उत्तर-पूर्वी दिल्ली में भड़के साम्प्रदायिक दंगों के मामले में आरोपी तीन लोगों को अदालत ने जमानत दे दी है। अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि पुलिस सैंकड़ों लोगों की भीड़ में से तीन को ही कैसे पहचान पाई। यह स्पष्टीकरण देने में पुलिस अदालत में असफल रही है। इसी का फायदा आरोपियों को दिया जा रहा है।
कड़कड़डूमा स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव की अदालत ने तीन आरोपियों को जमानत देते हुए कहा कि यह हैरत में डालने वाली बात है कि घटना के 40 दिन बाद उसी थाने में तैनात पुलिसकर्मी के बयान दर्ज किए जाते हैं जबकि वह 24 घंटे बयान दर्ज कराने के लिए थाने में उपलब्ध था। अदालत ने कहा कि ऐसे में तमाम संभावना को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। अदालत ने यह भी कहा कि जिस मामले में ये तीनों युवक आरोपी हैं उस मामले में पुलिस अदालत में आरोपपत्र दाखिल कर चुकी है। इससे साफ है कि मामले की जांच पूरी हो चुकी है और आरोपियों को जमानत देने से कोई दिक्कत नहीं है।
अदालत ने तीनों आरोपियों को 20-20 हजार रुपये के निजी मुचलके एवं इतने ही रुपये मूल्य के जमानती के आधार पर आरोपियों को जमानत दी है। इन तीनों आरेापियों यपर दुकानें लूटने, जलाने आदि का आरोप था। इनके खिलाफ दयालपुर थाने में मुकदमा दर्ज किया गया था।
इस मामले में अदालत का यह भी कहना था कि सैंकड़ों की भीड़ हमला करती है। लेकिन बीट कांस्टेबल महज तीन लोगों की दंगाइयों के तौर पर पहचान करता है। यह बात अदालत को कोई संयोगवश नहीं लगती। यहां तक की पुलिस ने इस मामले में महज एक व्यक्ति(बीट कांस्टेबल) को चश्मदीद गवाह बनाया है। जिसने शिनाख्त परेड के दौरान इन तीनों आरोपियों की पहचान की। अदालत ने कहा कि जबकि 23 फरवरी से 26 फरवरी के बीच चले भयानक दंगों में बीट कांस्टेबल को तीन चेहरे याद रहे यह हैरत में डालने वाली बात है।