सीमा पर तनाव कम करने को लेकर मास्को में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर और चीनी समकक्ष वांग यी के बीच करीब ढाई घंटे तक द्विपक्षीय वार्ता हुई। भारत और चीन के विदेश मंत्रियों की बैठक के बाद जारी संयुक्त बयान में कहा गया कि एलएसी पर शांति बनाए रखने के लिए विश्वास बहाली के उपायों यानी कॉन्फिडेंस बिल्डिंग मेजर्स (सीबीएम) पर काम करना होगा। साथ ही यह स्पष्ट कहा गया कि दोनों देशों की प्राथमिकता अपनी-अपनी सेनाओं को पीछे करना होगा। यह एक तरह से संकेत हैं कि भारत और चीन के बीच मौजूदा द्विपक्षीय समझौते सीमा पर दोनों देशों की सेनाओं के बीच विश्वास की दरार को कम करने में विफल रहे हैं
11 सितंबर को जारी बयान में कहा गया है, ‘दोनों विदेश मंत्रियों ने इस बात पर सहमति जताई कि जैसे ही स्थिति आसान होती है, दोनों पक्षों को सीमा क्षेत्र में शांति और शांति बनाए रखने और बढ़ाने के लिए नए आपसी विश्वास निर्माण के उपायों को पूरा करने में तेजी लानी चाहिए।’ बता दें कि मॉस्कों में शंघाई सहयोग संगठन के इतर एक बैठक में यह मुलाकात हुई।
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हालांकि, दोनों देशों के बीच विश्वास निर्माण के उपायों को लेकर विस्तृत जाानकारी नहीं दी गई। मगर यह संकेत जरूर दे दिया गया कि पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में सीमा विवाद को खत्म करने और तनाव को कम करने के लिए दोनों देशों की ओर से और विश्वास बहाल करने के उपायों पर काम किए जाने की जरूरत है। दोनों देशों की प्राथमिकता है कि सबसे पहले संघर्ष वाले बिंदू पर से दोनों देशों की सेनाओं को पीछे किया जाए।
बीते चार महीने से पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर जारी गंभीर तनाव का मतलब है कि दोनों देशों के बीच करीब आधा दर्जन सीमा समझौते और दर्जनों दौर की वार्ता समेत हाई प्रोफाइल विशेष प्रतिनिधि तंत्र की 22 राउंड से अधिक वार्ता विफल रही है। यही वजह है कि 15 जून की रात को गलवान घाटी में खूनी संघर्ष हुआ, जिसमें भारत के 20 सैनिक शहीद हो गए और चीन को भी बड़ा नुकसान हुआ। इस घटना के बाद दोनों देशों के बीच आपसी विश्वास में काफी कमी आई है।
अब तक भारत और चीन के बीच सीमा पर शांति कायम रखने के लिए कई समझौते हुए हैं। 1993 में एलएसी पर शांति और स्थिरता कामय रखने के लिए समझौता हुआ था। 1993 के समझौते में साफ कहा गया है कि यदि दोनों पक्षों के सैनिक एलएसी को पार करते हैं तो दूसरी ओर से आगाह किए जाने के बाद वह तुरंत अपने क्षेत्र में चले जाएंगे। इसके बाद फिर 1996 में भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा से लगे सीमा पर सैन्य क्षेत्र में आत्मविश्वास-निर्माण के उपायों को लेकर समझौता हुआ। फिर 2013 में भी दोनों देशों के बीच समझौते हुए। ये सभी समझौते दोनों देशों के बीच सीमा विवाद को सुलझाने और तनाव कम करने को लेकर ही हुए।
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इसके अलावा, साल 2005, 2012 में चीन के साथ सीमा विवाद को लेकर बातचीत बढ़ाने और विश्वास निर्माण के उपायों को लेकर समझौते हुए। भारत का मानना है कि गलवान घाटी में बीजिंग की कार्रवाई तीन प्रमुख द्विपक्षीय समझौतों-1993, 1996 और 2013- का उल्लंघन है, जिसने विवादित सीमा को ज्यादातर शांत रखा है।
हाल के दिनों में दोनों देशों के बीच सीमा पर तनाव और हिंसा ने आर्थिक और व्यापारिक संबंधों को भी प्रभावित किया है। बता दें कि ढाई घंटे की इस मुलाकात में विदेश मंत्री एस जयशंकर और चीनी समकक्ष वांग यी के बीच द्वीपक्षीय वार्ता के दौरान वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर तनाव खत्म करने को लेकर 5 प्वाइंट पर सहमति बनी है। साथ ही इस बात पर भी सहमति बनी है कि दोनों देश सीमा विवाद को वार्ता के जरिए सुलझाएंगे। दोनों देशों के बीच यह आम सहमति बनी कि एलएसी पर तनाव कम करने के लिए दोनों देशों के बीच विभिन्न स्तरों (कूटनीतिक, सैन्य) पर बातचीत जारी रहेगी।
विदेश मंत्री एस जयशंकर और चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने सहमति व्यक्त की कि भारत-चीन संबंधों को विकसित करने के लिए दोनों पक्षों को नेताओं की आम सहमति की सीरीज से मार्गदर्शन लेना चाहिए। साथ ही मतभेदों को विवाद बनने देने की इजाजत नहीं देनी चाहिए। चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा कि दोनों पक्षों ने काफी गहन चर्चा के बाद वर्तमान स्थिति के बारे में पांच-सूत्रीय सहमति पर पहुंचे हैं। समाचार एजेंसी एएनआई के मुताबिक, बैठक के बाद चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा, ‘दो पड़ोसी देश होने के नाते यह बहुत स्वाभाविक है कि चीन और भारत में कुछ मुद्दों पर असहमति है, मगर यहां अहम बात यह है कि उन असहमतियों को सही परिपेक्ष्य में देखा जाए।