हे कमलनयन दशरथनन्दन है जगतनियन्ता रघुनाथ,
आया हूँ मैं शरण तुम्हारी अब न छोड़ो मेरा हाथ;
सदा कल्याण करो सभी के कष्ट हरो ।
है अहिल्यातारणहार हे सीतावर हे सुग्रीवनाथ,
मैं अधम पापी पतित अब थाम लो मेरा हाथ;
सदा कल्याण करो सभी के कष्ट हरो ।
हे भरताग्रज हे लक्ष्मणज्येष्ठय अब राखों मेरी लाज,
पथभ्रष्ठ न होऊँ पावनपथ से सदा रहो मेरे साथ;
सदा कल्याण करो सभी के कष्ट हरो।
ओ कौशल्यानंदन शबरीष्ट हे जानकी के नाथ,
सिर पर रहे सर्वदा मेरे आपका पावन हाथ;
सदा कल्याण करो सभी के कष्ट हरो ।
है भारद्वाजप्रिय सुतीक्ष्णईष्ट है आञ्जनेय के नाथ,
शबरी सम आशु की भी सुधि रखना श्री रघुनाथ;
सदा कल्याण करो सभी के कष्ट हरो ।
हे अत्रिप्रिय अनुसूयावन्दित है शिवजी के नाथ,
सदा रहूँ मैं शरण तुम्हारी है मेरे दीनानाथ;
सदा कल्याण करो सभी के कष्ट हरो ।
कमलनयन दशरथनन्दन है जगतनियन्ता रघुनाथ,
आया हूँ मैं शरण तुम्हारी अब न छोड़ो मेरा हाथ;
सदा कल्याण करो सभी के कष्ट हरो ।
है अहिल्यातारणहार हे सीतावर हे सुग्रीवनाथ,
मैं अधम पापी पतित अब थाम लो मेरा हाथ;
सदा कल्याण करो सभी के कष्ट हरो ।
हे भरताग्रज हे लक्ष्मणज्येष्ठय अब राखों मेरी लाज,
पथभ्रष्ठ न होऊँ पावनपथ से सदा रहो मेरे साथ;
सदा कल्याण करो सभी के कष्ट हरो।
ओ कौशल्यानंदन शबरीष्ट हे जानकी के नाथ,
सिर पर रहे सर्वदा मेरे आपका पावन हाथ;
सदा कल्याण करो सभी के कष्ट हरो ।
है भारद्वाजप्रिय सुतीक्ष्णईष्ट है आञ्जनेय के नाथ,
शबरी सम आशु की भी सुधि रखना श्री रघुनाथ;
सदा कल्याण करो सभी के कष्ट हरो ।
हे अत्रिप्रिय अनुसूयावन्दित है शिवजी के नाथ,
सदा रहूँ मैं शरण तुम्हारी है मेरे दीनानाथ;
सदा कल्याण करो सभी के कष्ट हरो ।
आशुतोष दीक्षित
प्रधानाचार्य, नैमिषारण्य तीर्थ
9455771569