दिल्ली में पिछले कुछ दिनों में तेजी से बढ़े कोरोना वायरस के मामलों की वजह से संसद के शीतकालीन सत्र पर असर पड़ सकता है। इससे वाकिफ दो सूत्रों ने हमारे सहयोगी अखबार हिन्दुस्तान टाइम्स को यह जानकारी दी। नवंबर के महीने से शुरू होकर दिसंबर तक चलने वाले शीतकालीन सत्र को बजट सत्र में मिलाया जा सकता है। बजट सत्र की शुरुआत जनवरी के अंत में होती है।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सांसदों के बीच में चिंता थी कि कोरोना के बढ़ते मामलों के चलते राजधानी में संसद सत्र की अनुमति देने से अस्थिरता पैदा हो सकती है। उन्होंने बताया, ”मॉनसून सत्र बहुत विचार-विमार्श के साथ आयोजित किया गया था। रोजाना कई सौ टेस्टिंग करवाइ गई थी। इसके साथ ही, फिजिकल डिस्टेंसिंग, सैनिटाइजेशन आदि के काम भी किए गए थे, लेकिन इसके बावजूद भी कोरोना के कई केस सामने आए। अब जब दिल्ली में कोरोना वायरस के मामलों में फिर से तेजी आ गई है, तो कुछ अधिकारियों और सांसदों के सुझाव हैं कि शीतकालीन सत्र को कुछ समय के लिए रोक दिया जाए।
उन्होंने आगे कहा, ”शीतकालीन सत्र के बारे में कोई भी फैसला लेने के लिए, पूरा मामले पर अभी लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला और राज्यसभा चेयरपर्सन एम वेंकैया नायडू के बीच चर्चा होना बाकी है। शीतकालीन सत्र कोरोना वायरस महामारी के बीच शुरू होने वाला दूसरा संसद का सत्र होगा। हाल ही में मॉनसून सत्र भी कोरोना महामारी के बीच हुआ था।
मॉनसून सत्र के दौरान संसद से जुड़े कम से कम 50 लोग कोरोना वायरस से संक्रमित पाए गए थे। कई सांसद कोविड-19 से संक्रमित हो गए थे। कोरोना वायरस की ही वजह से मॉनसून सत्र को आठ दिनों के लिए छोटा कर दिया गया था। वहीं, जब मॉनसून सत्र की शुरुआत हुई थी, तब दिल्ली में रोजाना के मामले 4,001 थे, जबकि अब औसतन रोजाना 6670 नए मामले सामने आ रहे हैं।
संसद के पूर्व महासचिव पीडीटी अचार्य इस बारे में कहते हैं, ”एक साल में संसद तीन सत्र के लिए बैठती है, लेकिन ऐसा कोई नियम नहीं है कि कितने दिनों के लिए संसद सत्र को चलाना ही होगा।” उन्होंने आगे बताया कि संविधान के अनुसार, दो सत्रों के बीच छह महीने से ज्यादा का समय नहीं होना चाहिए।