इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि किसी मुकदमे में आरोपपत्र दाखिल होने के बाद भी अग्रिम जमानत पर सुनवाई की जा सकती है। इसी क्रम में कोर्ट ने दहेज उत्पीड़न के एक मामले में अग्रिम जमानत अर्जी पर सुनवाई करते हुए आरोपी के विरुद्ध अगले छह माह तक उत्पीड़नात्मक कार्रवाई नहीं करने का निर्देश दिया है।
यह आदेश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा ने प्रयागराज के विनय कुमार शुक्ल की अग्रिम जमानत अर्जी पर अधिवक्ता विभू राय को सुनकर दिया है। विनय शुक्ल के खिलाफ उसकी पत्नी ने महिला थाने में दहेज उत्पीड़न का मुकदमा दर्ज कराया है। इसी मामले में गिरफ्तारी से बचने के लिए विनय ने हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत अर्जी दाखिल की।
सरकारी वकील ने अर्जी का विरोध करते हुए कहा कि इस मामले में आरोप पत्र दाखिल हो चुका है। जबकि याची के अधिवक्ता विभू राय ने सिद्धार्थ वरदराजन बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के केस में हाईकोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि चार्जशीट दाखिल होने के बाद भी अग्रिम जमानत की अर्जी पर सुनवाई हो सकती है।
कोर्ट ने इस तर्क को स्वीकार करते हुए कहा कि मामला पति-पत्नी के बीच का है इसलिए इसे सुलह समझौते से तय करने का प्रयास करना चाहिए। साथ ही मामले को हाईकोर्ट के मध्यस्थता केंद्र भेजते हुए मध्यस्थ से पति-पत्नी का विवाद सुलह समझौते के आधार पर छह माह में तय करने को कहा है। याचिका पर छह माह बाद सुनवाई होगी। कोर्ट ने तब तक याची के खिलाफ किसी भी प्रकार की उत्पीड़नात्मक कार्रवाई नहीं करने का निर्देश दिया है।