राजद और कांग्रेस की दोस्ती के बाइस साल पूरे हो गए। इस बीच दोस्ती टूटी भी और जुड़ी भी पर नतीजों में बहुत ज्यादा अंतर नहीं आया। दोनों के प्रदर्शन को हवा के रुख ने तय किया। इस बार स्थिति थोड़ी भिन्न है। हम और रालोसपा के जाने के बाद भी वामदल, वीआईपी और एनसीपी महागठबंधन का हिस्सा हैं। रालोसपा को तो महागठबंधन नहीं रोक पाया लेकिन वाम दलों का साथ कुछ नया गुल खिला सकता है।
बिहार में कांग्रेस-राजद की दोस्ती की बात करें तो यह वर्ष 1998 के लोस चुनाव से शुरू हुई और 1999 के लोकसभा चुनाव में भी बरकरार रही। तब संयुक्त बिहार था। वर्ष 2000 के विस चुनाव में दोस्ती टूटी। तब कांग्रेस 324 सीटों पर लड़ी और 23 जीती। वहीं राजद ने 293 सीटों पर लड़ 124 पर जीत हासिल की। चुनाव बाद फिर गठबंधन हुआ और लालू यादव सीएम बने। 2004 का लोस चुनाव साथ लड़ा। राजद ने 22 और कांग्रेस ने तीन सीट जीतीं। बिहार से झारखंड अलग होने के बाद 2005 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में भी दोस्ती रही। राजद 175 सीट पर लड़ा और 54 जीतीं। वहीं कांग्रेस 51 सीटों पर लड़कर नौ जीत सकी।
2009 के लोस चुनाव में दोस्ती टूटी। राजद 22 से चार सीट पर आ गया, जबकि कांग्रेस ने तीन सीटें जीतीं। वर्ष 2010 का विस चुनाव दोनों अलग लड़े। कांग्रेस चार और राजद भी 22 पर सिमट गया। 2015 के विधानसभा चुनाव में राजद और जदयू का साथ पाकर कांग्रेस का प्रदर्शन भी बेहतर हुआ। तब कांग्रेस ने 41 सीटों पर लड़कर 27 जीतीं। वहीं राजद 101 सीटों पर लड़ा और 80 पर जीत हासिल की। पिछले विस चुनाव में महागठबंधन में तीन ही दल थे। जदयू, राजद और कांग्रेस। जदयू और राजद 101-101 सीटों पर लड़े थे। जबकि कांग्रेस के हिस्से 41 सीटें आई थीं। एनडीए में भाजपा के साथ लोजपा, रालोसपा, हम शामिल थीं। महा गठबंधन को 178 पर और एनडीए को 58 सीटों पर जीत मिली थी।
साथ आने से मिली मजबूती
एक दौर में बिहार में वामदल मजबूत थे। इस बार वामदलों का साथ मिलने से राजद और कांग्रेस दोनों उत्साहित हैं। असल में वामदलों का राज्य के बड़े हिस्से में प्रभाव है। वो अलग रहकर ज्यादा सीटें तो नहीं जीत पाते लेकिन दूसरे दलों के साथ मिलकर उनकी स्थिति मजबूत बनाने में मदद जरूर कर सकते हैं। वर्ष 2015 के चुनाव की बात करें तो माले और भाकपा 98-98 सीटों पर और माकपा 43 सीट पर लड़े थे। तीनों ने मिलाकर तकरीबन छह प्रतिशत वोट हासिल किए थे, जिसमें माले को सर्वाधिक 3.82 प्रतिशत वोट मिले थे।
कई चेहरों की अखर रही कमी
राजद और कांग्रेस की दोस्ती को बरकरार रखने में कई चेहरे प्रमुख भूमिका अदा करते रहे हैं। इनमें से रघुवंश बाबू दुनियां से विदा हो गए। लालू यादव जेल में हैं तो शरद यादव अस्पताल में। वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राजनैतिक कारणों से फिलहाल मुख्यधारा में नहीं हैं।