दहेज प्रताड़ना व अन्य आरोपों में ससुराल पक्ष के तीन लोगों को बरी करने के मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत के फैसले को सत्र अदालत ने भी बरकरार रखा है। सत्र अदालत ने कहा कि इस मामले में अभियोजन पक्ष को कई मौके दिए गए कि वह अतिरिक्त गवाह पेश करे। लेकिन अभियोजन पक्ष हर बार बहाने बनाकर सुनवाई का टाल रहा था। लम्बे समय तक मुकदमे को लटकाए रखना अदालत के समय को बर्बाद करना होता है। जिसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
रोहिणी स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश जितेन्द्र कुमार मिश्रा की अदालत ने आरोपियों को बरी करने निर्णय को न्यायसंगत करार देते हुए कहा कि जब अभियोजन पक्ष ने महज दो गवाहों के बयान दर्ज कराए और वो भी अपने बयानों से पलट गए तो किस आधार पर निचली अदालत आरोपियों को सजा सुनाती। सत्र अदालत ने यह भी कहा कि अभियोजन पक्ष ने अतिरिक्त गवाह पेश करने की अनुमति मांगी थी। अदालत की इजाजत मिलने के बाद भी सालों तक अभियोजन पक्ष एक भी गवाह पेश नहीं कर पाया। जबकि इस दौरान छह तारीखें लगी और अदालत ने हर बार अभियोजन पक्ष से गवाह को लेकर सवाल किए। परन्तु हर बार एक ही जवाब मिला कि थोड़ा और वक्त दिया जाए। अदालत के पास इतना वक्त नहीं होता कि वह एक ही मुकदमे पर सालों तक फाइल को सामने रखकर साक्ष्य या गवाह आने का इंतजार करती रहे।
पेश मामले में महिला ने मुकदमा दर्ज कराया था। उसके ससुराल वाले उसे दहेज के लिए प्रताड़ित करते हैं। इस मामले में महिला ने अपने ससुर व दो देवरों के खिलाफ दहेज प्रताड़ना का मुकदमा दर्ज कराया था। हालांकि गवाही के दौरान वह अपने बयानों से पलट गई थी। परन्तु पुलिस का कहना था कि उनके पास और पुख्ता गवाह हैं। लेकिन पुलिस ने उन्हें अदालत में पेश नहीं किया।