जाने-माने राजनीतिक परिवार से आने के बावजूद मीरा कुमार का नाता शुरू में राजनीति से नहीं था। उनका चयन भारतीय विदेश सेवा में हो गया। देश से बाहर स्पेन, मॉरीशस, यूनाइटेड किंगडम में काम कीं, आखिरकार उन्होंने नौकरी छोड़ी और राजनीति का रुख किया।
यह वो दौर था जब इंदिरा गांधी की हत्या के बाद पूरे देश में कांग्रेस के प्रति सहानुभूति लहर थी। वह बिजनौर लोकसभा सीट के लिए हुए उपचुनाव में कांग्रेस के टिकट पर पहली बार लोकसभा पहुंचीं। उसके बाद पांच बार सांसद, केंद्रीय मंत्री और लोकसभा में देश की पहली महिला स्पीकर होने का गौरव हासिल किया। बिहार में जन्मी मीरा कुमार का व्यक्तित्व बहुआयामी है।
देश के प्रख्यात दलित नेता और उपप्रधानमंत्री रहे बाबू जगजीवन राम की इस लाडली ने सामाजिक, राजनैतिक और प्रशासनिक, सभी मोर्चों पर अपनी विशिष्ट पहचान स्थापित की है। शायद वे देश की इकलौती महिला नेत्री हैं जिन्हें यूपी, दिल्ली और बिहार जैसे तीन तीन राज्यों से लोकसभा पहुंचने का गौरव हासिल है। वर्ष 2017 में संयुक्त विपक्ष ने उन्हें मौजूदा राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के खिलाफ प्रत्याशी भी बनाया था।
रामविलास को हरा पहली बार पहुंची लोकसभा :
मीरा कुमार ने पहला चुनाव वर्ष 1985 में यूपी की बिजनौर सुरक्षित सीट से कांग्रेस के टिकट पर लड़ा। दरअसल यह इस सीट से 1984 में कांग्रेस के गिरधारी लाल जीते थे। उनके निधन के चलते हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने मीरा कुमार और लोकदल ने रामविलास पासवान को मैदान में उतारा था। इस चुनाव में मीरा कुमार ने करीब तीन हजार वोटों से पासवान को हराकर अपना राजनैतिक सफर शुरू किया। 1996 और 1998 में दिल्ली की करोलबाग सीट से सांसद बनीं। फिर 2004 के चुनाव में बिहार की सासाराम सीट से लोकसभा चुनाव जीतकर केंद्र में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री बनीं।
बेटा नहीं, बेटी बनीं बाबूजी की राजनैतिक वारिस
बाबू जगजीवन राम अपने दौर का बड़ा राजनैतिक नाम था। सत्तर के दशक तक माना जा रहा था कि उनकी राजनैतिक विरासत बेटा सुरेश राम संभालेगा। मगर वे कई विवादों में घिर गए। उस वक्त मीरा कुमार अपनी नौकरी और परिवार में व्यस्त थीं। बाद में राजीव गांधी ने उन्हें राजनीति में आने का ऑफर दिया, जिसे स्वीकार करने के साथ ही उन्होंने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। पिता की परंपरागत सीट सासाराम के साथ ही उन्होंने जगजीवन राम की राजनैतिक विरासत भी संभाल ली।
व्यक्तिगत जीवन
मीरा कुमार का जन्म 31 मार्च 1945 को बिहार के पटना में हुआ। पिता का नाम बाबू जगजीवन राम और माता का नाम इंद्राणी देवी। उनकी स्कूली शिक्षा वेलहम गर्ल्स स्कूल देहरादून और महारानी गायत्री देवी गर्ल्स पब्लिक स्कूल जयपुर से हुई। कुछ समय वे वनस्थली विद्यापीठ में भी पढ़ीं। आगे की पढ़ाई दिल्ली के मिरांडा हाउस और इंद्रप्रस्थ कॉलेज से हुई। वे कानून में स्नातक और अंग्रेजी साहित्य में स्नातकोत्तर हैं। 1968 में उच्चतम न्यायालय के अधिवक्ता मंजुल कुमार से उनका विवाह हुआ। यह अंतरजातीय विवाह था। मंजुल भी बिहार के एक राजनैतिक परिवार से थे। उनके एक पुत्र अंशुल और दो पुत्रियां स्वाति और देवांगना हैं।
स्पेनिश भी बोलती हैं मीरा
मीरा कुमार वर्ष 1973 में भारतीय विदेश सेवा में चयनित हुईं। स्पेन, ब्रिटेन, मॉरीशस में उच्चायुक्त रहीं। मीरा कुमार हिंदी और अंग्रेजी के अलावा संस्कृत, भोजपुरी में प्रवीण हैं। इसके अतिरिक्त उन्हें स्पेनिश भाषा भी बखूबी आती है।
निशानेबाज, घुड़सवार, कवियत्री
हमेशा साड़ी में दिखने वाली मीरा कुमार के जीवन के कई और रंग भी हैं। वे खेल की शौकीन रही हैं। निशानेबाजी और घुड़सवारी में कई मेडल भी जीते हैं। कविता लिखने और पढ़ने का शौक है। उनकी सबसे पसंदीदा पुस्तक है कालिदास की अभिग्यान शाकुंतलम। वे हस्तशिल्प से जुड़ी वस्तुएं एकत्रित करने और घूमने की भी शौकीन हैं।
कई बार हुआ हार से सामना
मीरा कुमार का राजनीति में कई बार हार से सामना हुआ। वर्ष 1989 में वे बिजनौर से बिहार आई और सासाराम से लड़ीं मगर हार का सामना करना पड़ा। जनता दल के छेदी पासवान ने उन्हें हराया। वर्ष 1991 में भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा। वर्ष 1999 में दिल्ली की करोलबाग सीट से भाजपा की अनीता आर्या से हार गईं। वर्ष 2014 और 2019 की मोदी लहर में उन्हें सासाराम सीट से भी हार का सामना करना पड़ा।
पार्टी में भी मिली अहम जिम्मेदारी
चुनावी राजनीति के साथ मीरा कुमार पार्टी संगठन में भी सक्रिय रही हैं। शुरू से वह पार्टी नेतृत्व की करीबी मानी जाती रही हैं। वर्ष 1990 में वे पहली बार कांग्रेस केंद्रीय कार्यसमिति की सदस्य बनीं। फिर उन्हें पार्टी महासचिव की जिम्मेदारी भी दी गई। हाल में ही कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा घोषित पार्टी की नई टीम में भी मीरा कुमार को केंद्रीय कार्यसमिति में स्थायी आमंत्रित सदस्य बनाया गया है।
15वीं लोकसभा में बनीं स्पीकर
वर्ष 2009 का चुनाव मीरा कुमार ने फिर सासाराम सीट से जीता। पहले उन्हें जल संसाधन मंत्रालय का काम सौंपा गया, लेकिन फिर सर्वसम्मति से उन्हें लोकसभा अध्यक्ष चुन लिया गया। वे लोकसभा की देश की पहली दलित महिला और जीएमसी बालयोगी के बाद दूसरी दलित स्पीकर बनीं। मृदुभाषी मीरा कुमार अपने इस कार्यकाल में सत्तापक्ष के साथ-साथ विपक्ष के बीच भी लोकप्रिय रहीं।