तबलीगी जमात से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हाल के समय में अभिव्यक्ति की आजादी का सबसे अधिक दुरुपयोग हो रहा है। इन याचिकाओं में तबलीगी जमात के खिलाफ फेक न्यूज प्रसारित करने और निजामुद्दीन मरकज घटना का सांप्रदायिक रूप देने का का आरोप लगाकर टीवी चैनलों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई है।
चीफ जस्टिस एसए बोबड़े की अगुआई वाली पीठ ने केंद्र सरकार की ओर से दायर हलफनामे पर भी कड़ी प्रतिक्रिया दी और कहा कि इसे किसी जूनियर अधिकारी द्वारा फाइल किया गया है। इसमें याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए गलत रिपोर्टिंग के एक भी मामले को विशिष्ट रूप से संबोधित नहीं किया गया है। चीफ जस्टिस बोबड़े ने सॉलिसिटर जनरल से कहा, ”आप इस कोर्ट के साथ इस तरह का व्यवहार नहीं कर सकते हैं। हलफमाना एक जूनियर अधिकारी द्वारा दायर किया गया है। यह बहुत गोलमोल है और खराब रिपोर्टिंग की किसी घटना पर प्रतिक्रिया नहीं है।”
कोर्ट ने मेहता से यह सुनिश्चित करने को कहा कि संबंधित विभाग के सचिव नया हलफनामा दायर करें। चीफ जस्टिस ने कहा, ”सचिव को हमें बताना है कि वह विशिष्ट घटनाओं (याचिकार्ता की ओर से उठाए गए) के बारे में क्या सोचते हैं और इस तरह का बेतुका जवाब ना दें जिस तरह अभी दिया गया है।” मामले की अगली सुनवाई दो सप्ताह बाद होगी।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने कहा कि सरकार ने कहा है कि इसमें अभिव्यक्ति की आजादी शामिल है। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा, ”हाल के समय में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता उन आजादियों में से एक है जिनका सबसे अधिक दुरुपयोग हुआ है।” जमियत उलेमा-ए-हिंद, पीस पार्टी, डीजे हल्ली फेडरेशन ऑफ मस्जिद मदारिस, वक्फ इंस्टीट्यूट और अब्दुल कुद्दुस लस्कर की ओर से दायर याचिकाओं में आरोप लगाया गया है कि मीडिया की रिपोर्टिंग एकतरफा थी और मुस्लिम समुदाय का गलत चित्रण किया गया।