पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) ने एक अध्ययन में पाया है कि पंजाब में पराली जलना एक स्थानीय समस्या है और यह दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में वायु प्रदूषण को नहीं बढ़ाती है, बल्कि किसान खेतों में आग लगा कर अपने बच्चों और भाइयों का ही दम घोट रहे हैं।
अध्ययन कहता है कि हवा की दक्षिण-पूर्व दिशा से, हरियाणा और नई दिल्ली जैसे पड़ोसी राज्यों में हवा की गुणवत्ता के प्रभावित होने की संभावना नहीं है।अध्ययन कहता है कि तीन वर्षों में किए गए हवा की गति के विस्तृत विश्लेषण से पता चलता है कि अक्टूबर और नवंबर में तापमान में गिरावट हवा की धाराओं के गठन को कम करती है।
पीएयू के जलवायु परिवर्तन और कृषि मौसम विज्ञान विभाग की प्रमुख, प्रभजोत कौर सिद्धू ने कहा कि “इसलिए, एक स्थिर वातावरण बनाया गया है, जिसमें वायु प्रवाह की थोड़ी ऊपर की ओर गति होती है और हवा का बहाव भी कम हो जाता है।” उन्होंने अपनी टीम के साथ 2017 से 2019 तक के तीन वर्षों के आंकड़ों का विश्लेषण किया है ताकि यह निष्कर्ष निकाला जा सके कि कम हवा की गति और तापमान में गिरावट एक बंद कमरे की स्थिति बनाती हैं जिसमें शायद ही कुछ भी प्रवेश करता है या बाहर निकलता है।
उन्होंने कहा कि केवल एक बार, हवा की गति 5 किमी प्रति घंटे से अधिक (6.11 प्रति घंटे) थी और हवा की दिशा दक्षिण पूर्व (दिल्ली के विपरीत) की ओर थी। उन्होंने कहा कि हर धान उगाने वाला राज्य वायु प्रदूषण को पैदा करने के आरोपों पीड़ित हैं। सीधे शब्दों में, पंजाब का धुआं दिल्ली के फेफड़ों को चट करने के लिए 300-400 किमी की यात्रा नहीं कर रहा है। बल्कि पंजाब के किसान अपने खेतों में आग लगाकर अपने ही बच्चों और भाइयों को नुकसान पहुंचा रहे हैं।