भाजपा को करारी हार तो दुमका और बेरमो दोनों विधानसभा सीटों पर मिली है, पर दुमका की पराजय ने पार्टी को अंदर तक घायल कर दिया है। सबसे बड़ी बात तो दुमका के बहाने संताल में झामुमो के गढ़ ढाहने के भाजपा नेतृत्व की कोशिशों को करारा धक्का लगा है।
संताल इलाके में व्यापक जनाधार का दावा करते रहे बाबूलाल मरांडी की भाजपा में वापसी के बाद पार्टी ने उन्हें दुमका में करिश्मा दिखाने का मौका दिया था। लेकिन दुमका में पार्टी की हार के साथ ही संतालों के सबसे बड़े सरदार बनने के बाबूलाल के सपने भी बिखर गए हैं। झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन और उनकी पत्नी रूपी सोरेन को दुमका लोकसभा सीट से शिकस्त देकर बाबूलाल ने जो सियासी ताकत दिखाई थी, उसे उन्होंने दुमका की धरती पर ही गंवा दी।
रघुवर भी नहीं बेहतर कर सके प्रोफाइल
पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास भी भावी सियासी पारी के लिए अपने प्रोफाइल को बेहतर नहीं कर पाए। विधानसभा चुनाव में खुद की सीट गंवाने और पार्टी को सत्ता से बाहर कराने की जिम्मेवारी के आरोपों के बावजूद उन्हें कुछ महीने पहले भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष की जिम्मेवारी सौंपी गई। बेरमो विधानसभा उपचुनाव का पूरा दारोमदार उन्हें ही सौंपा गया था। इसके पीछे मकसद यह था कि बिहार और उत्तर प्रदेश के लोगों के विरोधी होने का आरोप झेल रहे भाजपा प्रत्याशी योगेश्वर महतो बाटुल को रघुवर कम से कम वैश्य़ वोटों की संजीवनी प्रदान करेंगे। लेकिन जमीन पर ऐसा नहीं हो सका।
काम न आया सुदेश महतो का साथ
भाजपा ने बेरमो विधानसभा उपचुनाव में जीत के मकसद से इस बार आजसू का भी साथ लिया था। आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो ने भाजपा प्रत्याशी योगेश्वर महतो को समर्थन देने की घोषणा भी की। चुनाव प्रचार में हिस्सा भी लिया। इसके बावजूद भाजपा को जीत नहीं दिला सके। सुदेश के समर्थन के बाद भाजपा बेरमो में जीत पक्की मान रही थी क्योंकि, 2019 के विधानसभा चुनाव में बेरमो से आजसू उम्मीदवार काशीनाथ सिंह को 16546 वोट मिले थे। अनुमान है कि आजसू अपने जनाधार का यह वोट भाजपा के पक्ष में ट्रांसफर नहीं करा सका।
कहीं खुलाघात तो कहीं भीतरघात
भाजपा की हार में घात की भी कम भूमिका नहीं है। अपने अहं की तुष्टि नहीं होते देख भाजपा के कई दिग्गज नेताओं ने दूसरे बड़े नेताओं के लिए कहीं खुलाघात तो कहीं भीतरघात किया। कोयलांचल की एक सीट से कई बार सांसद रहे एक नेता ने बेरमो से टिकट पाने में विफल रहने पर अपने समर्थकों को शांत रहने के लिए कहा। दुमका में भी भाजपा के अंदर ही लोईस मरांडी को लेकर कई नेता सवाल खड़े करते रहे।
… तो ऐसे डूबी भाजपा की नैया
– चुनाव में भाजपा को शिकस्त देने के लिए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने फूलप्रूफ प्रचार का खाका खींचा था।
– सबसे पहले भाजपा को आदिवासी-मूलवासी विरोधी साबित करने के लिए जबर्दस्त सोशल मीडिय़ा कैंपेन चलाया।
– राज्य का खजाना खाली होने और विकास की प्रक्रिया अवरुद्ध होने के लिए केंद्र सरकार को जिम्मेवार ठहराने में झामुमो और कांग्रेस ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी।
– मतदान से हफ्ते भर पहले आदिवासी पहचान का गौरव दिलाने के लिए सीएम ने सरना कोड का प्रस्ताव विधानसभा से पारित कराने का स्टैंड लिया।
– भाजपा को हराने की रही-सही कसर मतदान से 48 घंटे पहले लोईस मरांडी को छात्रवृत्ति घोटाले की जिम्मेवार साबित करने के कैंपेन ने पूरी कर दी।
– बेरमो से भाजपा प्रत्याशी योगेश्वर महतो को बिहार-उत्तर प्रदेश से आए लोगों का विरोधी साबित करने में कांग्रेस उम्मीदवार के समर्थकों ने कोई कसर नहीं छोड़ी।