छाले हों पैरों में चाहे
भूख-प्यास सताती हो ।
सूरज की भीषण आग
जिस्म को जलाती हो ।
तेरी राहें आसान बनाने
किसने आगे आना है ?
तुझे तो मीलों दूर श्रमिक !
निज बूते ही जाना है ।
कहने भर को मुश्किलों में
देता हर कोई साथ है ।
पर असल में दीनों का तो
कौन यहां पर दीनानाथ है ?
तेरे घर में दाना देने
किसने लेकर आना है !
तुझे तो मीलों दूर श्रमिक !
निज बूते ही जाना है ।
किस संबल की तू आस रखता ?
तेरा धर्म वोट देना है ।
फिर भूल जा पांच साल में,
तुझे भी कुछ लेना है ।
संभल जा अब तो पगले
होश में कब आना है ?
तुझे तो मीलों दूर
श्रमिक!
निज बूते ही जाना है।
मतलब परस्त हैं लोग यहां
कौन मदद को आएगा !
दो किलो चावल के बदले
या फिर लंबी फोटो खिंचवाएगा ।
बुरा वक्त भी हो चाहे
हंसते-हंसते बिताना है।
तुझे तो मीलों दूर श्रमिक !
निज बूते ही जाना है ।
*सावन*
टी.सी.सावन
चंबा, हिमाचल प्रदेश