दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी का दावा करने वाली भाजपा इस बार विधानसभा चुनाव में प्रत्याशियों की जमानत जब्त होने का दाग मिटाने में लगी है। जब से भाजपा चुनाव लड़ रही है, सरकार में आए या विपक्ष में, कुछ प्रत्याशियों की जमानत जब्त होती रही है। साल 2015 के चुनाव में सबसे अधिक मत लाने के बावजूद भाजपा के एक प्रत्याशी अपनी जमानत नहीं बचा पाए थे। पार्टी की कोशिश है कि इस बार के चुनाव में ऐसी नौबत नहीं आए और जमानत जब्त होने के दाग को वह इस चुनाव में धो ले।
1980 से भाजपा अस्तित्व में है। इसके पहले जनसंघ था। शुरू के वर्षों में देखें तो भाजपा 200 से अधिक सीटों पर चुनाव जरूर लड़ी पर उसके प्रत्याशियों की जमानत जब्त होने की संख्या भी अधिक थी। 1980 में पार्टी ने 246 सीटों पर चुनाव लड़ा। 21 सीटों पर जीत हासिल हुई पर 175 प्रत्याशी अपनी जमानत नहीं बचा सके। इसके बाद 1985 के चुनाव में भी 234 में से 172 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी। 1990 के चुनाव में भी 237 में से 135 सीटों पर भाजपा अपनी जमानत नहीं बचा सकी।
भाजपा प्रत्याशियों की जमानत सबसे अधिक 1995 में जब्त हुई। लालू लहर में 315 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली भाजपा 41 सीट जीतने में तो कामयाब रही पर उसके 208 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई। साल 2000 का चुनाव पार्टी के लिए बड़े बदलाव वाला साबित रहा। 20 वर्षों से बिहार में संघर्ष कर रही भाजपा को बीते वर्षों की तुलना में बड़ी सफलता हासिल हुई। साल 2000 के चुनाव में भाजपा 168 सीटों पर चुनाव लड़ी और उसमें से 67 सीटों पर जीत हासिल हुई। मात्र 33 प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई। फरवरी 2005 के चुनाव में 103 में से 37 पर जीत हासिल हुई और 34 की जमानत जब्त हुई, जबकि अक्टूबर 2005 के चुनाव में 102 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली भाजपा 55 पर जीती और मात्र नौ प्रत्याशियों की जमानत जब्त हुई।