दिन प्रतिदिन बढ़ते कोरोना मरीज़ो की संख्या व महामारी के फैलने का डर बार बार हमें ये संकेत दे रहा कि हमे राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम लागू और सख़्ती से इसके पालन की आवश्यकता है। जनवारी की शुरुआत से ही देश मे कई ऐसी गतिविधियां शुरू हो चुकी थी, जिसमे आम जनता के टैक्स से बनी सरकारी संपत्ति का नुकसान, व सरकारी नीतियों की धज्जियां उठाई जा रही थी। उस वक़्त देश मे महामारी का खतरा नही था अतः इस मुद्दे पर जोर नही दिया गया था। पर अब समय आगया है कि देश हित मे कुछ शख़्त और कड़े कदम उठाए जाये। अतः केंद्र व राज्य सरकार को राष्ट्रीय हित मे कदम उठा कर ऐसे व्यक्ति जो किसी भी तरह का सरकारी लाभ ले रहे उन्हें चिन्हित व उनके किसी भी तरह के वो कार्य जो राष्ट्रीय हित मे न हो उसके लिए दण्ड प्रावधान लगा होगा।
इस माहमारी के समय जब पूरा विश्व एक आर्थिक संकट से गुजर रहा ऐसे में पहले तो इतनी बड़ी जनसंख्या तक सभी सुविधाओं को पहुचाना। फिर पूरे देश की जिम्मेदारी दवा और इलाज़ का प्रबंध करना उसमे भी कुछ मुट्ठी भर नासमझ लोगो को लेकर काफी मुश्किल हो रहा है लॉक डाउन का सही से चलाना। अतः कुछ ज़ाहिल धर्म समुदाय के कारण एक 24 घण्टे सड़क पर तैनात सिपाही और पुलिस की समस्या दिन प्रतिदिन दिन बढ़ रही है। फिर वो भगवान तुल्य डाक्टर और नर्सिंग स्टाफ जो न सही से खा पाता न पी सकते न सो पाते न अपने घर परिवार जनों के पास जा सकते उन सभी को भी इन अनपढ़ न समझ और लोगो की बत्तमीजी का खुलेआम सामना करना पड़ रहा। अतः अब कुछ कड़े कानून व प्रावधानों की हमे बहुत जरूरत है।
सरकारी सेवाएं और सभी तरह की सरकारी मदद के बाद अगर आप देश के विरुद्ध कोई काम करे तो राष्ट्रीय सुरक्षा के अधिनियम को ध्यान में रखते हुए कानूनी कार्यवाही शुरू करनी चाहिए और ऐसा एक संविधानिक प्रस्ताव भी रखना चाहिए धर्म और जात तो पूछनी ही नही चाहिए आप नागरिक है, भारत के। इसलिए मुकदमा चलाया जाएगा। ऐसा करने से शायद देश बचेगा नही तो यही जलाएंगे फूकेंगे और नागरिकता के नाम पर कागज मांगो तो धरना देगे। फिर उन्ही धरनों के प्रदर्शन में बस और कार जलायेगे पुलिस को मरेगे। आम जन पर पुलिस पर पत्थर चलायेंगे। घरो की छतों से देसी बम विस्फोट सामग्री मिलेगी फिर भी हम इन्हें माफ करेगे क्योंकि हम एक लोगतांत्रिक देश है। तो फिर क्या हमें छूट मिलती है, देश की सरकारी सम्पत्ति को फुकने की अपने आसपास के लोगो को नुकसान पहुंचाने की? सन 1980 में ऐसी ही परिस्थितियों से निपटने के लिए स्वर्गीय श्री इंदिरा गांधी जी की सरकार में पारित ये कानून राज्यों और केंद्र सरकार को गिरफ्तारी का आदेश देता है। राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम-1980, देश की सुरक्षा के लिए सरकार को अधिक शक्ति देने से संबंधित एक कानून है। यह कानून केंद्र और राज्य सरकार को गिरफ्तारी का आदेश देता है। शक्तियांसंपादित करें।
यह कानून सरकार को संदिग्घ व्यक्ति की गिरफ्तारी की शक्ति देता है। नागरिकों की गिरफ्तारीसंपादित करें व अगर सरकार को लगता कि कोई व्यक्ति उसे देश की सुरक्षा सुनिश्चित करने वाले कार्यों को करने से रोक रहा है तो वह उसे गिरफ्तार करने की शक्ति दे सकती है। सरकार को ये लगे कि कोई व्यक्ति कानून-व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने में उसके सामने बाधा खड़ा कर रहा है तो वह उसे गिरफ्तार करने का आदेश दे सकती है। साथ ही, अगर उसे लगे कि वह व्यक्ति आवश्यक सेवा की आपूर्ति में बाधा बन रहा है तो वह उसे गिरफ्तार करवा सकती है। इस कानून के तहत जमाखोरों की भी गिरफ्तारी की जा सकती है। इस कानून का उपयोग जिलाधिकारी, पुलिस आयुक्त, राज्य सरकार अपने सीमित दायरे में भी कर सकती है। विदेशियों की गिरफ्तारीसंपादित करें व अगर सरकार को ये लगे कि कोई व्यक्ति अनावश्यक रूप से देश में रह रहा है। और उसे गिरफ्तारी की नौबत आ रही है तो वह उसे गिरफ्तार करवा सकती है। गिरफ्तारी की सीमासंपादित करें व कानून के तहत किसी व्यक्ति को पहले तीन महीने के लिए गिरफ्तार किया जा सकता है। फिर, आवश्यकतानुसार, तीन-तीन महीने के लिए गिरफ्तारी की अवधि बढ़ाई जा सकती है। एकबार में तीन महीने से अधिक की अवधि नहीं बढ़ाई जा सकती है। अगर, किसी अधिकारी ने ये गिरफ्तारी की हो तो उसे राज्य सरकार को बताना होता है कि उसने किस आधार पर ये गिरफ्तारी की है। जब तक राज्य सरकार इस गिरफ्तारी का अनुमोदन नहीं कर दे, तब तक यह गिरफ्तारी बारह दिन से ज्यादा समय तक नहीं हो सकती है। अगर यह अधिकारी पांच से दस दिन में जवाब दाखिल करता है तो इस अवधि को बारह की जगह पंद्रह दिन की जा सकती है। अगर रिपोर्ट को राज्य सरकार स्वीकृत कर देती है तो इसे सात दिनों के भीतर केंद्र सरकार को भेजना होता है। इसमें इस बात का जिक्र करना आवश्यक है कि किस आधार पर यह आदेश जारी किया जाता है। गिरफ्तारी के आदेश का क्रियान्वयनसंपादित करें। सीसीपी, 1973 के तहत जिस व्यक्ति के खिलाफ आदेश जारी किया जाता है, उसकी गिरफ्तारी भारत में कहीं भी हो सकती है।
संचयिता चतुर्वेदी
(लेख में व्यक्त विचार लेखक के हैं)