बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर महागठबंधन और एनडीए समेत विभिन्न दलों के लिए सारे समीकरण बदल से गए हैं। इस बदले समीकरण में कांग्रेस के लिए भी मुश्किलें खड़ी होंगी। दरअसल कांग्रेस के सामने पहले चरण के चुनाव में अपनी नौ सीटें बचाने की बड़ी चुनौती सामने होंगी। हालांकि इनमें आठ सीटें पिछले चुनाव में इसकी जीती हुई हैं। वहीं जदयू के विधायक मुन्ना शाही के कांग्रेस में आ जाने से एक सीटिंग सीट बढ़ गई।
पहले चरण की 71 में से 21 सीटें कांग्रेस के खाते में
पिछले विधानसभा चुनाव से इसबार का समीकरण कुछ अलग हो गया है। 2015 के चुनाव में कांग्रेस, राजद और जदयू साथ मिलकर लड़े थे।
अधिसंख्य सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवारों के सामने थे भाजपा के उम्मीदवार तो कुछ पर लोजपा के प्रत्याशियों से भी टक्कर हुई थी। लिहाजा कांग्रेस का स्ट्राइक रेट 64 प्रतिशत था। 42 में 27 सीटें इस पार्टी ने जीत ली थी, लेकिन इस बार का चुनावी परिदृश्य कुछ अलग है। भाजपा तो कांग्रेस के सामने है ही जदयू भी उसके साथ विरोध में खड़ी है। इसके अलावा पिछले चुनाव में भाजपा के साथ मिलकर मैदान में उतरने वाली लोजपा और रालोसपा भी अलग से मैदान में खड़ी है। ये दोनों पार्टियां चुनाव को बहुकोणीय बनाने का प्रयास करेंगी। पहले चरण की 71 में से 21 सीटें कांग्रेस के खाते में गई हैं। इस बार इन 21 में से 11 सीटों पर तो कांग्रेसी उम्मीदवारों को अपने परम्परागत प्रतिद्वंद्वी भाजपा का सामना करना होगा, लेकिन पिछले चुनाव के दोस्त जदयू से कांग्रेस के सात उम्मीदवारों को दो-दो हाथ करने होंगे। तीन सीटों पर जदयू के साथी दल हम के उम्मीदवारों से भी इनका मुकाबला होगा। लिहाजा स्ट्राइक रेट बरकरार रखने के साथ जीती हुई सीटों को भी बचाना एक बड़ी चुनौती है।
21 सीटों में नौ विर्तमान विधायक लड़ रहे चुनाव
खास बात यह है कि इस बार पहले चरण में कांग्रेस के खाते में गईं 21 सीटों में नौ विर्तमान विधायक पार्टी के सिम्बल पर चुनाव लड़ रहे हैं। इनमें भी बरबीघा और गोबिन्दपुर में कांग्रेस उम्मीदवारों को पुरानी पार्टी से ही टक्कर लेना होगा। बरबीघा के कांग्रेस उम्मीदवार गजानंद शाही पिछली बार जदयू से ही चुनाव जीते थे, लेकिन इस बार वह अपने पुराने दल जदयू को ही चुनौती देंगे। कांग्रेस की सीटिंग सीटों में दो कुटुम्बा और सिकन्दरा के उम्मीदवारों को इसबार जदयू के साथी दल हम से मुकाबला होगा। कहलगांव, बिक्रम, बक्सर, कुटुम्बा,औरंगाबाद और वजीरगंज में कांग्रेस के उम्मीदवारों को भाजपा के उम्मीदवारों से टक्कर लेनी होगी। लेकिन खास बात यह है कि इसमें कांग्रेस के दो नेता कहलगांव से सदानंद सिंह और वजीरगंज से जीते अवधेश सिंह ने खुद की जगह अपने पुत्रों को मौदान में उतारा है। पहली बार के ये लड़ाके मैदान में पुराने प्रतिद्वद्वी को कैसे टक्कर देंगे यह देखना दिलचस्प होगा।
लोजपा और रालोसपा के भी उम्मीदवार चुनाव को बहुकोणीय बना सकते हैं
कुछ सीटों पर लोजपा और रालोसपा के भी उम्मीदवार चुनाव को बहुकोणीय बना सकते हैं। ये दोनों दल पिछले चुनाव में एनडीए के घटक थे। रालोसपा तो लोकसभा चुनाव के समय ही एनडीए को छोड़कर महागठबंधन में आ गई थी, लेकिन, अब यह पार्टी महागठबंधन में भी नहीं है। लिहाजा महागठबंधन उम्मीदवारों को इस पार्टी के उम्मीदवार से भी भिड़ना होगा। ये दल अगर अपने प्रभाव वाले वोटों को अपने साथ जोड़े रहे तो परेशानी और बढ़ेगी। हालांकि, ऐसी परिस्थिति में इसका खामियाजा दोनों गठबंधनों को भुगतना पड़ेगा।