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पंडित सुरेश नीरव व्यंग्य विधा के एक ऐसे लोकप्रिय और प्रतिष्ठित हस्ताक्षर हैं जिन्होंने काव्य मंचों और पत्र-पत्रिकाओं में अपने चुटीले और धारदार व्यंग्य से एक अलग पहचान बनाई है।
संपर्क भाषा भारती के सुधी पाठकों, आपके लिए यह व्यंग्य-यात्रा श्री सुरेश नीरव के नए कॉलम “वायरल व्यंग्य” से प्रारम्भ होती है।
संपर्क भाषा भारती के पाठकों के लिए प्रस्तुत है उनका ताज़ा व्यंग्य।
सुधेन्दु ओझा
(मुख्य संपादक)
कूड़ा हम में है और हम कूड़े में हैं। कूड़े के लिए हमारी चाहत इतनी सांद्र है,इतनी गाढी है कि हमने सारी पृथ्वी को ही एक विशाल कूड़ेदान में तब्दील कर डाला है। नदियों में कचरा, समंदर में कचरा, पर्वतों पर कूड़ा, मैदानों में कूड़ा। यत्र-तत्र-सर्वत्र कूड़ा और करकट। जब सारी जमीन को कूड़े से पाट देने पर भी मन नहीं भरा तो आसमान में कूड़ा बिखेरने पर आमादा हो गया है आदमी।
वैज्ञानिकों का कहना है कि चांद की सतह पर जो धरती से अंतरिक्ष यात्री गए हैं वो अपनी आदत के अनुसार वहां भी खूब कचरा बिखेर आए हैं और पूरे उत्साह के साथ यह सिलसिला अभी भी जारी है।ई-कचरे का कूड़ा कबाड़ इस बात की ताकीद कर रहा है कि धरती से आदमी गंदगी के कितने तोहफों से चांद की खूबसूरती में चार-चांद लगा चुका है। ग्रहों के अलावा अंतरिक्ष में भी सेटेलाईटों का इतना कूड़ा बिखेरा जा चुका है कि अंतरिक्ष स्वच्छता अभियान भी कहीं शुरु न करना पड़ जाए।आदमी है जहां,गंदगी है वहां।जिव-जंतुओं में सबसे श्रेष्ठ कहा जानेवाला केवल आदमी ही एक ऐसा जघन्य जीव है जिसे गंदगी बिखेरने में भी दर्जा-ए-अव्वल हासिल है। उसकी बनाई पॉलीथिन और प्लास्टिक ने तो धरती को असमय ही बूढ़ा कर दिया है। और नदियों को नालों में बदल डाला है।
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हजारों टन कूड़ा समंदर के सीने में डाल दिया है। हवा में कूड़ा,पानी में कूड़ा,धरती में कूड़ा।आसमान में कूड़ा। आदमी के आचार में कूड़ा, विचार में कूड़ा। व्यवहार में कूड़ा।और-तो-और संस्कार में कूड़ा। आदमी के भीतर कूड़ा।आदमी के बाहर कूड़ा।आदमी के अगल में कूड़ा।आदमी के बगल में कूड़ा। और उसपर तुर्रा ये कि हम आदमी हैं।बाकी सब जानवर हैं। हकीकत यह है कि जानवरों ने कभी धरती को गंदा नहीं किया।धरती को गंदा सिर्फ और सिर्फ आदमी ने ही किया है। कभी कूड़ा बहाकर तो कभी खून बहाकर। तय है कि अगर आदमी नहीं होता तो इस संसार में कूड़ा भी नहीं होता। कूड़े का अखंड और अनंत श्रोत है आदमी। और आदमी का कूड़ापन है आदमी की आदमीयत।
और आदमी की असीम अनुकम्पा से यह पृथ्वी है आजकल एक विशाल कूड़ा केन्द्र। जिसकी हवाओं में आसमान में, नदियों और तालाबों में बस कूड़ा ही कूड़ा है। कार्बनिक कूड़ा। अकार्बनिक कूड़ा। गीला कूड़ा। सुखा कूड़ा। और ई-कूड़ा। कूड़ा हमारी शान है। कूड़ा हमारी पहचान है। और हम सभी चलता फिरता कूड़ादान हैं।
पंडित सुरेश नीरव