• Home
  • Disclamer
  • Programs
  • Bank Details
  • Contact us
Janlok India Times news
Advertisement
  • होम
  • मुख्य समाचार
  • राज्य
    • उत्तर प्रदेश
    • उत्तराखंड
    • कश्मीर
    • जम्मू
    • पश्चिम बंगाल
    • बिहार
    • मध्य प्रदेश
    • महाराष्ट्र
    • राजस्थान
    • हरियाणा
    • हिमाचल प्रदेश
    • सिक्किम
  • बड़ी खबरे
  • दिल्ली एनसीआर
  • कोरोना
  • विदेश
  • राजनीति
  • विशेष
  • Youtube Channel
  • Live Tv
  • More
    • स्वास्थ्य
    • व्यापार
    • खेल
    • मनोरंजन
    • राशिफल
No Result
View All Result
  • होम
  • मुख्य समाचार
  • राज्य
    • उत्तर प्रदेश
    • उत्तराखंड
    • कश्मीर
    • जम्मू
    • पश्चिम बंगाल
    • बिहार
    • मध्य प्रदेश
    • महाराष्ट्र
    • राजस्थान
    • हरियाणा
    • हिमाचल प्रदेश
    • सिक्किम
  • बड़ी खबरे
  • दिल्ली एनसीआर
  • कोरोना
  • विदेश
  • राजनीति
  • विशेष
  • Youtube Channel
  • Live Tv
  • More
    • स्वास्थ्य
    • व्यापार
    • खेल
    • मनोरंजन
    • राशिफल
No Result
View All Result
Janlok India Times news
No Result
View All Result
Home उत्तर प्रदेश

सुलगता है तेरी यादों का बन

Janlok india times news bureau by Janlok india times news bureau
February 18, 2020
in उत्तर प्रदेश, विशेष
0
0
SHARES
1
VIEWS
Share on FacebookShare on Twitter
डॉ रंजन ज़ैदी

राही मासूम रज़ा, आती हुई हिन्दी की आंधी से न तो भयभीत थे और न ही विचलित, लेकिन नये रास्ते तलाश करने में उन्होंने अपने कदम पीछे नहीं लौटाये। इसका प्रभाव कालांतर में हमने बखूबी देखा।

डॉ रंजन जै़दी

सैयद मासूम रज़ा आब्दी वल्द सैयद बशीर हसन आब्दी, साकिन गंगोली ज़िला ग़ाज़ीपुर, उत्तर प्रदेश। सैयद मासूम रज़ा का जन्म सितम्बर, 1927 को उनके नानीहाल बघुंही में हुआ था। बघुंही, पारा और नुनेहरा नामक क़स्बों के पास बसा हुआ पूर्वी उत्तर प्रदेश ज़िला ग़ाज़ीपुर का एक छोटा सा गांव है। उनका दादीहाल गंगोली में है. यानी ग़ाज़ीपुर से लगभग 12.14 मील दूर।
कहते हैं कि उस गांव का नाम वहां के एक राजा गंग के नाम पर रखा गया था। मासूम रज़ा की दादी राजा मुनीर हसन की बहन थीं। ढेकमा-बिजौली में उनका निकाह एक दुहाजू व्यक्ति के साथ हुआ लेकिन वह कभी अपनी ससुराल में नहीं रहीं। उन्होंने अपना पूरा जीवन अपने पति के साथ मायके में ही गुज़ार दिया। उनके पति अपने जीवन के आखिरी दिनों में मानसिक रोंग से पीड़ित हो गये थे और एक दिन एक गढ़े में गिरते ही उनकी मृत्यु हो गई थी।
राही के पिता सैयद बशीर हसन आब्दी ग़ाज़ीपुर के जाने-माने वकीलों में शुमार किये जाते थे और एक कट्टर कांग्रेसी होने के कारण उनका राजनीतिक क़द भी काफ़ी बड़ा था।
अर्धसामंती परिवेश में पले-बढ़े होने के कारण मासूम रज़ा को सामाजिक भेद-भाव का बखूबी अहसास था। विरासत में मिले शानदार अतीत, आभिजात्य संस्कृति के परिवेश और विशिष्ट सामाजिक मान्यताओं की बंदिशों ने मासूम रज़ा को बचपन में ही यह सिखा दिया था कि किसे ‘सलाम’ करना चाहिए और किसे ‘आदाब’। शायद यही वे कारण थे कि रक्त की शुद्धता और रूढ़िवादी संस्कारों की बद्धता से जकड़े मासूम को उनका विरोध करते रहने से विमुख होते कभी किसी ने नहीं देखा। अपने जीवन के अंतिम क्षणों तक उन्होंने इंक़लाब के रास्ते और उसके फ़लसफ़े को अपनी सोच से खारिज नहीं होने दिया। बचपन से उनकी विद्राही प्रवृति, मुखर और स्पष्टवादिता ने उन्हें कालांतर में एक ऐसे साहित्यकार के रूप में प्रस्तुत किया जिसका उदाहरण बहुत कम उपलब्ध है।
मासूम रज़ा के प्रथम गुरू थे मौलवी मुनव्वर। कुरआन पढ़ने की दीक्षा मासूम ने इन्हीं से ली ली थी जो उन्हें कभी पसंद नहीं आये। अनेक कारणों में एक कारण यह था कि वह खर्च में प्रतिदिन मिलने वाली इकन्नी मासूम से छीन लेते थे और जब वह मौलवी मुनव्वर से अपनी तसल्ली के लिए सवाल करते तो तसल्लीबख्श उत्तर देने के बजाय वह उनकी पिटाई करने लग जाते थे।
मासूम रज़ा के साईस का नाम मथुरा और घोडी का नाम मोती था जिनसे उन्हें बेहद लगाव था। मथुरा उन्हें इसलिए पसंद था कि वह उन्हें मोती की सवारी करने के लिए प्रेरित करता रहता था लकिन बोन टीबी होने के कारण वह घुड़सवारी नहीं कर सकते थे। दस वर्ष की आयु में उन्हें बोन टीबी हो गई थी जिसके कारण उनकी एक टांग में लंग आ गया था। उन दिनों बड़े भाई मूनिस रज़ा जो कालांतर में दिल्ली विश्वविद्यालय के उप-कुलपति बने, बड़ी बहन क़मर जहां और नौकर रऊफ़ उन्हें उठाकर आंगन में लाते और पतंग उड़ाने के शौक़ में उनकी मदद करते। उन दिनों की प्रतिष्ठित उर्दू पत्रिका ‘इस्मत’ मासूम की पहली पसंद रही थी।
मासूम के बचपन के मित्रों में लालू और लड्डन उनके साथ सबसे छुपकर बीमारी की हालत में भी डोली में बैठ कर स्थानीय अमर टाकीज़ में लगने वाली फिल्मों को देखने ज़रूर जाते थे। ये दोनों मित्र कालांतर में उनके उपन्यास आधा गांव में पात्र बन कर दिखाई दिये। मासूम को अपनी हवेली के किस्सा-गो 45 वर्षीय कल्लू कक्का भी कभी नहीं भूले। उन्हें 6 रू0 प्रति माह वेतन के रूप में बच्चों की कल्पनाशीलता बढ़ाने के उद्देश्य से किस्सागोई के लिए दिया जाता था। तिलस्मे होशरुबा के लगभग 21 अध्याय मासूम ने रात-रात जागकर कल्लू कक्का से ही सुने।
तिस्मे- होशरुबा की कहानियों ने मासूम पर इतना गहरा प्रभाव छोड़ा कि जब वह बड़े हुए और शोध के लिए विषय चुनने की बात आई तो उन्होंने इन्हीे कहानियों में से सांस्कृतिक तत्व तलाशने का इरादा किया और विषय चुना ‘तिलस्मे-होशरुबा में सांस्कृतिक तत्व’, जिसे उर्दू में हम ‘तहज़ीबी अनासिर’ कह सकते हैं। ये वही तिलस्मे-होशरुबा की कहानियां थीं जिन्हें मुंशी प्रेम चंद ने पढ़ कर अपनी रचना यात्रा की शुरुआत की थी।
बीमारी के कारण मासूम का स्कूल से नाता लगभग टूट चुका था। पिता भी नहीं चाहते थे कि मासूम अस्वस्थता के कारण पढ़ाई जारी रखें। इसके बावजूद वह उर्दू मााध्यम से परीक्षाएं देते रहे। पिता, मासूम के भविष्य के प्रति चिंतित रहा करते थे, इसी करण उन्होंने रोज़ी-रोज़गार को ध्यान में रखते हुए ग़ाज़ीपुर में ही मासूम के लिए ‘कोआपरेटिव स्टोर’ खुलवा दिया और जब वह रोज़गार से लग गये तो उनका ज़िला फ़ैज़्ााबाद के हेड पोस्टआफ़िस के पोस्टमास्टर की छठी कक्षा तक पढ़ी एक घरेलू और मज़हबी किस्म की लड़की मेहरबानो से विवाह कर दिया। मासूम को यह लड़की किसी भी रूप में स्वीकार नहीं थी। तीन वर्षांे बाद इसी लिए दोनों के बीच तलाक हो गई। कमाल की बात यह है कि तलाकनामे पर भी मासूम ने हस्ताक्षर नहीं किये बल्कि पिता बशाीर हसन आब्दी एडवोकेट को करने पडे़ क्योंकि मासूम ने बेहद मासूमियत से कह दिया था कि जिसने शादी कराई, वही तलाक़ भी दे।
यहां विशेष उल्लेखनीय बात यह है कि इस अपमान से आहत होकर मेहरबानों ने अपनी पढ़ाई शुरू की और पहली ही बार प्रथम श्रेणी में हाई स्कूल पास कर अपने समय के समाज को चौका दिया। इस सफलता ने मेहरबानो को फिर कभी पीछे मुड़कर नहीे देखने दिया। कालांतर में जब तक वह प्रोफ़ेसर नहीं बन गई, उन्होंने सुकून का सांस नहीं लिया।
अपने भाई प्रोफ़ेसर मूनिस रज़ा के प्रगतिशील विचारों से मासूम काफ़ी प्रभावित रहा करते थे। इसी विचारधारा के अंतर्गत ही उन्होंने 1942 के साम्यवादी आंदोलन में भाग लेने के उद्देश्य से पहली बार ग़ाज़ीपुर से भागकर लखनऊ की यात्रा की जहां पहली बार वह प्रगतिशील लेखकों और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के सम्पर्क में आये जिसमें उनके भाई प्रोफ़ेसर मूनिस रज़ा को काफ़ी सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था।
1949 में इलाहाबाद प्रगतिशीलियों और कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ताओं का गढ़ सा बन चुका था। यहीं पर साम्यवादी विचारधारा के कट्टर समर्थक और उस समय तक प्रतिष्ठित हो गये उर्दू के शायर अजमल अजमली से मासूम की पहली भेंट हुई जिन्होंने उनके जीवन की दिशा ही बदल दी। उन्हीें के माध्यम से मासूम जो अब तक उर्दू शायरी में राही मासूम रजा़ के नाम से पहचाने जाने लगे थे, की भेंट उर्दू विद्वान डा. एजाज़ हुसैन से हुई जो नकहत क्लब के संस्थापक अध्यक्ष थे, उन्होंने राही की शायरी की न केवल खूब सराहना की बल्कि उनकी अनेक हिन्दी साहित्यकारों से भेंट भी कराई, जिनमें बलवंत सिंह, उपेंद्रनाथ अश्क, कमलेश्वर, और धर्मवीर भारती सरीखे अनेक साहित्यकार विशेष उल्लेखनीय हैं। उर्दू साहित्यकारों में मुजाविर हुसैन जो इब्ने सईद के नाम से लिखते थे, जमाल रिज़वी यानी शकील जमाली, खामोश ग़ाज़ीपुरी, मसूद अख्तर जमाल,
वामिक़ जौनपुरी, मुस्तफ़ा ज़ैदी, तेग़ इलाहाबादी, असरार नार्वी जो इब्ने सफ़ी के नाम से अपने समय की बुलंदियां छू रहे थे, और रघुपति सहाय फ़िराक़ गोरखपुरी आदि साहित्यकार प्रमुख थे। ये और इन जैसे अनेक साहित्यकार तथा कवि व शायर प्रगतिशाील लेखक संघ के सदस्य थे और अब तक राही इनके सम्पर्क में आ चुके थे।
सन् 1950 के दौरान इलाहाबाद में उन दिनों राही की एक नज़्म थके हुए मुसाफ़िरो/यहां न डेरा डालना साहित्यिक हलक़े में काफ़ी चर्चित हो गई थी लेकिन उन्हें एक पाए का शायर माना गया हिन्दोस्तां की मुक़द्स ज़मीं /जैसे मेले में तन्हा कोई नाज़नीं नज़्म से। यह नज़्म उर्दू की पत्रिका कारवां में प्रकाशित हुई थी। उन्हीं दिनों उनका एक लेख दिल्ली की एक उर्दू पत्रिका शाहराह में प्रकाशित हुआ। यह लेख उन्होंने अपने अभिन्न मित्र कामरेड डा0 अजमल अजमली की एक नज़्म को लेकर लिखा था जिसमें उन्होंने उस नज़्म की ऐसी बखिया उधेड़ी कि जनवादी खेमें में उन्हें लेकर चिंताएं शुरू हो गईं और कामरेड शायर अजमल अजमली से उनके वर्षों पुराने रिश्ते टूट गये।
यहीं से राही के विवादों का भी सफ़र शुरू होता है जिसने उनका मुम्बई तक पीछा नहीं छोड़ा। यास अज़ीमाबादी के व्यक्तित्व पर राही ने एक पुस्तक लिखी जिसमें उन्होंने यह प्रमाणित करने का प्रयास किया कि पहचान और परख का दृष्टिकोण नये आलोचकों को अब बदलना होगा अैोर उर्दू को अलिफ़लैलवी दास्तानों की क़ैद से आज़ाद करना होगा। इस पर उर्दू के चोटी के साहित्यकारों में बवाल मच गया। विवादों के सिलसिले आगे भी चलते रहे जैसे उनका अहिंसा में विश्वास करना और उर्दू को तवायफ़ों की ज़बान कहना आदि।

डॉ राही मासूम रज़ा


कामरेड अजमल अजमली की नज़्म की आलोचना करते हुए उन्होंने अपने लेख में राही ने पहली बार अहिंसावादी विचारधारा का समर्थन किया था। उनका विचार था कि हिंसा से समस्याएं नहीं हल की जा सकतीं। इससे आने वाली नई पीढ़ी नात्सीवाद की समर्थक हो जायेगी और आतंक तथा भय में भीगा हुआ आक्रोश का प्रदर्शन व्यक्ति को यथार्थवादिता से वंचित कर देगा। उन्होंने लेख में लिखा कि सच्ची और मौलिक आज़ादी हासिल करने के लिए देश में जनमत तैयार करना ज़रूरी है। आतंकवाद ही फ़ासीवाद है।
निकहत क्लब की स्थापना सन् 1952-53 में हुई थी। इसका प्रथम अधिवेशन गोरखपुर में दूसरा बिहार की राजधानी पटना के दानापुर में तथा तीसरा सम्मेलन उत्तर प्रदेश के आज़म गढ़ में सम्पन्न हुआ। इन तीनों सम्मेलनों में राही ने सोल्लास भाग लिया। इस समय तक राही मासूम रज़ा उर्दू साहित्य के एक चर्चित चेहरे के रूप में अपनी पहचान बना चुके थे। इन्हीं दिनों इलाहाबाद के सईद प्रकाशन की रूमानी दुनिया सिरीज़ में राही का पहला उर्दू उपन्यास मुहब्बत के सिवा प्रकाशित हुआ जिसने राही की तत्कालीन ख्याति को न केवल धूलधूसरित कर दिया बल्कि उर्दू जगत की तेवरियों पर भी बल डाल दिये। उस समय के साहित्यकारों को इसका तनिक भी अनुमान नहीं था कि यही उपन्यास कालांतर में अपना कलेवर बदलकर बड़े कैनवास के साथ हिन्दी साहित्य की चौखट लांघेगा तो यह उपन्यास अपने लेखक को एक बड़ा उपन्यासकार सिद्ध कर देगा। आधा गांव इसी बात का प्रमाण है।
ऐसा नहीं है कि राही ने उपन्यास लिखने बंद कर दिये थे, बहुत से लेखक उन दिनों छद्म नामों से उपन्यास लिख रहे थे जिनमें कालांतर में प्रसिद्धि की बुलंदियां छूने वाले लेखकांे में कृश्नचंदर और कमलेश्वर सरीखे कहानीकार भी थे। राही मासूम रज़ा ने भी आफा़क़ हैदर और शाहिद अख्तर नाम से सईद प्रकाशन में लिखना जारी रखा। इन्हीं उपन्यासों की सिरीज़ में एक उपन्यास आरज़ुओं की बस्ती था जिसे आगे जाकर हिन्दी में कटरा बी आर्जू के नाम से दिल्ली के राजकमल प्रकाशन ने प्रकाशित किया। इस बार भी इसके लेखक राही मासूम रज़ा ही थे।
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में उन दिनों तालीम हासिल करना बड़ी बात मानी जाती थी। राही मासूम रज़ा के तीन भाई अलीगढ़ में पहले से ही विश्वविद्यालय से जुड़े हुए थे। राही का भी सपना था कि वह विश्वविद्यालय में दाखिला लें। अंततः 33 वर्ष की आयु में उन्होंने अलीगढ़ में आकर एमए उर्दू में दाखिला ले लिया। उनके समकालीन साहित्यिक मित्र डा0 सिद्दीकुर्रहमान बताते हैं कि राही अपने सहपाठियों में सबसे अधिक उम्र के छात्र रहे थे। इसके बावजूद वह हर उम्र के छात्रों में एक शायर और लेखक के रूप में अत्यधिक लोकप्रिय थे।
इस समय तक उनके अनेक काव्य संकलन प्रकाशित हो चुके थे जिनमें रक़्से-मय, मौजे-गुल मौजे सबा, नया सल, अजनबी शहर-अजनबी रास्ते, तथा महाकाव्य सन् अट्ठारह सौ सत्तावन आदि प्रमुख थे। सन् 1857 नामक महाकाव्य में उनका एक अलग दृष्टिकोण देखने को मिलता है। उनके अनुसार यह लडाई आजादी की नहीं, रजवाड़ों की पेंशन की लड़ाई थी। मुगल आखिरी मुग़ल बादशाह बहादुरशाह ज़फ़र और नाना साहब को अपनी-अपनी पेंशन की अधिक चिंता थी। रानी लक्ष्मीबाई अपने दत्तक पुत्र दामोदर को गद्दी पर बिठाना चाहती थीं। इसीलिए इस वर्ग ने सैनिकों का इस्तेमाल किया।
इसी प्रकार राही मासूम रज़ा की एक नज़्म है गंगा और महादेव। इसमें राही मासूम रज़ा साम्प्रदायिक शक्तियों को चुनौती देते हुए महादेव तक से टकराते नज़र आते हैं, कहते हैं कि,
‘तुम अपनी गंगा वापस ले लो।
तुम्हारे आदर्शों के कलश में
यह अपवित्र हो चुकी ह ैक्योंकि–
मुसलमानों की धमनियों में
गंगा का पानी गर्म और गाढ़ा लहू बन कर तैरने लगा है।
मुसलमान जो आक्रांता है, अपवित्र है, लकिन
दुर्भाग् यह है कि—
वह अपनी नदी, तालाब और धरती से
प्यार करने लगा है।
यह तो अपनी धरती को छोड़कर कहीं जा नहीं सकता,
हां महादेव!
तुम अपनी धरती को ज़रूर वापस ले सकते हो।
राही मासूम रज़ा ने मुस्लिम विश्वद्यिालय के लिट्रेरी क्लब के लिए दो नाटक भी लिखे, एक; गूंगी ज़िन्दगी जिसमें उस समय के बालमंच के कलाकार और आज के प्रसिद्ध फ़िल्मी गीतकार व संवाद लेखक जावेद अख्तर ने गूंगे बालक की भूमिका निभाई थी, और दूसरा एक पैसे का सवाल है बाबा। ये दोनों नाटक काफ़ी सराहे गये। इसी विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग में आगे जाकर उन्हें प्राध्यापक की नौकरी मिल गई लेंकिन फिर एक विवाद ऐसा खड़ा हो गया जिसने न केवल उनसे उनकी नौकरी छीन ली बल्कि उनको अलीगढ़ ही सदैव के लिए छोड़ देने पर मजबूर कर दिया।
हुआ यूं कि रिटायर्ड कर्नल यूनुस की युवा पत्नी राही मासूम रज़ा के लेखन और उनकी शायरी से काफ़ी प्रभावित थीं। राही मासूम रज़ा का उनके घर जाना-जाना था। यहीं, राही से उनके प्रेम-प्रसंग की शुरूआत हुई। उस समय श्रीमती यूनुस तीन बच्चों की मां थीं। प्रेम ने जब सरहदें लांघी तो दोनों ने खुद दिल्ली में पाया।

डॉ राही मासूम रज़ा


उन दिनों का स्मरण करती हुई श्रीमती शीला सिद्धू बताती हैं कि तब राही एक खूबसूरत महिला के साथ मोतीमहल होटल में ठहरे हुए थे और दोनों निकाह करना चाहते थे। मैंने इस विषय में नामवर सिंह से चर्चा की। फिर हमलोग इस युगल को अपनी कार में संसद मार्ग की मस्जिद तक ले गये। उन्हें पहुंचाकर मैं और नामवर सिंह तो चले आये, बाद में क्या हुआ मुझे कुछ याद नहीं। इसी खबर ने बाद में अलीगढ़ के सम्भ्रांत परिवारों में बवाल खड़ा कर दिया था। यह एक ऐसी बड़ी घटना थी जिसने राही मासूम रज़ा के जीवन की धारा ही बदल दी। वह कुछ समय तक दिल्ली में रहे, तदुपरांत दिल्ली से मुम्बई जा बसे, जहां से उनके फ़िल्मी करियर के सफ़र की शुरूआत हुई।
जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है कि उर्दू उपन्यास ’मुहब्बत के सिवा’ जो सन् 1964 में प्रकाशित हुआ था, उसका पुनर्लेखन अलीगढ़ में 1978 में प्रारम्भ किया गया। प्रतिष्ठित आलोचक और जनवादी साहित्यकार (स्वर्गीय) डा. कुंअरपाल सिंह उन दिनों प्रो0 मूनिस रज़ा के घर में राही के साथ एक ही कमरे में रहते थे। राही मासूम रज़ा उपन्यास को उर्दू में लिखते और के.पी. उसे हिन्दी लिपि में परिवर्तित कर देते। लिखे गये अध्यायों पर राही मासूम रज़ा की मित्र-मंडली में जावेद कमाल और नूरी शाह के साथ बहसें होतीं, आलोचना होती, फिर उसे अंतिम रूप दे दिया जाता। इस प्रकार यह उपन्यास 5 बार लिखा गया। नूरी शाह के सुझाव पर इसका नाम आधा गांव रखा गया। चूंकि इसपर के.पी़. सिंह ने काफ़ी परिश्रम किया था, इसलिए राही मासूम रज़ा ने केपी को ही यह उपन्यास समर्पित कर दिया।
आधा गांव ऐतिहासिक मोहभंग की पृष्ठभूमि में लिखा गया एक कालजयी उपन्यास है जो समय के दबावों से उत्पन्न मूल्यों की टकराहट और विगठन के संकेतों के द्वारा एक जातीय जीवन और व्यक्ति के सामान्य व्यवहार के तमाम उतार-चढ़ावों का अहसास कराता है। इस उपन्यास की कहानी अपनी ज़मीन से जुड़े हुए लोगों के न छुपाये जाने वाले दर्द की अभिव्यक्ति करती है जिसे राही ने शीआ मुसलमानों की आंतरिकता वाह्य-जीवन-व्यापार, सुख-दुख के भवनात्मक संसार, उसके जीपन की कुण्ठाओं, अवरोधों और तनावों को अपनी ज़बान देकर पाठको से रूबरू करवाया है यही नहीं बल्कि लेखक ने अपने इस उपन्यास में बनते-बिगड़ते आर्थिक सम्बंधों, उभरते राजनीतिक प्रश्नों, फैले हुए सामाजिक परिदृश्यों, सांस्कृतिक मुस्लिम पर्वों और परम्परागत मूल्यों को यथेष्ठ अभिव्यक्ति प्रदान की है ताकि अधूरे गांव की समग्रता पूरी तरह से पकड़ में आ सके।
प्रोफ़ेसर मूनिस रज़ा के लिए यह उपन्यास एक उपलब्धि थी। राही मासूम रज़ा ने मुझे एक इंटर्व्यु के दौरान बताया था कि उनके इस उपन्यास से मूनिस रज़ा बहुत उत्साहित थे और उन्होंने जब अपनी शिष्या शीली सद्धू जो राजकमल प्रकाशन की तत्कालीन प्रबंध निदेशक थीं, से इसका ज़िक्र किया तो वह इसे प्रकाशित करने के लिए तैयार हो गईं। बाद में बातचीत के दौरान शीली जी ने मेरे सामने इसकी पुष्टि भी की।
राही मासूम रज़ा आती हुई हिन्दी की आंधी से न तो भयभीत थे और न ही विचलित, लेकिन नये रास्ते तलाश करने में उन्होंने अपने कदम पीछे नहीं लौटाये। इसका प्रभाव कालांतर में हमने बखूबी देखा।
एक का किस्सा,
सबका किस्सा.
सबका क़िस्सा,
दर्दे जुदाई।

राही मासूम रज़ा अपने बदलते हुए परिवेश की मीमांसा को भलीभंति समझ चुके थे। इसी लिए उन्होंने अपने काव्य-संकलन अजनबी शहर, अजनबी रास्ते के प्रथम पृष्ठ पर लिखा कि—
टिंकू और नीलू के नाम
शायद तुम इस रस्मुलखत यानी उर्दू लिपि से नावाक़िफ़ रह जाओ जिसमें तुम्हारा अम्मू अपने शे’र लिखता है, और शायद तुम्हें वो ज़बान कभी पूरी तरह न आ सके जो तुम्हारी ज़बान यानी हिन्दी होने वाली है। मगर मैं एक रस्मुलखत के लिए तुम्हें नहीं छोड़ सकता। क्या कोई ऐसा रास्ता नहीं कि हम लोग एक-दूसरे के लिए अजनबी न होने पाएं?
______________

Tags: Article
Previous Post

अंकल कम्युनलिज़्म

Next Post

ब्लैक स्वान इवेंट

Janlok india times news bureau

Janlok india times news bureau

Next Post

ब्लैक स्वान इवेंट

  • Trending
  • Comments
  • Latest
नोएडा: बाथरूम में नहा रही लड़की का वीडियो बनाया, विरोध करने पर पीटा

नोएडा: बाथरूम में नहा रही लड़की का वीडियो बनाया, विरोध करने पर पीटा

December 23, 2020

हिमाचल प्रदेश

January 8, 2020

सब्ज़ी मेकर (लघुकथा)

October 28, 2019

डॉ. गोपालदास सक्सेना ‘नीरज’

January 13, 2020

बावरा मन

0

शब्दों का सफर

0

सब्ज़ी मेकर (लघुकथा)

0

सिक्किम

0
बेखौफ बदमाशों ने परिवार पर किया हमला, प्लॉट पर कब्जे को लेकर हुआ विवाद…6 लोग घायल

खुदाई में मिट्टी धंसने से तीन श्रमिक दबे, एक की मौत; अब पुलिस कर रही है ठेकेदार से पूछताछ

May 8, 2025
छात्रा को अगवा कर चलती कार में किया Rape, 2 बार बनाया शिकार…आरोपी सड़कों पर घूमाते रहे कार

छात्रा को अगवा कर चलती कार में किया Rape, 2 बार बनाया शिकार…आरोपी सड़कों पर घूमाते रहे कार

May 8, 2025
पलवल में किशोर ने किया सुसाइड, परिवार में पसरा मातम, पिता ने कहा- होनहार था बेटा

पलवल में किशोर ने किया सुसाइड, परिवार में पसरा मातम, पिता ने कहा- होनहार था बेटा

May 8, 2025
तेज आंधी में मौत ने दी दस्तक, चलती कार पर गिरा पेड़… 2 की मौके पर दर्दनाक मौत

तेज आंधी में मौत ने दी दस्तक, चलती कार पर गिरा पेड़… 2 की मौके पर दर्दनाक मौत

May 8, 2025

लेटेस्ट न्यूज़

बेखौफ बदमाशों ने परिवार पर किया हमला, प्लॉट पर कब्जे को लेकर हुआ विवाद…6 लोग घायल

खुदाई में मिट्टी धंसने से तीन श्रमिक दबे, एक की मौत; अब पुलिस कर रही है ठेकेदार से पूछताछ

May 8, 2025
छात्रा को अगवा कर चलती कार में किया Rape, 2 बार बनाया शिकार…आरोपी सड़कों पर घूमाते रहे कार

छात्रा को अगवा कर चलती कार में किया Rape, 2 बार बनाया शिकार…आरोपी सड़कों पर घूमाते रहे कार

May 8, 2025
पलवल में किशोर ने किया सुसाइड, परिवार में पसरा मातम, पिता ने कहा- होनहार था बेटा

पलवल में किशोर ने किया सुसाइड, परिवार में पसरा मातम, पिता ने कहा- होनहार था बेटा

May 8, 2025
तेज आंधी में मौत ने दी दस्तक, चलती कार पर गिरा पेड़… 2 की मौके पर दर्दनाक मौत

तेज आंधी में मौत ने दी दस्तक, चलती कार पर गिरा पेड़… 2 की मौके पर दर्दनाक मौत

May 8, 2025
Janlok India Times news

Janlokindiatimes.com : is one of the best news channel in delhi/ncr

Follow us

  • facebook
  • x
  • instagram

Browse by Category

  • Top News
  • Uncategorized
  • उत्तर प्रदेश
  • उत्तराखंड
  • कथा-कहानी
  • कविता
  • कश्मीर
  • खेल
  • ग़ज़ल
  • जम्मू
  • दिल्ली एनसीआर
  • पश्चिम बंगाल
  • बड़ी खबरें
  • बिहार
  • मध्य प्रदेश
  • मनोरंजन
  • मनोरंजन
  • महाराष्ट्र
  • महिला
  • मीडिया
  • मुख्य समाचार
  • युवा
  • राजनीति
  • राजस्थान
  • राज्य
  • राशिफल
  • विदेश
  • विशेष
  • वीडियो गैलरी
  • व्यंग्य
  • व्यापार
  • सिक्किम
  • स्वास्थ्य
  • हरियाणा
  • हिमाचल प्रदेश

अभी अभी

बेखौफ बदमाशों ने परिवार पर किया हमला, प्लॉट पर कब्जे को लेकर हुआ विवाद…6 लोग घायल

खुदाई में मिट्टी धंसने से तीन श्रमिक दबे, एक की मौत; अब पुलिस कर रही है ठेकेदार से पूछताछ

May 8, 2025
छात्रा को अगवा कर चलती कार में किया Rape, 2 बार बनाया शिकार…आरोपी सड़कों पर घूमाते रहे कार

छात्रा को अगवा कर चलती कार में किया Rape, 2 बार बनाया शिकार…आरोपी सड़कों पर घूमाते रहे कार

May 8, 2025
पलवल में किशोर ने किया सुसाइड, परिवार में पसरा मातम, पिता ने कहा- होनहार था बेटा

पलवल में किशोर ने किया सुसाइड, परिवार में पसरा मातम, पिता ने कहा- होनहार था बेटा

May 8, 2025
तेज आंधी में मौत ने दी दस्तक, चलती कार पर गिरा पेड़… 2 की मौके पर दर्दनाक मौत

तेज आंधी में मौत ने दी दस्तक, चलती कार पर गिरा पेड़… 2 की मौके पर दर्दनाक मौत

May 8, 2025
  • Home
  • Disclamer
  • Programs
  • Bank Details
  • Contact us

Copyright © 2020 Janlokindiatimes.com | This is Owned By Janlok India Times

No Result
View All Result
  • होम
  • मुख्य समाचार
  • राज्य
    • उत्तर प्रदेश
    • उत्तराखंड
    • कश्मीर
    • जम्मू
    • पश्चिम बंगाल
    • बिहार
    • मध्य प्रदेश
    • महाराष्ट्र
    • राजस्थान
    • हरियाणा
    • हिमाचल प्रदेश
    • सिक्किम
  • बड़ी खबरे
  • दिल्ली एनसीआर
  • कोरोना
  • विदेश
  • राजनीति
  • विशेष
  • Youtube Channel
  • Live Tv
  • More
    • स्वास्थ्य
    • व्यापार
    • खेल
    • मनोरंजन
    • राशिफल

Copyright © 2020 Janlokindiatimes.com | This is Owned By Janlok India Times

error: Content is protected !!
  • →
  • WhatsApp
  • Live TV Live TV