दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को कहा कि सुदर्शन टीवी को ‘बिंदास बोल’ कार्यक्रम की मंजूरी केन्द्र सरकार द्वारा मिलने को चुनौती देने वाली याचिका से जुड़े मुद्दे पर पहले से ही सुप्रीम कोर्ट विचार कर रही है, इसलिए हाईकोर्ट इस मुद्दे पर सुनवाई से खुद को अलग करता है।
जस्टिस नवीन चावला की बेंच ने इस मामले को आठ सप्ताह तक के लिए स्थगित करके सुप्रीम कोर्ट के फैसले की प्रतीक्षा का इंतजार करने के याचिकाकर्ता के वकील का आग्रह भी नामंजूर कर दिया। सुप्रीम कोर्ट गुरुवार को इस मामले की सुनवाई कर सकता है। इसके बाद याचिकाकर्ताओं (जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के पूर्व और मौजूदा छात्रों) के वकील ने कहा कि वह याचिका वापस लेंगे और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे। हाईकोर्ट ने कहा कि याचिका वापस ली गई इसलिए खारिज की जाती है। याचिका में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा सुदर्शन टीवी के कार्यक्रम ‘बिंदास बोल’ को मंजूरी दिए जाने के फैसले को चुनौती दी गई थी। इस कार्यक्रम के प्रोमो (कार्यक्रम का परिचय) में दावा किया गया था कि चैनल सरकारी सेवाओं में मुस्लिमों के घुसपैठ के षडयंत्र का बड़ा भंडाफोड़ करने वाला है।
सैयद मुज्तबा अतहर और रितेश सिराज की याचिका में दावा किया गया है कि प्रस्तावित शो में घृणा से लबरेज बयान भरे पड़े हैं और उसमें याचिकाकर्ताओं को बदनाम किया गया है और अगर यह मौजूदा याचिका पर कार्यक्रम के प्रसारण से पहले फैसला नहीं आता है तो उन्हें बेहद नुकसान पहुंचेगा और याचिका का कोई मतलब नहीं रह जाएगा।
याचिका में कहा गया कि मंत्रालय इस प्रस्तावित शो को रोकने के लिए केबल टीवी अधिनियम के तहत अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करने से परहेज कर रही है। उल्लेखनीय है कि 15 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने अगले आदेश तक चैनल द्वारा ‘बिंदास बोल’ के एपिसोड का प्रसारण करने पर रोक लगा दी थी। इसके बाद केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि सुदर्शन टीवी को जारी किए गए कारण बताओ नोटिस के मामले में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय आदेश के साथ तैयार है। सुदर्शन टीवी को यह नोटिस अंतर मंत्रालयी समूह की सिफारिश पर जारी किया गया था, जिसने चैनल के बिंदास बोल कार्यक्रम की सभी कड़ियों को देखा था