रोसड़ा समस्तीपुर की आर्थिक व सांस्कृतिक गतिविधियों का शहर है। यह शहर जितना सोने की चमक के लिए जाना जाता है उतना ही कबीरपंथी विचारधार व आरसी प्रसाद की कविताओं के लिए। कभी समाजवादियों का गढ़ रहे रोसड़ा सीट पर इस बार सबकी नजरें टिकी हैं।
मतदाताओं ने सबसे अधिक आठ बार समाजवादी विचारधारा से जुड़ी पार्टियों के प्रत्याशियों को अपना विधायक चुना है। पिछले चुनाव में यह सीट महागठबंधन की झोली में चली गयी। कांग्रेस के डॉ. अशोक कुमार ने अपनी जीत का पताका लहराया। अब सियासी समीकरण बदले हैं। फिर नए समीकरण से जीत हार की पटकथा लिखी जाएगी। रोचक मुकाबले के आसार हैं।
अभी एनडीए व महागठबंधन दोनों ही इस सीट के लिए उम्मीदवार तय नहीं कर पाये हैं। कुल मिलाकर अभी इतना हीं कहा जा सकता है कि प्रत्याशी चाहे कोई हो मुकाबला तगड़ा होगा।
नए परिसीमन के बाद सीट सुरक्षित
2010 नए परिसीमन के बाद रोसड़ा सीट सुरक्षित हो गया। सिंघिया विधानसभा को विलोपित कर सिंघिया प्रखंड की 12 पंचायतों को रोसड़ा में मिला दिया गया और शिवाजीनगर प्रखंड के 06 पंचायतों को रोसड़ा से काटकर वारिसनगर विधानसभा में मिला दिया गया। रोसड़ा विधानसभा में कुल 39 पंचायत शामिल हैं। जिसमें रोसड़ा की 16, सिंघिया की 12 और शिवाजीनगर की 11 पंचायत हैं।
1952 से 2005 तक समान्य सीट
1952 से 2005 तक रोसड़ा सामान्य क्षेत्र था। तब सर्वाधिक आठ बार समाजवादियों और पांच बार कांग्रेस को प्रतिनिधित्व का मौका मिला। एक बार जनसंघ व एक बार भाजपा और एक बार निर्दलीय ने अपनी उपस्थिति दर्ज करायी। 1952 में रोसड़ा में दो सीट एक सामान्य और एक सुरिक्षत हुआ करता था। 1952 के चुनाव में सामान्य सीट पर कांग्रेस के महावीर राऊत व सुरक्षित सीट पर इसी पार्टी के बालेश्वर राम जीत कर विधानसभा पहुंचे। 1957 में रोसड़ा को विभक्त कर हसनपुर विधानसभा का गठन किया गया। इस चुनाव में भी रोसड़ा सीट पर महावीर राउत का ही कब्जा रहा।