देश में लोकतंत्र का पहला महापर्व बेहद रोमांचक और चुनौतीपूर्ण था। विधानसभा चुनाव 1952 के प्रचार और मतदान की यादें कई बुजुर्ग आज भी आंखों में संजोए हैं। अधिकांश प्रत्याशी पैदल, साइकिल, टमटम या बैलगाड़ी से प्रचार करने निकलते थे। बूथों पर एक कतार में सभी प्रत्याशियों के अलग-अलग चुनाव चिह्न वाले बक्से रखे गए थे। वोटर पर्ची लेकर बूथ पर पहुंचते थे और उन्हें मतपत्र दिया जाता था। लेकिन वोट डालना इतना आसान नहीं था।
टीएनबी कॉलेज भागलपुर के पूर्व प्राचार्य प्रो. सीपीएन सिंह को अपने पैतृक गांव तिसिऔता (अब वैशाली जिला में) स्कूल पर मतदान का नजारा अब भी याद है। रिटायर होकर मुजफ्फरपुर के जूरनछपरा में रह रहे प्रो. सिंह ने बताया कि पातेपुर क्षेत्र से चार प्रत्याशी चुनाव लड़े। बूथ पर चार बक्से रखे थे। कांग्रेस के भूवनेश्वर चौधरी के बक्सा पर दो बैलों की जोड़ी, सोशलिस्ट नथुनीलाल मेहता के बक्सा पर गाछ (वृक्ष), आचार्य कृपलानी की किसान मजदूर प्रजा पार्टी के प्रत्याशी श्यामनंदन सिंह के बक्सा पर झोपड़ी और निर्दलीय छेदीलाल राय के बक्सा पर ऊंट निशान था। पातेपुर में सोशलिस्ट पार्टी की हवा थी, परन्तु तिसिऔता के श्यामनंदन सिंह की उम्मीदवारी के कारण गांव में 95 प्रतिशत वोट केएमपीपी को मिल रहे थे। ये वही श्यामनंदन सिंह थे, जिनका तब शहर में श्याम टॉकिज था।
पोलिंग एजेंट ने दी चुनौती, नहीं मिला मतपत्र
सीपीएन सिंह बताते हैं कि वे स्कूली छात्र थे, परन्तु कोलकाता में पुलिस सेवा में कार्यरत बटेश्वर सिंह के नाम की पर्ची लेकर बूथ पर कतार में खड़े थे। उनके परिवार के ही भतीजा वालेश्वर प्रसाद सिंह सोशलिस्ट पार्टी के पोलिंग एजेंट थे। पोलिंग एजेंट की चुनौती पर चुनाव अधिकारी ने पहचान के लिए चौकीकार को बुलाया। चौकीदार ने पर्दा डालने के लिए कहा- इन्हें कुछ लोग चंद्रेश्वर सिंह और कुछ लोग बटेश्वर सिंह कहते हैं। भतीजा अपनी बात पर अडिग रहे। अंतत: चाचा को मतपत्र नहीं दिया गया। चुनाव में सोशलिस्ट प्रत्याशी नथुनीलाल मेहता निर्वाचित हुए। निर्दलीय छेदीलाल राय दूसरे और कांग्रेस तीसरे स्थान पर रही।
… सरकार अन्हार में न बुझाएल तअ गाछ वाला बक्सा में गिरा देली
मुरौल प्रखंड के महमदपुर गांव के मूल निवासी एवं शहर के वरीय चिकित्सक डॉ. सीपीएन ठाकुर ने भी छात्र जीवन में दरधा बूथ पर मतदान किया था। सकरा विधानसभा क्षेत्र से एक अनुसूचित जाति के और एक सामान्य वर्ग के विधायक का निर्वाचन होना था। कांग्रेस व सोशलिस्ट पार्टी ने दो-दो और केएमपीपी ने एक प्रत्याशी खड़ा किया। वोटरों को पहले से हिदायत थी कि किस चुनाव चिह्न के बक्सा में वोट डालना है। एक वोटर बाहर निकला तो एक दबंग ने सवाल किया- किस बक्से में डाले? उसने दांत दिखाते हुए जवाब दिया- ‘सरकार अन्हार में न बुझाएल तअ गाछ वाला बक्सा में गिरा देली।’ तोरा दिन में बैल वाला बक्सा न सूझलउ- पूछते हुए एक थप्पड़ रसीद किया।
बैलगाड़ी पर ढोल-झाल बजा करते थे प्रचार
पूर्व पीपी कुमोद सहाय ने भी जब पहले चुनाव में बीबी कॉलेजिएट स्कूल पर मतदान किया, तब छात्र थे। न कोई हंगामा, न रैली, लेकिन अंदर-अंदर ध्रुवीकरण से रोमांच था। अधिकांश प्रत्याशी पैदल, साइकिल- टमटम से प्रचार करते थे। गांवों में सोशलिस्ट उम्मीदवार बैलगाड़ी पर ढोल-झाल बजाकर प्रचार करते थे। शहर में कांग्रेस के विंदेश्वरी प्रसाद वर्मा और निर्दलीय राय बहादुर उमाशंकर प्रसाद में सीधा मुकाबला हुआ। मतदान के बाद हल्ला हुआ कि विंदेश्वरी बाबू हार गए, परन्तु मतगणना में वे जीत गए।