अमूमन देखा गया है कि परीक्षा से एक दिन पहले हम सब लोग ये सोच कर चिंतित होते है कि अगले दिन क्या होगा? क्या हम सभी प्रश्न हल कर पाएंगे? ठीक वैसी ही परिस्थिति इस वक्त जहाँ एक ओर दुनिया एक वैश्विक महामारी के दौर से गुजर रहा है वही दूसरी ओर दुनिया भर में लॉक डाउन भी घोषित किया गया था। लॉकडाउन और कर्फ्यू में काफी समानता है। दोनों प्रशासन द्वारा लगाया जाता है। लेकिन जनता कर्फ्यू इन दोनों से अलग है। इसमें लोगों को खुद से अपने घरों तक सीमित रखना है। उन पर प्रशासन का कोई दबाव नहीं होगा। हां सिर्फ एक नैतिक दबाव है। लॉकडाउन एक तरह की आपातकाल व्यवस्था होती है। अगर किसी क्षेत्र में लॉकडाउन हो जाता है तो उस क्षेत्र के लोगों को घरों से निकलने की अनुमति नहीं होती है। जीवन के लिए आवश्यक चीजों के लिए ही बाहर निकलने की अनुमति होती है।
अगर किसी को दवा या अनाज की जरूरत है तो बाहर जा सकता है या फिर अस्पताल और बैंक के काम के लिए अनुमति मिल सकती है। छोटे बच्चों और बुजुर्गों की देखभाल के काम से भी बाहर निकलने की अनुमति मिल सकती है। खुद प्रधानमंत्री ने घर के अभिभावक के तरह ये निर्णय लिया कि देश मे जनता कर्फ्यू होगा। प्रधानमंत्री मोदी जी ने ये भी तय किया था, की जरूरी सेवाएं जैसे राशन, दवाइयां, दूध इत्यादि जनता को मिलता रहे। और ये सुनिश्चित करना राज्य सरकार का काम था। मास्क लगाना बार बार हाथ साबुन से धोना। खुद को कोरन्टीन और सैनिटाइज करना ये जनता को अपने स्तर पर ही सुनिश्चित करना था। परन्तु हिन्दी कहावत है अकेला चना भाड़ नही फोड़ता। कुछ ऐसा हुआ है मोदी जी के वादों के साथ। राशन वितरण हो तो रहा है पर सिर्फ कागजों में। लोग मदद कर तो रहे पर सिर्फ फ़ोटो ओर सोसल मीडिया पर। हेल्पलाइन नम्बर भी है जिन्हें 10 बार रिंग करने पर कही एक बार कनेक्ट किया जाता है।
कुछ सरकारी नम्बर है जो मदद के समय जनता से हाथ खींच लेते है। कुछ स्वयं सेवी संस्था है जो बिना किसी आत्म सुरक्षा के सड़को पर खुद भोजन बाट रही। और कुछ एक मीडिया कर्मी है जो बिना किसी सरकारी मदद के 24 घंटे अपनी जान जोखिम में डाल कर लगे हुए है लाइव कवरेज में। आकर्षण का विषय ये है कि पेट्रोल ये दिनों 65 से 70 के बीच हो चुका है। तो राशन की वो बोरी जो 500 में मिलती थी वो 800 की हो चली है। शायद डिमांड और सप्लाई का नियमों पर सब बस चल ही रहा है भगवान भरोसे। देश कोरोना वायरस के खतरे का सामना कर रहा है। अभी तक कोरोना वायरस का इलाज खोजा नहीं जा सका है। इस बीमारी से निपटने के लिए बचाव ही एक तरीका है। लोगों को अपने घरों से बाहर निकलने से परहेज करना चाहिए ताकि वे किसी संक्रमति व्यक्ति के संपर्क में आकर खुद भी संक्रमित न हो जाएं।
अभी तक यह बीमारी भारत में नियंत्रण में है। इस चरण में अगर सावधानी बरती जाएगी तो बीमारी को हराया जा सकता है नहीं तो स्थिति गंभीर हो सकती है। बड़ी संख्या में डॉक्टर और कुछ लोग कोरोना के खतरे से लड़ रहे हैं। वे मरीजों को जरूरी सेवाएं मुहैया करा रहे हैं। कोरोना उनके लिए भी कम खतरनाक नहीं है। लेकिन वे मानवता की सेवा के लिए डटे हुए हैं। ऐसे में अगर देश मे कोरोना महामारी का तीसरा चरण शुरू हुआ तो वह कुछ ऐसा होगा। मरीज से डॉ को डॉक्टर से मीडिया और पुलिस को फिर डॉक्टर के परिवार और मीडिया और पुलिस के परिवार से आस पड़ोस को इसी चरण में देश मे फैलते देर नही लगेगी।
पर सवाल बनता है कि जब देश के प्रधानमंत्री को राज्यों के मुख्यमंत्री गंभीरता से नही ले रहे तो जनता कबतक और कितना लेगी? दिल्ली का पलायन ख़त्म हुये देर नही हुई थी, की मुम्बई पलायन शुरू हुआ है। ऐसे में मोदी जी को कुछ सख्त चेतावनी और नियम बनाने होंगे राज्यसरकार के लिए भी। देश के लोगो ने मोदी जी का चेहरा देख कर पार्टी को बहुमत और केंद्र में भेजा था। विश्वास के कारण जनता तो घर बैठेगी पर, देश के विभीषण राजय सरकारो पर नकेल कसने की जरूरत है। क्योंकि ज़मीनी स्तर पर नियमों और कानून को लागू करना इन्ही का दायित्व बनता हैं।
संचयिता चतुर्वेदी
(आलेख में व्यक्त विचार लेखक के हैं)