बिहार में एक बार फिर नीतीशे कुमार… एनडीए को रुझानों में बहुमत मिलने से यह लगभग तय हो गया है। नीतीश कुमार की अगुआई में एनडीए गठबंधन ने स्पष्ट बहुमत का आंकड़ा पार कर लिया है तो तेजस्वी की कड़ी मेहनत नतीजा 100 से कम सिटों पर सिमटता दिख रहा है। 10 लाख नौकरियों का वादा और आक्रामक चुनाव प्रचार के दम पर चुनाव प्रचार को रोचक बनाने वाले तेजस्वी नीतीश से सत्ता छीनने में कामयाब नहीं रहे। आखिर इसके पीछे कौन सी वजहें हैं? क्या बिहार 15 साल के शासन के बाद भी नीतीश शासन के खिलाफ लहर नहीं है? या मोदी के नाम पर नैया पार लगी है? और क्यों आरजेडी जनता का भरोसा नहीं जीत पाई?
मोदी सरकार की योजनाओं का फायदा
बिहार में एनडीए की जीत के पीछे सबसे बड़ी वजह पीएम मोदी की लोकप्रियता और केंद्र सरकार की योजनाओं का जनता को मिले लाभ को माना जा रहा है। उज्ज्वला योजना के तहत गैस कनेक्शन वितरण हो या पीएम किसान सम्मान निधि से किसानों को मिली सहायता या फिर प्रधानमंत्री आवास योजना से गरीबों को मिले घर ने मोदी की लोकप्रियता को बरकरार रखा है। खासकर महिला वोटर्स में पीएम की लोकप्रियता बहुत अधिक है। एनडीए में पार्टी वाइज सीटों को देखने से भी यह साफ हो जाता है। बीजेपी के सीटों की संख्या जेडीयू से काफी अधिक है। बीजेपी इस चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है।
नीतीश से नराजगी पर मोदी की लोकप्रियता भारी
ऐसा नहीं है कि 15 सालों से सत्ता में काबिज नीतीश से लोगों में नाराजगी नहीं है। लोग एक तरफ अच्छी सड़कों और बिजली जैसी मूलभूत सुविधाओं से खुश हैं, लेकिन एक बड़ा वर्ग भ्रष्टाचार, शराबबंदी की विफलता और रोजगार के मोर्चे पर फेल होने की वजह से नीतीश कुमार को सत्ता से हटाना चाहता था, लेकिन ऐसे मतदाताओं में से अधिकतर ने मोदी को ध्यान में रखकर एनडीए को वोट किया। हिन्दुस्तान की टीम ने लगभग सभी विधानसभा सीटों पर जनता का मूड भांपने की कोशिश की थी तो यह साफ दिख रहा था कि लोगों में नीतीश से नारजगी है, लेकिन अधिकतर लोग मोदी के नाम पर वोट करने को तैयार हैं।
आरजेडी के वोट बैंक में सेंधमारी
बिहार में गरीब और गैर सवर्ण आरजेडी के समर्थक रहे हैं। लालू यादव ने यादव और मुस्लिम वोटबैंक के साथ अन्य पिछड़ी जातियों को भी अपने साथ मजबूती से जोड़ा था। लेकिन पिछले कुछ सालों में नीतीश और मोदी की जोड़ी ने आरजेडी के वोटबैंक में अच्छी सेंधमारी की है। दलित, महादलित सहित कई जातियों में मोदी और नीतीश की लोकप्रियता बढ़ी है। हर जाति वर्ग में गरीब तबके को राज्य और केंद्र सरकार की योजनाओं का सीधा फायदा हुआ है और इसलिए बहुत से लोगों ने अब जाति का मोह त्यागकर विकास के नाम पर वोटिंग को तरजीह दी है।
जंगलराज का डर बाकी?
लालू प्रसाद यादव और राबड़ी के शासन में 15 साल तक बिहार में खराब कानून व्यवस्था की वजह से विपक्ष ने जंगलराज का जो टैग आरजेडी के माथे पर लगाया उसका असर अब तक कायम है। यही वजह है कि तेजस्वी यादव ने पोस्टरों से लालू और राबड़ी को हटाने का जोखिम लिया। उन्होंने कई बार साफ शब्दों में पुराने शासन में रही कमियों को लेकर माफी मांग चुके हैं। बिहार में एक बड़ी तादात ऐसे लोगों की है जो एक बार फिर आरजेडी को आजमाना चाहते हैं, लेकिन कहीं ना कहीं उनके मन में डर है कि राज्य में हिंसा वाले पुराने दौर की वापसी ना हो जाए।
नीतीश को अनुभव का फायदा
पिछले 15 सालों में नीतीश ने बिहार की तस्वीर काफी हद तक बदल दी है। रोजगार के मोर्चे पर वह जरूर कमजोर दिखते हैं, लेकिन सड़क, बिजली, पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए उनकी सरकार ने काफी काम किया है। लोगों को इसका सीधा फायदा हुआ है और उनके जीवन स्तर में सुधार देखने को मिला है। बिहार की अर्थव्यवस्था भी तेजी से बढ़ी है। कुछ एग्जिट पोल्स में नीतीश को सीएम कैंडिडेट के तौर पर तेजस्वी से पीछे जरूर दिखाया गया था, लेकिन अधिकतर मतदाता नीतीश को ज्यादा अनुभव की वजह से तरजीह देते हैं। बहुत से वोटर्स यह कहते हैं कि जिस तरह नीतीश ने राज्य में इन्फ्रास्ट्रक्चर का विकास किया है उससे धीरे-धीरे रोजगार धंधे भी शुरू हो सकते हैं।