शाहाबाद के चुनावी रण में कई राजनीतिक दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर है। 22 विधानसभा क्षेत्रों वाले इस इलाके से जगदानंद सिंह और बशिष्ठ नारायण सिंह क्रमश: राजद व जदयू के प्रदेश अध्यक्ष की कमान संभाल रहे हैं।
पिछले विस चुनाव में जगदा सिंह के गृह जिले कैमूर में राजद समेत महागठबंधन का प्रदर्शन बुरा रहा था। जदयू के सहारे भी एक भी सीट नहीं मिली। राज्य में महागठबंधन की लहर के बाद भी यूपी से सटे कैमूर के सभी चारों विस क्षेत्रों में भाजपा ने पहली बार भगवा लहरा सफलता का नया कीर्तिमान गढ़ दिया। फिर जगदा बाबू बक्सर से पिछला लोस चुनाव भी दुबारा हार गये। इसके बाद भी राजद ने जगदा बाबू को प्रदेश अध्यक्ष की बागडोर सौंपी है। उनके समक्ष बिहार के साथ-साथ गृह जिले में भी राजद समेत महागठबंधन को सफलता दिलाने की चुनौती है। चर्चा है कि उनके परंपरागत क्षेत्र रामगढ़ के चुनावी अखाड़े में इस बार राजद उनके बेटे सुधाकर सिंह को उतारेगा। लिहाजा गृह विस क्षेत्र में भी प्रतिष्ठा दांव पर होगी। बता दें कि रामगढ़ से जगदा बाबू ने लगातार छह चुनाव जीते हैं।
इस बार बशिष्ठ बाबू पर रहेगी नजर
जदयू के लिहाज से देखें तो प्रदेश अध्यक्ष बशिष्ठ दादा की प्रतिष्ठा भी लगी है। आरा से विधायक बनने पर बिहार सरकार में मंत्री की जिम्मेवारी संभालने के अलावा वे बिक्रमगंज से सांसद रह चुके हैं। फिलहाल राज्यसभा सांसद हैं। पिछले विस चुनाव में सूबे में राजद से बराबर की सीटों पर महागठबंधन बनाने के बावजूद शाहाबाद में जदयू छोटे भाई की भूमिका में था। कुल 22 सीटों में से जदयू के खाते में छह सीटें ही आयीं और इनमें पांच सीटों पर उसे जीत मिली। इस बार जदयू फिर एनडीए में भाजपा के साथ है। ऐसे में शाहाबाद में जदयू समेत एनडीए को अधिकाधिक सीटों पर जीत दिलाने की जिम्मेवारी दादा पर भी है।
आरके व अश्विनी के क्षेत्रों में नहीं खुला था भाजपा का खाता
भाजपा के लिहाज से देखें तो केंद्रीय मंत्री आरके सिंह और अश्विनी चौबे की प्रतिष्ठा भी दांव पर है। इस बार दोनों के समक्ष अपने-अपने क्षेत्र में भाजपा समेत एनडीए का खाता खुलवाने की चुनौती है। पिछले विस चुनाव में आरके सिंह के क्षेत्र आरा के सात और अश्विनी चौबे के संसदीय क्षेत्र बक्सर के छह विस क्षेत्रों में भाजपा समेत एनडीए को एक भी सीट नहीं मिली। इस बार जदयू साथ है। इन दोनों केंद्रीय मंत्रियों पर अपने-अपने इलाके में एनडीए को बड़ी सफलता दिलाने की चुनौती है।