बलरामपुर विधानसभा क्षेत्र 1967 में वजूद में आया। इस क्षेत्र से गौरव जन क्रांति दल से सोहन लाल जैन पहले विधायक निर्वाचित हुए थे। शुरू से कांग्रेस का गढ़ रहे इस विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस पार्टी के बिहुला दोजा तीन बार विधायक बने।
वर्ष 2000 में माले ने इस सीट पर कब्जा जमाया। तब से लेकर अब तक भाकपा माले का दबदबा इस सीट पर कायम है। इस विधानसभा क्षेत्र से भाकपा माले के महबूब आलम को दो बार विधायक बनने का अवसर मिला। इस बार समीकरण बदले हुए हैं। जदयू-भाजपा एक साथ हैं और राजद के साथ वाम दलों की जुगलबंदी की कवायद चल रही है। इससे मौजूदा चुनाव में मुकाबला रोचक हो सकत है।
इस विधानसभा क्षेत्र से दो बार दुलाल चंद्र गोस्वामी ने चुनाव जीता है। एक बार भाजपा से और दूसरी बार निर्दलीय चुनाव जीतकर उन्होंने राज्य में मंत्री पद भी प्राप्त किया। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में गोस्वामी कटिहार लोकसभा क्षेत्र से विजयी हुए। इस बार भाजपा इस सीट पर फिर से कब्जा करने की जुगत में है। वहीं, भाकपा माले फिर से इस सीट पर अपना दबदबा कायम करने के लिए पसीना बहा रहा है। इस बार भाजपा और जदयू के साथ आने से स्थितियां अलग हैं।
कुल मतदाता 318681
149547 महिला
थर्ड जेंडर 08
169126 पुरुष
ये रहे विधायक
1967 सोहनलाल जैन- जन क्रांति दल
1969 सोहन लाल जैन- निर्दलीय
1972 बिहुला दोजा – कांग्रेस
1977 अबू नइम चांद -जनता पार्टी
1980 बिहुला दोजा -कांग्रेस
1985 बिहुला दोजा -कांग्रेस
1990 सिद्धिकी -जनता दल
1995 दुलाल चंद्र गोस्वामी, भाजपा
2000 महबूब आलम -भाकपा माले
2005 मुन्नाफ आलम -भाकपा माले
2010 दुलाल चंद्र गोस्वामी- निर्दलीय
2015 महबूब आलम- भाकपा माले
बांग्लाभाषियों की क्षेत्र में है अच्छी पकड़
पश्चिम बंगाल, किशनगंज एवं पूर्णिया से सटे क्षेत्र रहने के कारण बलरामपुर विधानसभा में बांग्लाभाषियों की संख्या अच्छी-खासी है। चुनाव में भी उनकी भूमिका महत्वपूर्ण होती है। महानंदा नदी से घिरे इस विधानसभा क्षेत्र का कुछ हिस्सा पश्चिम बंगाल क्षेत्र में भी पड़ता है। इस कारण दोनों प्रदेशों की संस्कृति यहां पर मिली-जुली हुई है। आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े इस विधानसभा क्षेत्र में सड़क, पुल-पुलिया और आवागमन के साधनों का समुचित विकास नहीं हो सका है।