शहर में कर्फ्यू लगा था।मिसेज शुक्ला काफी परेशान थीं ।बच्ची का ऑपरेशन हुआ था ओठों का।वो कुछ भी खा-पी नहीं पा रही थी ।सिर्फ चिम्मच या स्ट्रॉ से कुछ पी पाती थी खाने का तो कुछ सवाल ही नहीं पैदा होता था।सुबह से शाम हुई, शाम से रात और फिर अगले दिन सुबह हो गयी।बेटी रिनी का आहार समाप्त हो चुका था सुबह से बच्ची सिर्फ पानी पर गुजारा कर रही थी ।और भूख से व्याकुल थी मगर सिंगल मदर मिसेज शुक्ला बेबस थीं क्योंकि शुक्ला जी भगवान को प्यारे हो चुके थे।
आधे घण्टे के लिये कर्फ्यू खुला तो लोग ऐसे टूट पड़े खाने पीने के सामान पर जैसे भूखी चील गोश्त पर झपट्टा मारती हो।मिसेज शुक्ला हाथ में नोट लिये खड़ी रह गईं मगर बच्ची के लिए दूध की दो बोतलें हासिल ना कर सकीं।बेटी को लेकर लौट आईं ,बेटी बस रोती रही क्योंकि होंठों में टांके लगे होने के कारण वो ठीक से रो कर अपनी पीड़ा नहीं बता सकी।स्त्री को अपनी संतान की पीड़ा सुनने के लिये स्वर की ज़रूरत नहीं पड़ती।बेबसी में लिपट कर मॉं बेटी खूब रोए।
पड़ोस में भट्टू की देसी दारू की भट्ठी थी जिसमें मिसेज शुक्ला बहुत चिढ़ती थीं।दारूबाज आते शाम को तो झूमते-इतराते कई बार गिरते -पड़ते भी थे।कई बार दारूबाज आपस मे गाली-गलौज भी करते थे ।मिसेज शुक्ला को इस बात से बहुत हकतल्फ़ी थी कि उन्हें चैन से जीने का अवसर भी नहीं नसीब है ऐसे लोगों से।उन्होंने कई बार पुलिस से शिकायत की ,और भट्टू कई बार जेल के अंदर भी गया।लेकिन बाहर निकल कर वो फिर वही सब धंधा करने लगता।
कर्फ्यू में भी शराब के तलबगार आये।शराब हर कानून की बन्दिश से लोहा लेती है हालात कैसे भी हों ?शराब ने अपना कमाल किया ।थोड़ी देर बाद भट्टू ने मिसेज शुक्ला के दरवाजे पर दस्तक दी।उसे देखते ही मिसेज शुक्ला की त्योरियां चढ़ गईं उन्होंने अंगारों पर लोटते हुए कहा”तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई इस दर तक आने की,जाओ वरना पुलिस बुलाऊंगी”।
भट्टू ने दो बोतलें दूध की उनके दरवाजे पर रख दी और वहाँ से चुपचाप चला गया।मिसेज शुक्ला कुछ बोलती समझ पातीं इससे पहले रिनी ने दूध की बोतलें उठा ली और इशारे से अपनी मां को दूध पिलाने का इशारा करते हुए किचन की ओर भागी ।
रिनी को दूध पिलाने के बाद मिसेज शुक्ला ने कुछ पैसे लिए और खुद से जूझती हुई भट्टू के दरवाजे पर पहुंची ।उसके दरवाजे पर दस्तक दी ,।दरवाजा भट्टू ने खोला ,मिसेज शुक्ला ने झेंपते हुए कहा-
“तुम्हे दूध कहां से मिला ,तुम्हारे घर मे तो कोई दूध पीता नहीं ।खैर शुक्रिया ,ये लो दूध के पैसे”।
भट्टू ने सर्द स्वर में कहा”शराब की बोतलों के बदले दूध की बोतलें मिली।दारू मेरी रोजी है ,आपने मेरे बच्चों के पेट पर लात मारी एक बार,कई बार,मैं बच्चे की भूख और तड़प समझ सकता हूँ ,जैसे मेरी औलाद वैसे आपकी”।
मिसेज शुक्ला ने सौ सौ के दो नोट भट्टू की तरफ बढ़ाये तो उसने धीमे से कहा-
“मैं शराब बेचता हूँ, दूध नहीं”।
मिसेज शुक्ला ने फंसे हुए स्वर में कहा “लेकिन वो ,’…………”।
भट्टू ने क्रोध से चीखते हुए कहा”चली जाइये यहाँ आने की आपकी हिम्मत कैसे हुई”ये कहते हुए उसने दरवाजा बड़ी तेजी से भड़ाक से बंद कर लिया ।
मिसेज शुक्ला दरवाजे को खड़ी घूर रही थीं।
दिलीप कुमार