ये रास्ते भी न जाने क्यूँ अजीब से होते हैँ
मंज़िलो से पूछ रहे मंज़िल का ठिकाना
यादें भी अब लौट चुकी उन पुरानी राहों पर
यादों से पूछ रहे अब यादों का ठिकाना
किनारों से मिलकर लहरें लौट गई सागर मे
लहरों से पूछ रहे अब लहरों का ठिकाना
सागर भी कब के बरस चुके बारिश बनकर
बूंदों से पूछ रहे अब बूंदों का ठिकाना
ये रास्ते भी न जाने क्यूँ अजीब से होते हैँ
मंज़िलो से पूछ रहे मंज़िल का ठिकाना.
सौरभ “जयंत”