निश्चित तौर पर कोरोना के ख़िलाफ़ महाभारत की लड़ाई में जनता के योगदान को कोई नकार नहीं सकता। लड़ाई के महारथी और सारथी का ज़िक्र करना भी ज़रूरी है। कुछ दिन पहले तक जब हम घरों से निकल कर मास्क और सैनिटाइज़र ख़रीद रह थे, तब हममें से शायद ही किसी के जेहन में उन डॉक्टरों का ख्याल आया होगा, जो मुश्किल की इस घड़ी में इन चीज़ों की कमी के बावजूद इलाज में 24 घंटे जुटे हैं। लॉकडाउन में लोग घरों में बैठे हैं, लेकिन वो आज भी पहले के मुकाबले ज्यादा घंटे काम कर रहे हैं। सभी डॉक्टरों की छुट्टियां रद्द कर दी गई है. इस आपदा में डॉक्टरों और नर्सों ने मरीज़ो को परिवार मान लिया है। कोरोना के ख़िलाफ़ भारत की इस लड़ाई में वो सभी डॉक्टर सबसे पहले सारथी हैं, जिनके बूते इस जंग को हर भारतीय लड़ कर जीतना चाहता है।
डॉक्टर्स एम्स के हों या मेदांता के या फिर गंगाराम अस्पताल के या फिर लखनऊ या पटना के या फिर किसी दूर-दराज़ इलाक़े के, सभी ज़ोर-शोर से अपने काम में लगे हैं। लेकिन इन डॉक्टरों के साथ पैरा मेडिकल स्टॉफ़ जैसे नर्स, लैब टेक्नीशियन आदि के काम को सराहा जा रहा है और डॉक्टर ख़ुद इनकी सराहना कर रहे हैं। क्योंकि कई अस्पतालों में इन लोगों को बुनियादी सुविधाएँ भी नहीं मिल पा रही हैं। अचानक आई नई बीमारी के लिए विश्व के किसी देश में कोई तैयारी नहीं थी। किसी ने कभी सोचना ना था कि करोड़ो की संख्या में नई तरह के टेस्टिंग किट की जरूरत पड़ेगी। यही वजह है कि हर देश अपने लिए विशेषज्ञों की एक टीम के साथ इस कोरोना वायरस का सामना कर रहा है। भारत में इस टीम की नुमाइंदगी कर रहे हैं प्रो. बलराम भार्गव इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च यानी भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के वो महानिदेशक हैं, जो इस नई बीमारी से लड़ने के लिए नए रिसर्च में जुटी है। अप्रैल 2018 को उन्होंने ये पदभार ग्रहण किया. प्रो. भार्गव एम्स में कार्डियोलॉजी के प्रोफेसर हैं।
भारत में कोरोना वायरस के लिए टेस्टिंग किट की कमी आने वालें दिनों में ना हो इसलिए प्राइवेट लैब्स के साथ इन्होंने मिल कर काम किया और लैब्स को टेस्टिंग किट बनाने की आईसीएमआर ने हाल के दिनों में अनुमति भी दी है। इन किट को अब से पहले एफ़डीए से मंजूरी लेनी पड़ती थी। लेकिन समय के अभाव में मेक-इन-इंडिया बेसिस पर आईसीएमआर ने अप्रूव किया है ताकि समय रहते ये मरीज़ों तक पहुंच सके। भारत में कब किन लोगों की कोरोना की टेस्टिंग होनी है, इसका दायरा किन परिस्थितियों में बढ़ाया जा सकता है, भारत में कोरोना संक्रमण अभी दूसरे चरण में हैं और कब तीसरे चरण में प्रवेश करेगा, इन सब पर अनुसंधान की ज़िम्मेदारी भी इन्हीं के कंधों पर है। प्रो. भार्गव को भारत सरकार द्वारा पद्मश्री प्रो. भार्गव कार्डियक अरेस्ट के मरीज़ों के लिए एक चेस्ट कंप्रेशन डिवाइस इजाद करने के काम में भी लगे हुए हैं। लंदन का मशहूर वैलकम ट्रस्ट उनके इस प्रोजेक्ट को फंड कर रहा है। भारत और स्टैनफोर्ड के बीच एक फ़ैलोशिप प्रोग्राम चलता है। जिसे इंडिया स्टैनफोर्ड बॉयोडिज़ाइन प्रोग्राम के नाम से जाना जाता है। इसके तहत कम क़ीमत वाले इम्प्लांट और डिवाइस कैसे बनाई जाए इस पर स्टडी को बढ़ावा दिया जाता है। देश में कोरोना के रोज़ आ रहे नए मामले हों या फिर इस दिशा में केंद्र सरकार क्या क़दम उठा रही है, इसकी जानकारी या फिर राज्यों से कोरोना पर क्या सहयोग अपेक्षित है इस पर बयान, आपदा के इस दौर में इन सब की जानकारी मीडिया तक पहुंचाने की सबसे अहम भूमिका केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल निभा रहे हैं। इटली में कोरोना का पहला मामला आने के 39 दिन बाद, कोरोना के संक्रमण का तीसरा चरण शुरू हो गया था।
अमरीका में कोरोना का पहला मामला आने के 43 दिन बाद कोरोना के संक्रमण का तीसरा चरण शुरू हो गया था। लेकिन भारत में कोरोना का पहला मरीज़ आने के 54 दिन बाद भी अभी हम संक्रमण के तीसरे चरण में नहीं पहुंचे हैं। इस मंत्रालय की कमान है पेशे से ईएनटी सर्जन डॉ. हर्षवर्धन के हाथ में। भारत सरकार ने अब तक कोरोना से लड़ने के जो भी प्रयास किए हैं वो काफ़ी है या नहीं इस पर विवाद हो सकता है, लेकिन समय रहते इस बीमारी के ख़तरे को हम भांप गए इसमें किसी को दो राय नहीं है। भारत ने कोरोना से लड़ने के लिए इस साल जनवरी के महीने से ही एयरपोर्ट पर विदेश से आ रहे यात्रियों की स्क्रीनिंग शुरू कर दी। सोशल डिस्टेंसिग जैसे कोरोना से लड़ने के सभी उपायों को इन्होंने पहले ख़ुद आज़माया और फिर लोगों को अपनाने के लिए प्रेरित किया। आज कोरोना पर भारत के प्रयासों की सराहना विश्व स्वास्थ्य संगठन तक ने की है।भारत में पोलियो के ख़िलाफ़ लड़ाई में डॉ. हर्षवर्धन जी के जैसे कई भूमिकाओ को आज भी सराहा जाता है। दिल्ली में अक्तूबर 1994 में पहली बार पूरे राज्य में पोलियो टीकाकरण अभियान की शुरुआत की गई और दूसरा चरण दिसंबर में शुरू किया गया।
साल 1994 में डॉक्टर हर्षवर्धन दिल्ली सरकार में राज्य के स्वास्थ्य मंत्री थे। उन्होंने दिल्ली में तीन साल तक की उम्र के बच्चों के लिए पोलियो ड्रॉप अभियान बड़े स्तर पर शुरू किया और इस आगे चल कर पूरे देश में लागू किया गया। इस काम के लिए उन्हें रोटरी क्लब के ‘पोलियो ईरेडिकेशन चैंपियन अवार्ड’ से नवाज़ा गया। ये अवार्ड पाने वाले वो पहले भारतीय हैं। साफ़ है कि बड़े और नए बीमारी के प्रकोप से निपटने के लिए भारत को कैसी रणनीति बनानी है, इसका पुराना अनुभव हर्षवर्धन के काम आ रहा है। देश में तंबाकू विरोधी क़ानून की परिकल्पना इन्होंने की थी, जो आगे चल कर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद क़ानून बना। दिल्ली में पांच बार विधायक रह चुके हैं। इस वायरस से निपटने के लिए एक तरीका ‘जनता कर्फ्यू’ भी हो सकता है, ये पहली बार प्रधानमंत्री मोदी ने ही दुनिया को बताया। मार्च में जब प्रधानमंत्री मोदी ने इसकी घोषणा की थी, भारत के इतिहास में जो रेल सेवा कभी पूरी तरह से बंद नहीं हुई, उस रेल सेवा को बंद करने का निर्णय लेने का साहस इन्होंने दिखाया, हालांकि विपक्ष आज भी सरकार के फ़ैसलों पर सवाल उठा रहा है, हेल्थकेयर इंफ्रास्ट्रक्चर पर शुरूआत से ज्यादा ध्यान ना देने और ग़रीबों के साथ साथ सभी प्रभावित सेक्टर के लिए पर्याप्त राहत पैकेज ना दिए जाने की शिकायत भी लोग कर रहे हैं है। लेकिन इतिहास में ना झांकते हुए वर्तमान के उठाए क़दमों की सराहना विपक्ष की पार्टियां भी कर रही है। कोरोना संक्रमण से लड़ने वालों के आभार के लिए ताली और थाली के इनके फार्मूले पर भी लोगों ने आपत्ति जताई लेकिन इनके विपक्षियों ने भी उनके समर्थन में ताली बजाई।
हालांकि लोग ताली और थाली बजाते समूह में निकल गए, तो मोदी की आलोचना भी हुई। लेकिन मोदी जी ने स्पष्टीकरण दिया और लोगों को फटकार भी लगाई और उन्हें इसके ख़तरे के प्रति आगाह भी किया। चीन ने कोरोना से लड़ने के लिए लॉकडाउन जैसा सख़्त कदम 30 लोगों के मारे जाने के बाद उठाया, इटली में लॉकडाउन का क़दम तब उठाया गया जब मरने वालों की संख्या 800 पहुंच चुकी था। इन देशों के मुकाबले भारत ने ये कदम तब उठाया जब कोरोना वायरस से मरने वालों का आंकड़ा 10 भी पार नहीं किया था।
इस कठिन फ़ैसले की तारीफ़ दबी ज़ुबान से सभी कर रहे हैं। कोरोना के ख़िलाफ़ महाभारत की तरह वाली ये जंग भारत जीतेगा या हारेगा, ये आने वाले वक़्त में पता चलेगा, लेकिन इन पांच लोगों का यहां जिक्र करने का ये अर्थ बिल्कुल नहीं कि बाक़ी लोगों का योगदान इस लड़ाई में कम है। इनके अलावा भी कई ऐसे लोग हैं, कई ऐसी संस्थाएँ हैं, विभाग हैं, जो न सिर्फ़ वायरस के ख़िलाफ़ भारत की लड़ाई को प्रभावी बनाने में लगे हैं, बल्कि अपनी निजी जिंदगी भी दाँव पर लगा रहे हैं।
लखनऊ स्थित के,जी,एम,यू के वायरोलॉजी डिपार्टमेंट के एक शोध वैज्ञानिक दानिश नज़र खान हो या दिल्ली और लखनऊ स्थित परिंदे फाउंडेशन के संस्थापक सौरभ श्रीवास्तव ऐसे कई और भी उदाहरण है समाज मे जो एक शोध वैज्ञानिक की छवि निखार रहे तो एक समाज सेवी के रूप में अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हैं जागरूक एक मात्र उपाये है बीमारी से बचने का कई मंत्रियों ने तो ट्वीट कर आभार भी प्रकट करा इन सभी सेनानियों के ख़ुद प्रधानमंत्री जी ने भी अपने सम्बोधन में सभी का शुक्रिया अदा किया। शायद यही वो वजह है कि भारत मे चीन और अमेरिका जैसे सम्पन्न देशो के मुकाबले बहुत कम मरीज़ हुए हैं। जागरूकता और संयम बहुत जरूरी है इस विश्व स्तरीय युद्ध में इसीलिए इसे जरूर अपनाएं।
संचयिता चतुर्वेदी