित है। केंद्र सरकार उनके मन की बात सुनने के बजाय उन पर अपनी बात थोपने में लगी है। सपा 14 दिसम्बर को किसानों के समर्थन में धरना भी देगी। अखिलेश यादव ने रविवार को जारी बयान में कहा है कि भाजपा लोगों को बहकाने और छलने में पारंगत है। किसानों को इसीलिए आतंकवादी नक्सलवादी भी बताया जा रहा है।
सच्चाई यह है कि किसान एकजुट हैं, उनका आंदोलन बढ़ता ही जा रहा है। इसमें किसान परिवारों के बूढ़े-बच्चे-महिलाएं तक शामिल हैं जो इस ठंड के मौसम में रविवार को 18वें दिन भी आंदोलनरत हैं। कई किसानों की शहादत भी हो चुकी है। लोकतांत्रिक व्यवस्था में बहुमत का रोड-रोलर चलाकर अन्नदाता समुदाय की आवाज को कुचलने का कोई भी प्रयास उचित नहीं ठहराया जा सकता है। किसान अपने हित समझकर अगर सरकार के कृषि विधेयकों के खिलाफ राय दे रहा है तो उसकी मांगे माने जाने में क्या दिक्कत हो सकती है?
अहंकारी भाजपा याद रखे यहां ‘प्रधान‘ शब्द तक ‘कृषि‘ के बाद आता है। सत्ताधारी न भूलें कि हमारे देश में किसान ही प्रथम है और प्राथमिक भी। किसान अपना हक मांग रहे है, वे दृढ़ निश्चयी हैं कि वे इसे लेकर रहेंगे। न्यूनतम समर्थन मूल्य और मण्डी समितियों के अस्तित्व को लेकर सरकार और किसान संगठनों के बीच मतभेद है। सरकार से किसान तीनों कृषि विधयेक वापस लेने की मांग कर रहे हैं। कानून की वापसी का यह कोई पहला मामला नहीं है। पहले के भी ऐसे उदाहरण हैं। अतः भाजपा नेतृत्व की इस संबंध में हठधर्मी समझ में नहीं आती है। अगर इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाया जा रहा है तो यही कहा जा सकता है कि भाजपा का रवैया किसान विरोधी है। उसकी नीयत किसानों की भलाई करने की नहीं, पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने की है।