दिल्ली की एक अदालत ने उत्तर-पूर्वी दिल्ली में फरवरी में हुए दंगों से जुड़े एक मामले में मंगलवार को दो आरोपियों को जमानत प्रदान कर दी और कहा कि सिर्फ इस आधार पर उन्हें ‘अनंत काल के लिए जेल में नहीं रखा जा सकता कि सह-आरोपियों की पहचान और गिरफ्तारी अभी बाकी है।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विनोद यादव ने जावेद और गुलफाम को 20,000 रुपये की जमानत और इतनी ही राशि के मुचलके पर राहत प्रदान कर दी। फरवरी में सांप्रदायिक हिंसा के दौरान चांद बाग पुलिया इलाके में दंगाइयों द्वारा भाई साहब नामक एक व्यक्ति पर घातक हमला से जुड़े मामले में गुलफाम और जावेद को क्रमशः मई और जुलाई में गिरफ्तार किया गया था।
अदालत ने कहा कि एफआईआर में दोनों के नाम नहीं हैं और उनके खिलाफ कोई विशेष आरोप नहीं हैं। अदालत ने कहा कि मामले में जांच पूरी हो चुकी है और चार्जशीट पहले ही दायर की जा चुकी है। मामले की सुनवाई में लंबा समय लगने की संभावना है। आवेदक (गुलफाम) को इस तथ्य के आधार पर अनंत काल के लिए कैद नहीं रखा जा सकता है कि दंगाइयों की भीड़ में शामिल रहे अन्य लोगों की पहचान की जानी है और उन्हें गिरफ्तार किया जाना है।
अदालत ने दो जमानत याचिकाओं पर दो अलग-अलग आदेशों में समान टिप्पणी की। अदालत ने हालांकि स्पष्ट किया कि आदेश में कही गई किसी भी बात को मामले के अंतिम गुण-दोष पर राय के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए क्योंकि यह संज्ञान लिए जाने के पहले का चरण है। अदालत ने उन्हें सबूतों के साथ छेड़छाड़ नहीं करने और अपने मोबाइल फोन में आरोग्य सेतु ऐप डाउनलोड करने का निर्देश दिया।
वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये हुई सुनवाई के दौरान गुलफाम के वकील अनीश मोहम्मद ने कहा कि वह दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र हैं और मामले में उनके खिलाफ कानूनी रूप से कोई ठोस सबूत नहीं है। जावेद के वकील ने दलील दी कि उसे जेल में रखने से कोई मकसद पूरा नहीं होगा क्योंकि मामले की जांच पूरी हो चुकी थी और सुनवाई में लंबा समय लगेगा।
पुलिस की ओर से पेश विशेष लोक अभियोजक अमित प्रसाद ने जमानत याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा कि यह मामला पूर्व ‘आप’ पार्षद ताहिर हुसैन के घर के पास चांद बाग पुलिया के पास दंगों के विभिन्न मामलों में से एक है