उत्तर-पूर्वी दिल्ली में भड़के साम्प्रदायिक दंगों से संबंधित मामले में एक व्यक्ति को गुरुवार को जमानत देते हुए कहा कि गवाह के बयान में विरोधाभास हैं। कड़कड़डूमा स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत की अदालत ने दंगों के दौरान कर्दमपुरी में 25 फरवरी को गोली लगने से गंभीर रुप से घायल रिजवान से जुड़े मामले में गुरमीत सिंह को 20 हजार रुपये के निजी मुचलके एवं इतने ही रुपये मूल्य के जमानती के आधार पर जमानत प्रदान की है। अदालत ने कहा कि सिंह को मामले में मंडोली जेल से गिरफ्तार किया गया और चश्मदीद रफीक ने कैसे आरोपी की पहचान की, इसका जवाब नहीं मिल पाया। अदालत ने कहा कि सीसीटीवी फुटेज घटना वाले स्थान का नहीं बल्कि आसपास के क्षेत्र का है।
अदालत ने आगे कहा कि रफीक ने 24 अप्रैल को अपनी गवाही दी जबकि घटना 25 फरवरी की है। अदालत ने कहा कि रफीक के बयान के अनुसार वह सब्जी बेचता था और 25 फरवरी को जब वह कर्दमपुरी पुलिया के पास सब्जी बेच रहा था तब साम्प्रदायिक दंगा हुआ और उसने देखा कि हिंदुओं की भीड़ कुछ मुस्लिमों को पीट रही थी और कुछ अज्ञात लोगों ने गोली चलाई। अदालत ने कहा कि अभियोजन ने एक चश्मदीद रफीक की गवाही पर भरोसा किया। वह दंगाई भीड़ में शामिल मौजूदा आरोपी गुरमीत समेत 56 लोगों की पहचान कर सकता था क्योंकि वे लोग आसपास ही रहते थे।
अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता (सिंह) को मौजूदा मामले में किसी भी गवाह की गवाही पर नहीं बल्कि मंडोली जेल से गिरफ्तार किया गया। अगर ऐसा है तो रफीक ने चेहरे से आरोपी की कैसे पहचान की, यह सवाल अब भी कायम है। दोनों पहलुओं के बीच विरोधाभास है। अदालत ने कहा कि पीड़ित रिजवान ने दंगाई भीड़ में हमलावर को नहीं देखा। अदालत ने सिंह को सबूतों से छेड़छाड़ नहीं करने और बिना अनुमति के शहर से बाहर नहीं जाने का निर्देश दिया। पुलिस की तरफ से पेश विशेष लोक अभियोजक राजीव कृष्ण शर्मा ने सिंह की जमानत का विरोध करते हुए कहा कि रफीक ने गवाही दी है कि सिंह समेत पांच लोग मामले में संलिप्त थे और इसलिए उसे मंडोली जेल से बाद में गिरफ्तार किया गया।