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Home विशेष

थर्ड-जेंडर

suraj singh by suraj singh
March 23, 2020
in विशेष
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डॉ रंजन ज़ैदी

 

 

 

 

 

डॉ. रंजन ज़ैदी

समाज का एक ऐसा वर्ग जिसे थर्ड-जेंडर की नज़र से देखें तो उसे आज भी किताबों में ख्वाजासरा कहा जाता है. ख्वाजासराओं का सिलसिला महाभारत काल में अर्जुन से लेकर वन देवी मां बहुजन की उस घटना से भी मिलता है जिसमें माँ बहुजन ने अपने पिस्तान काटकर भेंट कर दिए थे. इस लेख को मैं एक कोलाज़ के रूप में इसके संक्षिप्त परिवेश में समेटकर प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हूँ जो शायद विषयगत होकर पाठकों की जिज्ञासा को कुछ कम करने में सहायक बन सके.
**************************

ख्वाजासरा के कई नाम हैं. कई अन्य नामों में उन्हें खन्सा, ख़ुसरा, हिजड़ा और ज़न्खा या आज के फैशन में गे तक कहा जाता है लेकिन गे भारत और पकिस्तान में कोई संगठित व स्वीकृत समुदाय नहीं है. जबकि ख्वाजासरा समुदाय का एक लम्बा इतिहास रहा है. इसकी जड़ें भारत में महाभारत काल तक फैली मिलती हैं. खनसा के दो प्रकार हैं, एक खंशा मुश्किल और दूसरा खन्शा-ये-आम. खन्शा मूलतः अरबी का शब्द है. इसका अर्थ होता है, ऐसी औरत जिसके शरीर में दोनों लिंग एक साथ हों सक्रिय हों. खन्शा-ये-आम उस ख़ुसरा को कहते हैं जिसके दो लिंग हों लेकिन सक्रिय न हों.ख़ुसरा मुश्किल यानि जिसमें एक स्त्री या एक पुरुष का लिंग हो लेकिन सक्रिय न हो. वैज्ञानिकों ने सर्जरी के माध्यम खन्शा मुश्किल के एक सक्रिय लिंग को सुरक्षित कर उन्हें पुरुष या स्त्री बनाने में अब सफल हो चुके हैं.
अरबी साहित्य में लिखा गया मशहूर ग्रन्थ ‘अलफ़सूलुल-महमह फ़ी मनाक़िबल-आइमह’ में एक खन्शा के बारे में वाक़या दर्ज है. इस वाक़ये ने तत्कालीन अरब के बड़े-बड़े बुद्धिजीवियों के बीच एक ऐसी बहस शुरू करा दी कि आज तक उसका कोई बदल सामने नहीं आ सका है. हुआ यूँ कि अरब के महान प्रथम इस्लामी-वैज्ञानिक दानिश्वर और पैग़मबर हज़रत मुहम्मद (स) के दामाद हज़रत अली की खिलाफ़त के दौरान उनके हुज़ूर में एक खन्शा का मुक़दमा सामने लाया गया.
मुक़ददमा यूँ था कि एक व्यक्ति ने खंशा से शादी की और मेहर में एक लौंडी यानि खरीदी हुई दासी उसे उपहार में भेंट की. समस्या यह थी कि जिस व्यक्ति ने खन्शा से विवाह किया था उसके दो लिंग थे, एक स्त्री का और दूसरा पुरुष का. पुरुष हब्शी ने पत्नी के रूप में जब उसे इस्तेमाल किया तो उसके घर में एक पुत्र का जन्म हो गया. इसी तरह जब खन्शा ने अपनी गिफ्टेड दासी के साथ सहवास किया तो उससे भी एक पुत्र ने जन्म ले लिया. यह एक अद्भुत घटना थी. जिसके चर्चे घर-घर में होने लगे.
खन्शा के ऐब और घर में दो-दो लड़कों की संपत्ति में समान भावी दावेदारी के खतरे ने हब्शी पुरुष को हज़रत अली के हुज़ूर तक पहुंचा दिया. क्योंकि इस खतरनाक समस्या ने हब्शी को बहुत परेशान कर दिया था. मुकदद्मे की सुनवाई शुरू हुई.
रूदाद सुनकर हज़रत अली ने अपने दो ग़ुलामों यानि बर्क़ और क़म्बर को अपने हुज़ूर में हाज़िर होने का हुक्म दिया. जब वे दोनों हाज़िर हुए तो हज़रत अली ने आदेश दिया कि वे खंशा की मुश्किल में आने वाले दिनों की तरफ वाली पसलियों को गिनें, गिनकर बताएं कि वे कितनी हैं. अगर बायीं ओर की एक पसली दायीं ओर कम हो तो फिर इस खन्शा मुश्किल को पुरुष समझा जायेगा, अन्यथा उसे स्त्री समझा जाये.
पसलियों की गिनती से पता चला कि खन्शा ख्वाजासरा है.
हज़रत अली इब्ने अबुतालिब ने अपने फैसले में कहा कि चूंकि मर्द की बायीं पसली औरत की पसलियों से कम होती है और स्त्री की दोनों ओर की पसलियां बराबर-बराबर होती हैं, इसलिए खन्शा स्त्री नहीं है.
फैसले में बताया गया कि स्त्रियों में कुल पसलियों की संख्या 24 होती हैं, 12 दायीं तरफ तो 12 बायीं तरफ. इसमें बांयीं पसली दूसरी पसलियों से टेढ़ी होती है. जबकि पुरुष की पसलियों में दायीं ओर 12 और बायीं ओर 11 ही पसलियां होती हैं. संस्कृत में इसीलिए स्त्री (पत्नी) को वामा कहा गया है.
तेरहवीं शताब्दी में जब अलाउद्दीन खिलजी ने हिंदुस्तान में अपनी हुकूमत क़ायम की तो उसे अपनी सेना के लिए सर्वप्रथम ऐसी महिला जासूसों की ज़रुरत पड़ी जो देखने में न केवल सुन्दर लगें बल्कि समय आने पर दुश्मन सैनिकों से वे मुक़ाबला भी कर सकें. अलाउद्दीन खिलजी की एक ख्वाजासरा थी क़ुतुब अम्बर जिसे उसने गुजरात मुहिम के दौरान गुलामों के एक सौदागर से उपहार के रूप में पाया था.
अम्बर बहुत एक कुशल प्रबंधक, कल्पनाशील, महत्वकांक्षी, बुद्धिमान, हाज़िरजवाब और चतुर ख्वाजासरा थी जिसने कुछ ही समय में अलाउद्दीन खिलजी के दिल को जीतकर उसकी निजी सुरक्षा-दल की मुखिया और सुरक्षा सलाहकार बन गई थी जिसे बाद में सेना की विशिष्ट ख़ुफ़िया यूनिट का प्रमुख भी बना दिया गया था.
चावल के दाने के द्वारा की जाने वाली जासूसी की ईजाद उसी ने की थी. हुआ यूं था कि खिलजी की एक बड़े सैनिक ऑपरेशन की सूचना पडोसी रियासत में सक्रिय जासूसों तक पहुंचानी थी जो वहां के राजमहल और उच्च-सैनिक कमान की जासूसी करने में व्यस्त थे. कारन था, वहां की रियासत के राजा खिलजी के आकस्मिक हमले को पूरी शक्ति सेमुक़ाबलाकर उसे परास्त कर देने की तैयारी कर रहा था. वह हर तरफ से चौकस रहना चाहता था. खिलजी के जासूसों को ऐसे में सरहद पार सन्देश भेजते रहना मुश्किल हो गया था. क़ुतुब अम्बर ने सुल्तान को विश्वास दिलाया कि उसका महत्वपूर्ण ख़ुफ़िया सन्देश पड़ोस की रियासत तक अवश्य पहुँचाया जायेगा और उसने ऐसा किया भी.
ख्वाजासरा क़ुतुब अम्बर ने रियासत के उन माहिर अरब-ईरानी और बुखारा के शिल्पकारों को तलब किया जिन्होंने पूरे क़ुरआन को चावल के एक दाने पर लिखकर कमाल कर दिखाया था. हाजी अब्दुल वहाब अस्फहानी ईरान के थे. उन्होंने सारी गुप्त योजना सुनकर उसे सीमापार पहुँचाने का बीड़ा उठाया और चले गए. खिलजी ने अम्बर से ख़ुफ़िया रिपोर्ट तलब की तो उसने उच्च सुरक्षा सलाहकार समिति की बैठक के सामने अपने ऑपरेशन का जब ग्राफ दिखया तो सबके मुंह खुले के खुले रह गए.
अब्दुल वहाब अस्फहानी ने दिन-रात एक कर सुल्तानी सन्देश को चावल के एक दाने पर (नक़्शे के साथ) लिख और अंकित कर दिया और दुश्मन देश से व्यापार करने आये एक सौदागर (जिसकी इधर आकस्मिक मृत्यु हो गई थी) की दाढ़ में चावल का दाना रखकर सैनिक नीतियों के नियमानुसार शव को पडोसी रियासत के अधिकारियों के हवाले कर दिया.
जैसे ही सीमा पार शव पहुंचा, पहले से वहां उपस्थित खिलजी के सक्रिय जासूसों ने नाटककर शव की दाढ़ से चावल का दाना निकाल लिया और योजनानुसार जाकर सैनिक ऑपरेशन को कामियाब करने की तैयारी में व्यस्त हो गए. क़ुतुब अम्बर वही ख्वाजासरा था जिसके समुदाय से निकले एक गुलाम ख्वाजासरा मालिक काफूर को सेना में जनरल तक की पदवियाँ दी गयीं थीं और उसने आनेक जंगों में अपने सुल्तान को विजय दिलाई थी.
गुलाम वंश के सुल्तानों की हरमसराओं में ख्वाजासराओं का महत्त्वकालांतर में बहुत बढ़ गया था. उनकी बाक़ायदा नफ़रियाँ बनने लगी थीं, साथ ही ओहदे और हैसियतें भी तय होने लगी थी. गुलाम वंश में तो रज़िया सुल्तान का घुलम हब्शी अल्तूनिया (जो कि खुद ख्वाजासरा था) से इतना गहरा प्रेम हो गया था कि वे शादी के बंधन तक में बंध कर युद्ध में लड़ते हुए दिवंगत हुए थे.
इसी तरह मुग़ल बादशाही से लेकर नवाबशाही युग तक ख्वाजासराओं का महत्व बढ़ता और घटता रहा. बादशाह अकबर के समय तो एक ख्वाजासरा आर्थिक रूप से इतना सशक्त हो गया था कि उसने क़िले के भीतर के राजनीतिक षड़यंत्रो में भी युवराज बादशाह अकबर की दूध पिलाई माँ अंगा की सियासत का साथ देने लगी थी. यह बात और है कि महल की रानी इंदुमती देवी को जब उसकी एक अंगरक्षक ख्वाजासरा अम्बिका से षड़यंत्र का पता चला तो बादशाह ने अंगा के सगे पुत्र को दंड के रूप में क़िले की फ़सील से नीचे हाथियों के मैदान में उसे फिकवाकर मौत की सजा देदी और षड़यंत्र में शामिल रईस ख्वाजासरा की संपत्ति जब्तकर उसे टॉप के दहने से बांधकर उदा दिया. इस तरह अकबर के तख्ता-पलट का इतिहास समय की क़ब्र में दफन हो गया.
मुग़लों के पतन के बाद अंग्रेज़ों के समय से ख्वाजासरा हिजड़े कहलाये जाने लगे क्योंकि उस समय उनका राजनीतिक व सामाजिक स्तर काफी नीचे गिर गया था. आज़ादी के बाद तो उनकी आर्थिक स्थिति में और भी गिरावट आ गयी. अब स्थिति यह है कि वे विभिन्न पेशे अपनाकर देश के विभिन्न इलाक़ों में तरह-तरह के रोज़गार अपना रहे हैं. कभी भीख मांगते हैं तो कहीं नाच-गाना कर पैसे कमाते हैं. कुछ क्षेत्रों में तो ख्वाजासरा अपने को बदलने के उद्देश्य से पढाई-लिखाई कर भारत-पाकिस्तान में नौकरियां भी कर रहे हैं. जैसे पाकिस्तान की मशहूर टीवी ऎंकर महक मलिक और मॉडल रमल खान, भारत की सियासी ख्वाजासरा विजयन्ती वसंता मोगली, रचना मुद्रामोईना, मधु (मेयर रायगढ़), कुंती (बिज़नेस ख़ुसरा), शबनम और अन्य. इन्हें देखकर अब यह विश्वास होने लगा है कि हताशा और बेचारगी की ज़िन्दगी जीने वाला थर्ड जेंडर समुदाय अपने भविष्य को सुनहरे रंग से रंग देने के लिए आगे बढ़ चुका है.
____________________________________________________________________________
94FF/Ashiana greens, Ahinsa khand2, INDIRAPURAM, GHAZIABAD-201014 (UP) INDIA

Tags: थ3र्ड-जेंडर/ इस लेख को मैं संक्षिप्त परिवेश में समेटकर प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हूँ....
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