दुनिया भर में स्कूलों के करीब छह माह से बंद होने के कारण न केवल शैक्षणिक नुकसान हुआ है
बल्कि यह भविष्य में उनकी जीवन भर की आय और आजीविका पर भी असर डालने वाला साबित होगा। आर्थिक सहयोग एवं विकास परिषद (ओईसीडी) और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट के अनुसार, कक्षा एक से 12 तक के स्कूल बंद होने से इन बच्चों की जीवन भर की आय तीन से 5.6 फीसदी तक कम हो सकती है।
पूरे देश को नुकसान की बात करें तो भारत जैसे विकासशील देशों की जीडीपी में 1.5 फीसदी की अतिरिक्त गिरावट आ सकती है। अगर ये स्कूल तुरंत न खोले गए तो नुकसान कहीं ज्यादा होगा। खासकर पिछड़े-वंचित परिवारों के बच्चों की भविष्य में कमाई पर ज्यादा असर पड़ेगा। भारत में भी स्कूल मार्च के मध्य से ही बंद हैं। कई राज्यों में कॉलेज 21 सितंबर से खुल रहे हैं मगर स्कूलों के 30 सितंबर तक खुलने के तो कोई आसार नहीं हैं। ओईसीडी ने कहा कि जिन स्कूलों, परिवारों और बच्चों के पास ऑनलाइन शिक्षा के संसाधन नहीं है, भविष्य में उनकी आय या रोजगार पर ज्यादा असर पड़ेगा।
कोविड का प्रभाव एक-दो साल नहीं, लंबे समय तक दिखेगा
भारत में भी कोविड का प्रभाव एक-दो साल नहीं बल्कि लंबे समय तक रहेगा। सेंट्रल स्क्वायर फाउंडेशन की प्रबंध निदेशक श्वेता शर्मा कुकरेजा का कहना है कि बच्चों का एकेडमिक नुकसान तो है ही क्योंकि बच्चे लंबे समय बाद स्कूल आएंगे तो उन्हें शिक्षण से दोबारा जोड़ने में मुश्किलें पेश आएंगी। शारीरिक, सामाजिक और मानसिक स्तर पर भी बच्चों पर असर पड़ा है। ऐसे में पाठ्यक्रम में बदलाव लाकर, एक-दो साल की लंबी रणनीति बनाकर बच्चों की शैक्षणिक गतिविधि को सामान्य स्तर पर लाया जा सकता है।
इससे भविष्य में बच्चों के भविष्य, आजीविका या आय को होने वाले नुकसान से भी बचा जा सकता है। सरकार, स्कूल और अभिभावकों को साथ मिलकर बेहतर तालमेल के साथ दूरगामी रणनीति बनानी पड़ेगी। स्कूल दोबारा खुलें तो उन पर पढ़ाई को पूरा करने के लिए दोहरा दबाव न डाला जाए। देश में 70 फीसदी से ज्यादा निजी स्कूलों की आय काफी कमजोर है, ऐसे में राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत नए दिशानिर्देश लाए जाएं।
स्कूलिंग के इर्द-गिर्द चलती है एक अर्थव्यवस्था
ओईसीडी की रिपोर्ट हमें सजग करने वाली है। सिर्फ बच्चों के स्तर पर ही नहीं पूरी स्कूलिंग के इर्द-गिर्द एक अर्थव्यवस्था भी चलती है। बच्चों की परिवहन व्यवस्था, स्कूल में खेलकूद और अन्य आयोजन, शिक्षकों के बेहतर वेतन से उनका ज्यादा खर्च जैसी बातें अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाती हैं। सेव द चिल्ड्रेन की डिप्टी डायरेक्टर (शिक्षा) कमल गौर ने कहा कि रिपोर्ट बताती है कि पढ़ने-लिखने और सीखने की पद्धति में बड़ा बदलाव लाना होगा।
हमने झारखंड में ही शिक्षकों को यही प्रशिक्षण दिया है कि कैसे वे दोबारा स्कूल लौटें तो कैसे इस छह माह के नुकसान की भरपाई कर सकें। प्राइमरी स्कूलों या आंगनवाड़ी की बात करें तो बच्चों को मिड डे मील के साथ पोषणयुक्त आहार भी मिलता है और इसके अभाव में ड्रॉपआउट भी देखने को मिल सकता है। लॉकडाउन के दौरान बड़े पैमाने पर पलायन को देखते हुए सरकार को ऐसी सुविधा लानी चाहिए ताकि बच्चा साल के बीच कहीं भी जाकर अधूरी पढ़ाई को पूरा कर सके।
इन बातों पर ध्यान जरूरी—
स्कूलों में ऑडियो-वीडियो आधारित प्रशिक्षण को बढ़ावा दिया जाए
शिक्षकों को ऑनलाइन अध्यापन के लिए नए सिरे से ट्रेनिंग मिले
कक्षाओं के भीतर डिजिटल बोर्ड, लॉजिस्टिक्स के साथ खोले जाएं
दोहरा नुकसान—-
7.4 से घटकर 3.6 घंटे प्रतिदिन रह गई है बच्चों की पढ़ाई
5.2 घंटे का वक्त टीवी पर देखने में बिता रहे हैं बच्चे
14 से 27 फीसदी बढ़ती है आय बच्चों की 10वीं-12वीं करने से
07 फीसदी का अतिरिक्त योगदान पश्चिमी देशों में उच्च शिक्षा का