रात के नौ बज गये, बेटी अभी तक ऑफिस से नहीं आयी | ओह ! फोन भी स्विच ऑफ़ आ रहा है…उसे पता है, माँ घबरा जाती हैं, फिर भी फोन का ध्यान नहीं रखती !
दरअसल सारा कसूर मेरा ही है | पिता का साया उठते ही , मैं उसकी माँ और बाप दोनों बन बैठी ! लोग कहते हैं, बेटा-बेटी में कोई फर्क नहीं होता…फर्क तो मुझे डेग-डेग (कदम-कदम) पर दिख रहा है !
महत्वाकांक्षा का ऐसा भूत चढ़ा, कि मैंने उसे सातवीं कक्षा में ही हॉस्टल में डाल दिया | सोचा ही नहीं , पौध को बढने के लिए केवल खाद की ही नहीं, देखभाल की भी जरूरत होती है |
बी.टेक में जब वो अव्वल आयी , मेरी ख़ुशी परवान चढ़ गई | मन में एक नई आकांक्षा जगी – उसे आईएस बनाने की, अच्छे कोचिंग में दाखिला दिलवाया | पर ,उसकी जिंदगी फिर से पी.जी में कैद हो गई !
अमरबेल की तरह फैलती महत्वाकांक्षा ने मुझे डंस लिया ….बेटी कब डिप्रेशन में पहुँच गई, बिलकुल पता ही नही चला | देखते-देखते चाँद-तारों का ख़्वाब देखने वाली बेटी गर्दिश में मिल गई | जैसे ही जानकारी मिली पैरों तले की जमीन खिसक गई | आनन-फानन में ही उसे कोचिंग से छुड़वाकर मैं घर ले आयी | दो-तीन सालों तक जहाँ-तहाँ डॉक्टर के चक्कर लगाये | पैसा पानी की तरह बहाया |
अपनी हारी हुई बाजी सुनाये भी तो किसे ! रात भर मैं खिड़की से चाँद-तारों को निहारती रही | झिलमिलाते तारों ने मेरे हौंसले को जिंदा रखा | मुझे कहता रहा, “ हिम्मत रखो, हिम्मत के आगे बड़े-बड़े मुसीबतें घुटने टेक देती है | भगवान के घर देर है…अंधेर नहीं |”
मैं उसे रोजाना मंदिर भी ले जाने लगी, ताकि कुछ चमत्कार हो जाय | पर, उसके मुरझाये चेहरे को देख मन में शून्यता बनी रहती | फिर भी, एक संकल्प – “फाइट टिल विक्ट्री” को ध्यान में रखकर, मैं उसके पीछे अहर्निश लगी रही |
अचानक, एक दिन उसके चेहरे पर सुंदर मुस्कान दिखा ,तब से मेरे हौंसले चाँद-सितारों के उड़ान भरने लगे | दिन-रात मैं ……..
अचानक कॉल बेल की तेज आवाज से मेरी तंद्रा टूटी । दौड़कर दरवाजा खोली , सामने बेटी को खड़ी देख, होश में होश आया | “तुम्हारा फ़ोन हमेशा स्वीच ऑफ़ क्यों रहता है ? तुम्हें पता है न.. कितनी जल्दी मैं घबरा जाती हूँ ! “ मैंने एक ही सांस में कह डाला।
“ दरअसल , आज मैं चार्जर ऑफिस ले जाना भूल गई | अच्छा…माँ, पहले खुशखबरी सुनो , मुझे प्रमोशन मिला है | ऑफिस में पार्टी देनी पड़ी, इसलिए घर पहुँचने में लेट हो गयी | ये लो, क्रेडिट कार्ड, तुम्हारे लिए है…अब तुम जितना चाहो दान-पुण्य में खर्च करना |”
“नहीं..नहीं …ये तुम्हारा है| अपने पास ही रखो, हमेशा काम देगा | “
“ माँ…आज मैं यहाँ खड़ी हूँ , सिर्फ तुम्हारी वजह से | जब तक तुम हो , मुझे क्रेडिट कार्ड की क्या जरूरत ?”
मिन्नी मिश्रा
पटना