चीन में कोरोना के कहर से निपटने के लिए दूध और अंडे का सहारा लिया जा रहा है। सरकार ने अभिभावकों को सख्त निर्देश दे रखा है कि वे रोज सुबह नाश्ते में बच्चों को दूध और अंडा ही खिलाएं। दरअसल, दूध और अंडे में प्रोटीन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होता है। इसे प्रतिरोधक तंत्र में नई कोशिकाओं के विकास को बढ़ावा देने वाले अहम तत्व के तौर पर देखा जाता है।
शंघाई स्थित हुआशान हॉस्पिटल के शीर्ष संक्रामक रोग विशेषज्ञ झांग वेनहॉन्ग ने कहा, दिन की शुरुआत ब्रेड और दलिया से करने की परंपरा अब नहीं चलेगी। मां-बाप को नाश्ते में बच्चों को अच्छी मात्रा में दूध और अंडे परोसना होगा। हाल ही में हुए नेशनल पीपुल्स कांग्रेस की बैठक में भी यह मांग उठी थी कि सरकार प्रत्येक व्यक्ति के लिए रोजाना कम से कम 300 मिलीलीटर दूध पीना और चार अंडे खाना अनिवार्य कर दे।
सोशल मीडिया पर छिड़ी बहस
-चीन में दूध और अंडे के सेवन को अनिवार्य करने की योजना को लेकर सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई है। कुछ यूजर जहां दूध और अंडे में मौजूद पोषक तत्वों के कोरोना से लड़ने में कारगर होने के प्रमाण मांग रह हैं तो कुछ ने यह जानने की इच्छा जताई है कि क्या चीनियों की पारंपरिक डाइट में अतिरिक्त पशु प्रोटीन शामिल करने की जरूरत है। वहीं, कुछ यूजर दूध का सेवन बढ़ने से पर्यावरण को होने वाले नुकसान को लेकर चिंतित हैं। इसके अलावा मवेशियों की संख्या बढ़ने से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में इजाफे की भी आशंका जताई गई है।
चीन दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता
-अमेरिका के बाद चीन डेयरी उत्पादों का दूसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता है। गाय के दूध के उत्पादन के मामले में वह तीसरे स्थान पर है। देश में बीते पांच वर्षों में दूध की प्रति व्यक्ति सालाना खपत भी बढ़कर 34 लीटर पर पहुंच गई है। यही नहीं, चीन सरकार ने 2025 तक दुग्ध उत्पादन को 4.5 करोड़ टन पर पहुंचाने का लक्ष्य रखा है। ऐसे में मवेशियों के चारे के लिए दुनियाभर में वनों की कटाई बढ़ने की आशंका जताई जा रही है। इसके अलावा ज्यादा अंडे हासिल करने के लिए मुर्गियों पर एंटीबॉयोटिक इंजेक्शन का इस्तेमाल बढ़ने का भी खतरा पनपा है।
सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक
-चायनीज न्यूट्रिशन एसोसिएशन ज्यादा मात्रा में प्रोटीन हासिल करने के लिए दूध और अंडे के बजाय सोया उत्पादों, मसलन सोयाबीन, सोया मिल्क, सोया पनीर आदि के सेवन की सलाह देता है। हालांकि, चीन में सुबह-सुबह घर पर ताजा दूध आना सदियों से ही सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक माना जाता है। यह भी कहा जाता है कि देश में सिर्फ अमीर परिवार ही दूध या उससे बनने उत्पाद खरीदने अथवा बनाने में सक्षम हैं। ऐसे में चीनी नागरिक सोया उत्पाद जैसे सस्ते लेकिन ज्यादा पौष्टिक स्रोतों के बजाय दूध खरीदने के पीछे ज्यादा भागते नजर आते हैं।