दुआ की चिठ्ठियां कभी दवा की चिठ्ठियां।
आती है हमको याद बहुत मां की चिट्ठियां।।
भूली हुई कहानी सा वो गांव याद है।
नदिया के किनारे खड़ी वो नाव याद है।
चूल्हे पे सिकी रोटियां चौपाल पे जलता
जाड़ों की सर्द शाम का अलाव याद है।
वो छीनना एक दूसरे के हाथ से सहसा
आते हुए जो घर पे डाकिया की चिठ्ठियां।।
विपताओं को मां सर से सदा टालती रही।
हर पथ पे अंगुली थामकर संभालती रही।
हिसाब मां के संयम का किसके पास है
खुद भूख सही और हमें पालती रही।
संघर्ष करके पतझरों से छीन लाई है
मेरे लिए सब फूल वो कलियां की चिठ्ठियां।।
निश्चल है प्रेम मां का निस्वार्थ प्यार है।
चरणों में इनके काशी काबा हरिद्वार है।
आंचल में अपने दुख मेरा वो बांधती रही
बेटों पे होती आई सदा मां निसार है।
दुनिया में कोई रिश्ता मां से बड़ा नहीं
मां ही है अपने सारे राजदां की चिठ्ठियां।।
आंचल में छुपा कर मेरा हर आंसू पी गई।
कुर्बानियों में सारा जीवन मां जी गई।
आजाद हो सकी ना कभी बंधनों से तू
मां घर की हरेक बात को इज्जत से सी गई।
कैसी हैं हाय दूरियां आता नहीं है अब
घर लेके कोई ड़ाकिया फिर मॉं की चिठ्ठियां।।
दुआ की चिठ्ठियां कभी दवा की चिठ्ठियां,,,,,
प्रमोद प्यासा
अलीगढ़