अक्सर देखा जाता है हम घरों में अपने अभिभावकों से तेज आवाज में बात करते। उनकी बातें न सुनने न मानने में अपनी शान समझते। असल मे हमारे अंदर की शहनशीलता ख़त्म सी होने लगी है। संस्कार तो हमारी जरूरतो ने पहले ही खत्म कर दिए थे। एक बड़ा सवाल ये भी है कि क्या बस शिक्षा प्रदान करना बस एक शिक्षक का ही काम है? क्या हमारा समाज और आसपास के लोगो के प्राति हमारा कोई कर्तव्य कोई दायित्व नही? हर व्यक्ति का समाज, परिवार, दोस्तों व अपने काम के प्रति कुछ न कुछ दायित्व होता है। इसे निभाने के लिए हमें गंभीर भी होना चाहिए। हमें अपनेन दायित्व को निभाने के लिए कड़ी मेहनत करनी चाहिए।
इन सभी दायित्वों में देश के प्रति कुछ करना, हमारा प्रमुख दायित्व है। हमें किसी न किसी रूप में इसे पूरा भी करना चाहिए। जरूरतमंदों की मदद, भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने के लिए हमें हमेशा आगे आना चाहिए। युवा पीढ़ी को संस्कारवान बनाना, उसे अच्छे-बुरे की समझ करवाकर भी हम अच्छे समाज का निर्माण कर सकते हैं। आज की युवा आधुनिकता के रंग में अपने संस्कारों, नैतिकता और बड़ो का आदर करना भूल रही है। हमारा दायित्व है कि युवा पीढ़ी को सही मार्ग दिखाएं, ताकि आने वाला कल अच्छा हो। जहां पर बच्चा गलत करता है उसे टोकना चाहिए। संसार में मानव परमात्मा की प्रमुख व खूबसूरत कलाकृति है तथा मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।
मानव होने के नाते हम कुछ ऐसी मानवीय संवेदनाओं, आवश्यकताओं, अपेक्षाओं व धारणाओं के सूत्र में बंधे हुए हैं, जिसका कोई कानूनी, शास्त्रीय, धार्मिक या जातीय प्रतिबंध न होते हुए भी हमारे निजी, सामाजिक, पारिवारिक और राष्ट्रीय जीवन से सीधा सरोकार है। इनका निर्वाह हमारे नैतिक दायित्व के अंर्तगत प्रमुख है। किसी लाभ, स्वार्थ या प्रतिफल की इच्छा के बिना दूसरों की मंगल कामना, लोक कल्याण, सबके हित में योगदान करना भी हमारे दायित्व में आता है। गुरु का कार्य केवल पुस्तकों के ज्ञान की मंजिल तक सीमित नहीं है, अपितु उसका पथ प्रदर्शक बन व्यावहारिकता में उसे मंजिल तक पंहुचाना भी है।
आज की युवा पीढ़ी को भावी व चरित्रवान बनाना तथा पौराणिक ज्ञान से दनुप्रमाणित होकर आधुनिक तकनीक और विज्ञान में भी किसी से पीछे न रहने की पद्धति का अनोखा संगम बच्चों के भविष्य को एक स्वर्णिम राह की ओर ले जाएगा। अगर सभी अच्छे बन जाएंगे तो निश्चित रूप से समस्त समाज भी अच्छा हो जाएगा। शिक्षक के रूप में शिक्षा का मुख्य उद्देश्य शिष्यों को सभ्य एवं शिक्षित बनाना है न केवल साक्षर। शिक्षक होने के नाते हमारा दायित्व हो जाता है कि बच्चों में नैतिक मूल्यों को भी भरें और संस्कारों को लेकर उनके साथ रोजाना बातचीत की जाए। रोजाना अगर संस्कार की बात होगी तो बच्चे स्वयं ही नैतिक मूल्य व संस्कारों के प्रति सजग रहेंगे जिससे हमारा दायित्व भी पूरा हो जाएगा। आज ये प्रश्न बहुत बड़ा है कि समाज का प्रत्येक व्यक्ति क्या अपने दायित्वों की पालना कर रहा है कि नहीं। यदि हां तो समाज में फैली हुई निराशा और असंतोष का वातावरण क्यों बन रहा है। समाज की यह तस्वीर डराने वाली है, जिसमें कहीं शिष्यों द्वारा अध्यापकों का कत्ल किया जा रहा है। तो कोई अपने माता-पिता, जिन्होंने पैदा कर उन्हें सक्षम बनाया, उन्हीं पर अत्याचार कर रहा है। कहीं नारी का अपमान, चोरी, लूटपाट की घटनाएं, शोषण, नशाखोरी, भ्रष्टाचार की घटनाएं आने वाली पीढ़ी को भ्रमित कर रही हैं। इसमें हमारा दायित्व बन जाता है कि हम भटक रही इस पीढ़ी को नैतिकता का पाठ पढ़ाएं, जिससे उन्हें संस्कार मिल सकें। अच्छे संस्कार होंगे तो अच्छे व बुरे में फर्क का भी पता लग सकेगा।
अंधेरे की तरफ बढ़ती ये पीढ़ी अच्छे इंसान में भी परिवर्तित हो सकती है। अंधेरे की ओर बढ़ती इस पीढ़ी को संवेदनशील बनाने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को यह दायित्व निभाना होगा कि वह नई पीढ़ी को सही मार्ग दिखाए। यही हम सबके जीवन का दायित्व होना चाहिए। समाज में रह रहे सभी लोगों को समय-समय पर दायित्वों के प्रति प्रेरित करते रहना चाहिए। कुछ प्राणी ऐसे हो सकते हैं जिनको दायित्वों से कुछ लेना-देना नहीं है। अपनी जिम्मेदारियों सही ढंग से निभाना ही दायित्व है। एक अध्यापक होने के नाते मैं यह कहना चाह रही हूं कि आज के शिष्यों में वह सहनशीलता नहीं रही है जो प्राचीन काल में हुआ करती थी। उनके अंदर के अवगुणों को निकाल अच्छे गुणों को भरा जाए। शिष्यों को नैतिकता, शिष्टाचार, अच्छे विचार, आदर, विनम्रता व सहनशीलता की शिक्षा देनी चाहिए। उन्हें प्राचीन ग्रंथों को पढ़ाया जाए ताकि वह समझ सकें कि बड़ों के साथ कैसा व्यवहार किया जाना चाहिए और हमारे समाजिक सांसारिक व राष्टीय दायित्व क्या है। ईश्वर ने मनुष्य को एक अलग ही सोचने व समझने की शक्ति प्रदान की है।
अगर हम संस्कारों व नैतिकता को छोड़ संस्कारविहीन होने लग जाएं तो मनुष्य व पशु में क्या अंतर रह जाएगा। हमारा यह दायित्व बनता है कि भटके हुए को अच्छे आचरण व स्नेह तथा दयालुता से उन्हें अच्छे मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करे। की नींव कमजोर हो तो मकान के गिरने का खतरा रहता है। अगर मानव में इंसानियत और संस्कार तथा समाज के प्रति दायित्व नहीं होगा तो उसका जीवन लाचार व बेकार है। इंसानियत से ही मानव इंसान बन सकता है। एक शिक्षक होने के नाते हमारा दायित्व हो जाता है कि हम बच्चों में संस्कार व समाज के प्रति ज्ञान देते हैं। बच्चों का सर्वागीण विकास करके समाज व राष्ट्र के लिए भावी नागरिकों का निर्माण करना हमारा दायित्व है। हम सभी को मिलकर बच्चों में संस्कारों का समावेश करना चाहिए। जब राष्ट्र का प्रत्येक नागरिक स्वार्थ की भावना को छोड़कर राष्ट्रप्रेम की भावना रखेगा तो अपने दायित्वों को पहचान सकेगा। जीवन ईश्वर का दिया हुआ अनुपम उपहार है। ईश्वर ने हर किसी को अनेक दायित्वों के साथ भेजा है, लेकिन मनुष्य अपना जीवन यूं ही व्यर्थ के कार्यो में गंवा देता है। यह कोई समझने की कोशिश ही नहीं करता कि समाज व देश के प्रति हमारा दायित्व क्या बनता है।
आज मानव केंद्रित बन गया है। हमारा जीवन, हमारी सोच और हमारे दायित्व हमारे अपनों तक ही सीमित हो गए हैं। दूसरों के लिए समाज के लिए सोचने का समय किसी के पास नहीं है। अपने लिए नहीं, बल्कि दूसरों के लिए जीना भी हमारा दायित्व है। समाज में फैली संकीर्ण विचारधाराओं और तंग मानसिकता को बदलने का हमें प्रयत्न करना चाहिए। हर व्यक्ति लगन से निभाए अपना दायित्व संसार में हर जिम्मेदार व्यक्ति को अपने दायित्वों को लगन के साथ निभाना चाहिए। हर किसी का लक्ष्य अलग-अलग होता है। कोई डॉक्टर बनना चाहता है तो कोई इंजीनियर पर मेरा उद्देश्य इससे अलग था। बचपन से ही मैं शिक्षिका बनना चाहती थी। जो विद्यार्थियों को शिक्षा के महत्व से परिचित करवाकर उनमें शिक्षा के प्रति रुचि पैदा कर सके। समाज में नवचेतना, नवजागृति व अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होना हमारा दायित्व है। अपने कर्तव्य के प्रति सचेत रहना, समाज के प्रति अपने अपने दायित्वों को पूरा करने के लिए कभी पीछे नहीं रहना चाहिए। हमें अपने दायित्वों के प्रति सचेत रहना चाहिए। समाज का हिस्सा होने के नाते हमें समाज में फैली कुरीतियों को मिटाने का दायित्व निभाना चाहिए। मैं अपने दायित्व को समझते हुए भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने का प्रयास करूंगी। भ्रष्टाचार ने हमारे देश को खोखला करके रख दिया है। भ्रष्टाचारी, रिश्वतखोरो व दमनकारियों को सख्त सजा दिलवाना अपना दायित्व समझती हूं। इसके साथ ही माता-पिता, गुरुओं व बड़ों का आदर करना व छोटों से स्नेह भी मेरा दायित्वहै। मैं अपने जीवन में एक सफल व जिम्मेदार नागरिक बनना चाहती हूं। समाज व देश के प्रति अपने दायित्वों को निभाते हुए अपने समाज को आधुनिक बनाना चाहती हूं।
जिस समाज में हम रहते हैं उस समाज में हर व्यक्ति के पास रहने के लिए घर, खाने के लिए तीन समय का भोजन, कपड़ा और सुख-सुविधा के लिए सामान होना जरूरी है। देश के नागरिक होने के नाते हमें जरूरतमंदों की मदद करनी चाहिए। मैं चाहती हूं कि समाज का हर व्यक्ति पढ़ा-लिखा और समझदार हो। जो पढ़ नहीं पा रहा है उसे शिक्षा दिलाना भी हमारा दायित्व है। अपने सपनों को पूरा करने से पहले मेरा दायित्व है कि देश के लिए जो हो सकता है वह करूं। देश के लिए मैं कुछ करना चाहता हूं। जैसे गरीबी को हटाना, असहाय लोगों की मदद तथा देश में औरतों की सुरक्षा यकीनी बनाना अपना दायित्व समझता हूं। इन सब कामों से पहले देश के लोगों की सोच को बदलना चाहता हूं। हम अपनी सोच बदलेंगे तो हमारा देश बदलेगा। बच्चों में शुरू से ही देश के प्रति प्रेम की भावना भरना हमारा दायित्व होना चाहिए। जरूरी है कि हम समय के साथ अपनी सभ्यता और संस्कृति का हनन रोक सके इस पर विचार करे।
संचयिता चतुर्वेदी