भीड़ सड़क पर पशुओं की
करती सिंहनाद प्रतिपल
सुनते क्यों नहीं बात जगत की
बचे नही क्या आज नयन-जल।
आज भीड़ सड़कों पर अपनी
अपनी मंज़िल अपना राग
अपनी डफली अलग बजाएँ
कौन प्रेम कैसा अनुराग?
हम सड़कों पर आज घूमकर
अनुशासन सिखलाते हैं
घर के अंदर तुम क्यों ना रहते
जब हम सड़कों पर आते हैं।
हमने जब खुद को बदल लिया
बदलो बदलो तुम हे मानव
सीखो अनुशासन तुम हमसे
हे मानव! जय जय मानव!
(कोरोना के संदर्भ में)
-अनिल कुमार मिश्र
हज़ारीबाग़, झारखंड