पंडित सुरेश नीरव व्यंग्य विधा के एक ऐसे लोकप्रिय और प्रतिष्ठित हस्ताक्षर हैं जिन्होंने काव्य मंचों और पत्र-पत्रिकाओं में अपने चुटीले और धारदार व्यंग्य से एक अलग पहचान बनाई है।
संपर्क भाषा भारती के सुधी पाठकों, आपके लिए यह व्यंग्य-यात्रा श्री सुरेश नीरव के नए कॉलम “वायरल व्यंग्य” से प्रारम्भ होती है।
संपर्क भाषा भारती के पाठकों के लिए प्रस्तुत है उनका ताज़ा व्यंग्य।
सुधेन्दु ओझा
(मुख्य संपादक)
जिनके दिन अक्सर कभी लॉकअप में कटा करते थे करुणावतार करोना महाराज की कृपा से ऐसे-ऐसे लोग भी अब लॉकडाउन का अखंड लुत्फ उठा रहे हैं। फर्क़ बस इतना-सा है कि जिन्हें लॉपअप में वाद्ययंत्र की तरह पुलिस वाले अपनी सुविधानुसार सुखपूर्वक बजाया करते थे लॉकडाउन में अब ऐसे लोग भी उत्साह पूर्वक थालियां और तालियां बजा रहे हैं।
और जो शरीफजादे भूले से कभी घर में एक सुई तक नहीं उठाते थे, ऐसी फाइवस्टार प्रजाति के पति भी अब लॉकडाउन की असीम अनुकम्पा से कार्यकारी रामू बने चौका-बासन करने का तदर्थ उत्तरदायित्व पूरी निष्ठा के साथ फफक-फफक कर हंसते हुए निभा रहे हैं।
जिस कारण सदियों से दमित-पीड़ित पत्नियों के भाग्य में यकबयक आकस्मिक बंपर राजयोग का सुपर-डुपर आनंद अवतरित हो गया है। और सचमुच में वे अब गृह स्वामिनी और गृहलक्ष्मी की सुविधाएं बटोर रही हैं। पति जिसका कभी घर में आतंक हुआ करता था आत्मसमर्पित डाकू की तरह घर में ही कारावास को भोगने में लगे हुए हैं।
सैंकड़ों साहित्यिक विमर्शों,बहस-मुबाहिसों और संगोष्ठियों के बावजूद जो स्त्री सशक्तीकरण का अभियान डगमगा रहा था वह अब सच्चीमुच्ची में जगर-मगर कर जगमगा उठा है। वैसे बुजुर्गों का मानना है कि जब घर में चार बर्तन होते हैं तो वे खड़कते भी हैं। खड़कने के लिए चार बर्तन ही हों ऐसा जरूरी नहीं है। यह तो महज़ मुहावरेदारी है। खड़कानेवाले तो दो बर्तनों को भी इतने ज़ोरशोर से बजा डालते हैं कि इसकी गूंज से मुहल्ला गूंज उठता है।
लाख सोशल डिस्टेंसिंग की कोशिश की जाए घरेलू हिंसा के दिलचस्प इवेंट लॉकडाउन के मौसम में भी संतोषजनक ढंग से हो ही जाते हैं। सही भी है-जहां चाह,वहां राह। और फिर इस घरेलू जंग में- जिस दिये में जान होगी, वह दिया रह जाएगा। वरना आंधियां तो सोशलडिस्टेंस में भी घर के अंदर के घर तक में भी घुसपैठ कर ही जाती हैं। क्या समय दिखा दिया है इस लॉकआउट ने।
घर के अंदर रहो तो घर में पिटो। बाहर निकलो तो पुलिस से कुटो।कुटने-पिटने का फेस्टिवल सीजन ला दिया है इस कुटिल-क्रूर कोरोना ने। लॉकडाउन में लूट लो लॉकअप के भरपूर मज़े। जालिम कोरोना के लपेटे में आदमी क्या-क्या न बना। जाने ये लॉकडाउन। जाने ये लॉकअप। ये कैसा डैडलॉक है? जहां केवल लॉक कभी अप होता है तो कभी डाउन होता है। और आदमी तो जैसे खुद दुबका हो एक अदृश्य लॉकर में।
पंडित सुरेश नीरव