सूर्य की रेशमी किरणें चतुर्दिक् नृत्य कर रही हैं।आकाश अँजुरी भर-भर कर सिन्दूर की वर्षा कर रहा है,मानो वह प्रेमोन्मत प्रेमी की तरह धरती के अंग-अंग यदिको अपने प्रेम की शीतल फुहार सिक्त कर देना चाहता है!कोयल की कूक,भौंरे की गुन-गुन,मंद समीर की मृदु छुवन……एक अनोखी अनुभूति से मन प्राण पागल है !
इन सारे कौतुकों से बेखबर सतरंगी चूनर पहनी एक सुकुमारी तितली आहत,हारी हुई सी मखमली दूब की हरी सेज पर अचेत है।उसके अधर शुष्क हैं….काली आँखों में गहरी उदासी झाँक रही है।
“प्यारी तितली रानी,तुम बहुत उदास,अवसन्न तथा निराश लग रही हो….आओ,मेरे पास आओ..मैं अपनी नर्म पँखुडियों के आँचल से तेरे आँसू पोछ दूँगा…आओ,मेरी पँखुडियों में छिप जाओ, प्यारी तितली “किसी ने पुकारा !तितली के शरीर में हल्का स्पंदन हुआ,एक नैसर्गिक आनंद से विह्वल रोमांचित हो उठी वह…लगा कोई शीतल फुहार सिक्त कर रहा हो उसे ,अंग-अंग में शीतलता परिव्याप्त हो रही है !
“कौन हो तुम….?क्यों मेरी पीडाओं को सहला रहे हो…..?तुम्हारी आवाज में कितनी मिठास है !
क्यों मेरा हृदय ऐसे उल्लसित हो रहा है….? अपनी उदास पलको को उठाकर तितली ने कहा। क्षण भर को उसकी नजरें अटक-सी गईं …पास ही एक सुंदर लाल गुलाब मुस्कु्रा रहा था….भीनी-भीनी गंध की भाषा में उसे आमंत्रित कर रहा था…..!
तितली उडी …..फुर्रसे, उडकर उसकी पंखुडियों पर बैठ गई…. गुलाब ने पंखुडियाँ फैलाकर उसे समेट लिया…सुनहरे परागों से नहला दिया।एक अप्रतिम आनंद,नैसर्गिक सुख से सराबोर तितली निर्निमेष गुलाब की ओर देखती रही….।समय गुजरता गया … गुलाब के प्रेमिल सामिप्य में डूबी तितली के सारे ज़ख़्म भर गए।उसकी साँसों तथा आँखों में जिजीविषा की धूप थिरकने लगी…तितली ने समझा सुख यही है!परन्तु ग्रीष्म की तपती दोपहरी में गुलाब की पंखुडियाँ मुरझाने लगीं।….तितली खुद न्योछावर होती गुलाब को सुखी करने का हर संभव प्रयास करने लगी किन्तु गुलाब की पंखुडियों की रुक्षता बढती गई…. अंततः तितली के मन में फाँस बनकर उतरती चली गई….।तितली की साँसें अवरुद्ध होने लगी …..! गुलाब ने महसूसा पूछा-“क्या हुआ प्यारी तितली ….तुम ऐसी क्यों हो रही हो…?”कुछ नहीं क्षप्रिय!दुनिया को मेरा सुख देखा न गया ।एक फाँस सी चुभ रही है मेरे हृदय में…..एक दर्द भरी मुस्कान तितली के होठों पर छा गई ।
नहीं….नहीं , मैं तेरा कष्ट नहीं देख पाऊँगा …आओ ,काँटे निकाल दूँ…तितली रानी!”गुलाब ने औपचारिकता निभाई …..,झट कहा ….लेकिन तितली ने हौले से मुस्कुरा दिया…रक्त रिसने लगे….गुलाब की पंखुडियों को भिंगोने लगे…गुलाब ने देखा….बहुत घबडाया…प्रयत्न किया किन्तु तितली ने काँटा निकालने न दिया…कहा”इसे चुभे रहने दो प्रिय!तुम नहीं जानोगे हृदय में चुभी यह फाँस शनै:शनैः प्राणों को भेदती कितनी प्रिय…कितनी सुखद प्रतीत हो रही है!कितना आह्लादक है यह दर्द…धीरे-धीरे तितली की आँखें मुँदने सीलगीं ।सप्रयत्न आँखें खोलते हुए उसने कहा…एक गीत सुनोगे प्रिय…?और वह गाने लगी….एक दर्द भरा संगीत…दर्द भरी दास्ताँ…गुलाब के दामन शवनम से भरने लगे।काँटे तितली के प्राणों के निकटतम होने लगे….धीरे-धीरे उसकी आवाज रुँधने-सी लगी परन्तु वह गाती रही…झूम-झूम कर गाती रही……….
“अंतिम सफर है यह
अंतिम यह गीत है
.. .. मौत का भी गम क्या
जो पास मन के मीत है ….!
तभी काँटे तितली के प्राणों के उस पार हो गए… उसका शरीर निष्पंद हो गया !साँसें खो गई!खुली आँखें गुलाब पर टिकी खुली रह गई….गुलाब ने सिर उठाया ,देखा तितली फिर वहीं है,जहाँ उसे पहली बार देखा था……लेकिन तब सफर की शुरुआत थी…आज सफर का अंत ।जिजीविषा मौत की गोद में थक कर सो गई हो ज्यों…..!
तितली के रक्तभींगी गुलाब की पंखुडियाँ फिर लाल और ताजी हो गई…. लाल -लाल राग-रंजित गुलाब मुस्कुराया और मुस्कुराता रहा चिरकाल तक …क्योंकि उसकी यह मुस्कान ,तितलियों के हृदय में चुभती फाँस एवं आह्लादक दर्द का प्रतीक है……!!!
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डॉ अन्नपूर्णा श्रीवास्तव
पटना – बिहार